भूपर्पटी में प्रवाहित विद्युत धाराओं को भू-धाराएँ (Earth Currents) कहते हैं। यह वह धारा है जो भूमि के अन्दर से या समुद्र से होकर बहती है। ये बहुत ही कम आवृत्ति की विद्युत-धाराएँ हैं जो धरती के तल या उसके आसपास बहुत बड़े क्षेत्रफल में प्रवाहित होतीं हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण प्राकृतिक भी है और मानवीय क्रियाकलाप भी।

भू-धाराओं को भूभौतिकीविद् स्थलमंडलीय धाराएँ (telluric currents) कहते हैं और हाल ही में पेट्रोलियम खोजने के क्षेत्र में इससे बहुत लाभ उठाया गया है। पेट्रोलियम तैलाशय की उच्च प्रतिरोधकता चट्टानों में इन धारानिकायों से उत्पन्न विभव प्रवणता के अध्ययन से, भूभौतिकीय अन्वेषण के लिये अत्यंत उपयोगी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। अनुमानत: इसका प्रेरण उपरली धारा पद्धति (overhead current system) से होता है। सर्वप्रथम 1847 ई0 में इंग्लैंड में, सुविकसित तार प्रणाली (telegraphy) की सहायता से पर्पटी में परिवर्तनशील विद्युद्धाराओं का प्रेक्षण किया गया था। इससे अनेक अनुसंधानकर्ताओं को भू-धाराओं के अध्ययन की प्रेरणा मिली।

भू-धाराओं और 'भू-वायु धाराओं' के संबंध में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। पृथ्वी की सतह पर हवा से पृथ्वी की ओर, या इसके विपरीत, प्रवाहित विद्युद्धाराओं की व्याख्या पृथ्वी के विभवहीन क्षेत्र के आधार पर की जाती है। पृथ्वी की सतह पर स्थित बंद वक्रों (closed curves) के चारों ओर समांतर चुंबकीय बल के रेखासमाकल (line integral) की गणना द्वारा चुंबकीय विधि से इनकी पहचान की जा सकती है। परंतु भू-धाराओं के अध्ययन की विधि दूसरी है। भू-धाराओं की पहचान के लिये भूपर्पटी पर सुदूरस्थ बिंदुओं के बीच का विभवांतर मापना मड़ता है। तीन या चार विंदुओं का चुनाव इस प्रकार करते हैं कि उनसे निर्मित समकोण त्रिभुज या आयत की दो भुजाएँ क्रमश: उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम के समांतर रहें। त्रिभुज या आयत के कोणीय विंदुओं पर धातु के बृहद इलेक्ट्रोड (electrodes) गड़े रहते हैं। एक जोड़े इलेक्ट्रोड के बीच की दूरी एक दो किलोमीटर से लेकर 100 से 200 किलोमीटर तक हो सकती है। इलेक्ट्रोडों के प्रत्येक जोड़े के बीच वोल्टता का अंतर कुछ मिलीवोल्टों में होता है, जिसे उपयुक्त विंदुओं पर स्थापित सूक्ष्मग्राही उपकरणों से मापा जाता है। इलेक्ट्रोड और मिट्टी, जिसमें ये गाड़े जाते हैं, दोनो के गुणों के सर्वसम न होने के कारण, पर्पटी के किन्हीं दो विदुओं के बीच के विभवांतर का यथार्थ मान प्राप्त करने के लिये इलेक्ट्रोडों और मिट्टी के बीा संपर्क विभवांतर के संशोधनों को प्रयुक्त करना आवश्यक है। यह भी निश्चित होना चहिए कि इलेक्ट्रोडों पर संपर्क प्रतिरोध, अभिलेखन-परिपथ के प्रतिरोध की तुलना में नगण्य है और समय बीतने के साथ बदलता नहीं। भूधाराओं को मापने के लिये प्राय: गीली मिट्टी में सीसे के तार का ग्रिड (grid) गड़ा रहता है। भारत के एक वैज्ञानिक ने इलेक्ट्रोडों को 250 मीटर की दूरी पर रखा और इलेक्ट्रोडों को मिट्टी के सापेक्ष उदासीन रखकर ध्रुवण की कठिनाई दूर की। इस वैज्ञानिक का प्रत्येक इलेक्ट्रोड विद्युद्धनीय तथा विद्युदृणीय धातुओं का संयोग था।

