भारतीय भाषा आन्दोलन
भारतीय भाषा आन्दोलन भारत में हिन्दी और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलाने के चलाया गया एक आन्दोलन है। यह १६ अगस्त १९८८ को आरम्भ हुआ था। इनका आरोप है कि भारत को अब भी अंग्रेजीदां ही चला रहे हैं। आन्दोलनकारियों की मांग है कि 1968 के भाषाई संसदीय संकल्प को लागू करने के लिए एक सर्वदलीय संसदीय समिति का गठन किया जाये जो देश की सभी क्षेत्रीय भाषाओ के प्रतिनिधिओं के पक्षों को सुनकर अपना निर्णय करे। इस आन्दोलन का उदेश्य प्रत्येक स्तर से अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त करके भारतीय भाषाओ को लागू करवाना है – यह भावना 1968 के भाषाई संसदीय संकल्प में पहले से निहित है, यह अब ही उपजी कोई नयी मांग नहीं है।[1]
मुख्य मांगें
संपादित करें- (१) संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की जाय और उसके स्थान पर भारतीय भाषाओं को को शामिल किया जाय।
- (२) उच्च न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं में सुनवाई हो और निर्णय भी क्षेत्रीय भाषा में ही दिया जाय। सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी में सुनवाई और अंग्रेजी में निर्नय के साथ हिन्दी में भी सुनवाई और निर्णय दिया जाय।
इतिहास
संपादित करेंभारतीय भाषा आन्दोलन 16 अगस्त १९८८ में आरम्भ हुआ था जिसमें इसके पुरोधा स्व. राजकरण सिंह के नेतृत्व में संघ लोकसेवा आयोग की चैखट (गेट) पर १४ वर्ष तक ऐतिहासिक धरना दिया गया। इस धरने में भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह , पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व विश्वनाथ प्रताप सिंह, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल व लालकृष्ण आडवाणी, वर्तमान केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह व रामविलास पासवान, कामरेड इन्द्रजीत गुप्त सहित चार दर्जन से अधिक वरिष्ठ जनप्रतिनिधी इस धरने में सम्मलित हो चुके हैं। सन 2002 में अटलबिहारी वाजपेई की सरकार ने आन्दोलन को समाप्त करने के लिये राजी कर लिया था।
इसी के तहत भारतीय भाषा आंदोलन, संसद की चैखट- जंतर मंतर पर आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व महासचिव देवसिंह रावत सहित तमाम आन्दोलनकारियों ने 21 अप्रैल 2013 से अखण्ड धरना दे रखा है। जिसके समर्थन में महात्मा गांधी के पोते कानू गांधी, विश्वविख्यात योगगुरू स्वामी रामदेव, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सोमपाल शास्त्री सहित अनेक वरिष्ठ देशभक्त सम्मलित हुए हैं।[2]
इस आन्दोलन के कारण ही संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सी-सैट से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटायी गयी।
उल्लेखनीय है कि 18 जनवरी 1968 को भारतीय संसद ने एक भाषाई संसदीय संकल्प पारित किया था। लेकिन इस संसदीय संकल्प के 20 वर्षो तक लागू नहीं होने के कारण 16 अगस्त 1988 को संघ लोक सेवा आयोग के मुख्य गेट पर विश्व का सबसे लम्बा धरना आरम्भ किया गया था।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "भारतीय भाषा आन्दोलन 25 अगस्त -2014 से देशव्यापी स्वरूप लेगा". मूल से 10 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
- ↑ "भारतीय भाषाओं को लागू न किये जाने पर भारतीय भाषा आंदोलन देगा प्रधानमंत्री आवास पर धरना". मूल से 15 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2015.
इन्हें भी देखें
संपादित करें- राजकरण सिंह
- श्याम रुद्र पाठक