महाभास्करीय
महाभास्करीय, भास्कर प्रथम द्वारा रचित गणित एवं खगोल से सम्बन्धित ग्रन्थ है। गोविन्दस्वामी ने इसकी टीका लिखी है जिसमें अन्तर्वेशन का वही सूत्र है जिसे आजकल 'न्यूटन-गाउस अन्तर्वेशन फॉर्मूला' कहते हैं।
महाभास्करीय में आठ अध्याय हैं। सातवें अध्याय के श्लोक १७, १८ और १९ में उन्होने sin x का सन्निकट मान (approximate value) निकालने का निम्नलिखित सूत्र दिया है-
इस सूत्र को उन्होने आर्यभट्ट द्वारा दिया हुआ बताया है। इस सूत्र से प्राप्त ज्या य के मानों का आपेक्षिक त्रुटि 1.9% से कम है। (अधिकतम विचलन जो पर होता है।)
- मख्यादिरहितं कर्मं वक्ष्यते तत्समासतः।
- चक्रार्धांशकसमूहाद्विधोध्या ये भुजांशकाः॥१७
- तच्छेषगुणिता द्विष्टाः शोध्याः खाभ्रेषुखाब्धितः।
- चतुर्थांशेन शेषस्य द्विष्ठमन्त्य फलं हतम् ॥१८
- बाहुकोट्योः फलं कृत्स्नं क्रमोत्क्रमगुणस्य वा।
- लभ्यते चन्द्रतीक्ष्णांश्वोस्ताराणां वापि तत्त्वतः ॥१९[1]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- महाभास्करीयम् (परमेश्वरकृतकर्मदीपिकाव्याख्यासहितम् (संस्कृत विकिस्रोत पर)
- महाभास्करीय (आर्काइव डॉट ओआरजी)
- महाभास्करीय का अंग्रेजी अनुवाद
- लघुभास्करीय (आर्काइव डॉट ओआरजी)
- आर्यभटकृतम् आर्यभटीयम् भास्कर-विरचित-भाष्योपेतम् (आर्यभटीय, भास्कर विरचित भाष्य सहित)
- Aryabhatheeya with commentary of Bhaskar and Someshwar (कृपाशंकर शुक्ल, लखनऊ विश्वविद्यालय)
- अनुक्रमणिका:महाभास्करीयम् (संस्कृत विकिस्रोत)
- अनुक्रमणिका:लघुभास्करीयम् (संस्कृत विकिस्रोत)
सन्दर्भ
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संपादित करें- Plofker, Kim (2009), मैथमेटिक्स इन इंडिया: 500 ईसा पूर्व-1800 ई, Princeton, NJ: Princeton University Press, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-691-12067-6.
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- ↑ Kim Plofker, Mathematics in Ancient India, Princeton University Press, 2008, page 81