भू-धारा वेधशाला को पृथ्वी के व्यापक क्षेत्र की आवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। इसे ऐसे स्थान पर नहीं होना चाहिए जो स्थानीय विशेषताओं से प्रभावित हो। अत: वेधशाला के लिये स्थान निश्चित करने से पूर्व भू-प्रतिरोधकता (earth resistivity) सर्वेक्षण द्वारा निश्चत कर लिया जाता है कि वेधशाला स्थान की भूवैज्ञानिक संरचना (geological structrue) भू-धारा को किसी निम्न प्रतिरोधकता की दिशा में प्रेरित करने के लिये विशेष रूप से उपयुक्त नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय परंपरा के अनुसार खगोलीय याम्योत्तर की दिशा में भू-धारा के प्रवाह को 'उत्तराभिमुख घटक', उ (N), कहते हैं और यदि प्रवाह उत्तर की ओर हो तो यह धनात्मक होता है। इसी प्रकार खगोलीय याम्योत्तर के लंबवत प्रवाह को 'पूर्वाभिमुख घटक', पू (E), कहते हैं तथा यह पूर्व की ओर धनात्मक है।

परिणामी प्रवाह R = (N2+E2)0.5
और
दिगंश Tan a = E/N

वाटरलू, वांग्कायो (Huancayo), एब्रो, पैरिस, बटेविया जैसे अनेक स्थानों में परिणामी भू-धारा की दिशा को एक ही दिगंश (azimuth), या उसके विपरीत, तक सीमित पाया गया है। यद्यपि यह विशेषता कुछ स्थानों जैसे दूसॉन (Tucson), ऐरिजोना (Arizona) आदि में नहीं पाई जाती, फिर भी इसका व्यापक क्षेत्र में पाया जाना एक रोचक तथ्य है। भू-धाराओं का विचरण दो प्रकार से होता है :

(1) अनियमित विचरण या भू-धरा तूफान और
(2) नियमित तथा नियतकालिक विचरण, जैसे दैनिक तथा मौसमी विचरण।

अनियमित विचरण या तूफान

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इनके अनेक लक्षण चुंबकीय विक्षोभ से मिलते जुलते हैं। भू-धारा तूफान, चुबंकीय तूफान और ध्रुवीय ज्योति की घटनाओं का समय एक ही होता है तथा इनका प्रादुर्भाव विश्वव्यापी और एक साथ होता है। इन दोनों सक्रियताओं का 11 वर्षीय विचरण होता है, जो सूर्य के धब्बों की सक्रियता के साथ संगत होता है और इसमें 27 दिवसीय आवृति की प्रवृत्ति भी होती है। चुंबकीय सक्रियता के समान ही भू-धारा के स्थानीय विक्षोभ उच्च अक्षोशों पर अत्यंत तीव्रता से होते है। यह भी विचारणीय है कि भू-धारा के अभिलेखन चुंबकीय विक्षोभ के लगभग समांतर होते हैं और दोनों की प्रकृति भी एक सी होती है। उपर्युक्त समानताएँ दोनो घटनाओं के गहरे भौतिक संबंधों की ओर इंगित करती है।

नियमित विचरण

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भू-धाराओं का औसत दैनिक विचरण, विभव प्रवणता (potential gradient) के दैनिक माध्यमान से माध्य विचलन को प्रति घंटे पर आलेखित करने से प्राप्त होता है।

