भावनात्मक सुरक्षा की कमी मानव समाज के हर व्यक्ति के भीतर छिपा हुआ एक भाव हो सकता है जिसके कारण वह अपने समूह से स्वयं को अलग महसूस कर सकता है, किसी सामान्य कार्य के सम्पन्न करने में खुद को अयोग्य समझता है, कई मामलों में खुद आगे आकर नेतृत्व करने के बजाए दूसरों का अनुसरण करना उचित समझता है। इसी कमी के कारण लोग व्यक्तिगरूप से अच्छे वार्तालाप की क्षमता रखकर भी समूह में आगे आने और कुछ कहने से डरते हैं। यही नहीं, लोग परिवार के बुज़ुरगों, स्थानीय रूप से प्रभावशाली लोगों, सरकारी कर्मचारियों, किसी भी संस्था के उच्च पदाधिकारियों के समक्ष अपनी बात रखने या सार्वजनिक मंच, जनसभा, आदि से बचते हैं। इसके विपरीत ऐसे लोग जिनमें अत्मविश्वास होता है, उनमें स्वयं को सुरक्षित मानकर सबके सामने अपनी बात कहने, रखने, नेतृत्व या दायित्व लेने की क्षमता कूट-कूट कर भरी होती।

प्रारंभिक स्तर से भावनात्मक सुरक्षा की कोशिश

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बाल मनोवैज्ञानिक कहतें हैं बच्चों में भावनात्मक सुरक्षा पैदा करने के लिए उनसे बात करना तथा उनकी चिंताओं एवं सवालों का समाधान करना आवश्यक है। इसके लिए अभिभावकों को चाहिए कि उनकी आंखों में अपने सपने भरने की अपेक्षा उनके सपनों को समझें और उन्हें पूरा करने में उनका साथ दें। अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चों की भावनाओं का सम्मान करें। जरूरत पडऩे पर विषेज्ञों की मदद लेने बच्चों के विकास में काफ़ी सहायता मिलती है। [1]

इन्हें भी देखें

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  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 सितंबर 2018.