दैनिक चुंबकीय विचरणों से इनकी निम्नलिखित समानताएँ होती हैं: (अ) दिन में रात की अपेक्षा विचरण तीव्र होते हैं। (ब) जाड़ों की तुलना में गर्मी के दिनों में इनका परास अधिक उच्च होता है।

वाटरलू और टूसॉन की वेघशालाओं के प्रेक्षणों से उपर्युक्त निष्कर्ष स्पष्ट प्रतिपादित होते हैं। उत्तरी और दक्षिणी गोलार्धों में भू-धाराओं के प्रेक्षणों से विषुवत्‌ के निकट कला परिवर्तन (phase change) प्रकट होता है। दोपहर के समय दोनों ओर से भू-धारा का मुख्य प्रवाह विषुवत्‌ की ओर होता है। नीचे लिखे तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि भू-धाराओं के दैनिक विचरण तथा पार्थिव चुंबकत्व में भोतिक संबंध है:

(अ) चुंबकत्व की दृष्टि से किसी महीने के पाँच शांत और अशांत दिनों के लिये संगणित (computed) भू-धाराओं के घटकों के औसत दैनिक विचरणों में शुद्ध ज्या तरंग से मिलते जुलते एक वक्र का अंतर होता है, जिसका आवर्तकाल (period) एक दिन के बराबर होता है। चुंबकीय घटकों के लिये भी ठीक इसी प्रकार का अंतर वक्र प्राप्त होता है।
(ब) जिस प्रकार किसी मौसम के चुबकीय शांत दिनों में विभिन्न आयाम (amplitude) के चुंबकीय परिवर्तनों का होना संभव है, उसी प्रकार उन्हीं चुंबकीय शांत दिनों में भू-धाराएँ भी बड़ी या छोटी हो जाया करती हैं।

रुनी (Rooney) के अनुसार प्रदर्शित वाटरलू (अक्षांश 300 द0) चुंबकीय बल और भू-धाराओं के दैनिक विचरण की दर चित्र में प्रदर्शित है। चित्र में वक्र अ वाटरलू की भू-धाराओं के उत्तरी अवयव का दैनिक विचरण निरूपित करता है और वक्र ब उसी स्थान के क्षैतिज चुंबकीय बल के पूर्वी अवयव का काल व्युत्पन्न (time derivative) है। चित्र में संपूर्ण रैखिक वक्र (time curve) उस स्थान के चुंबकीय बल के पूर्वी अवयव के विचरण का संकेत करता है। चूकिं वक्र अ और ब लगभग समांतर हैं, अत: इनमें से किसी एक का झुकना अ और ब से निरूपित विचरणों का आकस्मिक संबंध बताता है1 यह समझना असंगत नहीं है कि यदि सब नहीं तो अधिकांश भू-धाराएँ पार्थिव चुंबकीय बलों में विचरणों के कारण प्रेरित धाराएँ हैं। साथ ही यह भी तथ्य है कि इस धाराओं के निर्माण में अन्य कारक भी सहायक हो सकते हैं। अ और ब के बीच व्यवस्थित कला अंतर का होना प्रतीत होता है। भू-धाराओं और इनके संगत भू-चुंबकीय क्षेत्रों के आँकड़ों के विश्लेषण से ज्ञात हुआ है है कि मध्य स्पष्ट होते हैं, उत्तराभिमुख चुंबकीय घटक (उत्क्रमित) के विचरण वक्र से मिलते जुलते विचरण होते हैं, न कि उत्तराभिमुख चुंबकीय घटक के विचरण के समय दर से, जैसा कि उस स्थिति में होना चाहिए जबकि धारातंत्री प्रेरित प्रभाव से उत्पन्न हो। इस असंगति का संकेत यह है कि भू-धारा निकाय (system) का मूल उतना सरल नहीं है, जितना चित्र के अ और ब की स्पष्ट समानता से प्रतीत होता है।

बाहरी कड़ियाँ

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