महाराजा अनूपसिंह (1638 - 1698)[1] बीकानेर के वीर, कूटनीतिज्ञ और विद्यानुरागी शासक थे। दक्षिण भारत की विजय के कारण औरंगजेब ने उन्हे माही मरातिब की उपाधि दी उनके दरबारी कवि भावभट्ट ने सगीत अनूप अंकुश, अनूप सगीत विलास, अनुप संगीत रत्नाकर नामक पुस्तके लिखी । तथा अन्य दरबारी कवि मणिराम ने अनूप विलास अनूप संगीत व्यवहार तथा अनन्त भट्ट ने तीर्थ रत्नाकर नामक पुस्तके लिखी उन्होंने कई सस्कृत पुस्तको का राजस्थानी भाषा मे अनुवाद करवाया जैसे शुक कारिका ( जिसका नाम दम्पति विनोद रखा ) अन्य पुस्तके वेताल पच्चीसी तथा श्रीमद भागवत् गीता का भी अनुवाद करवाया गीता का अनुवाद आनन्दराम जी ने किया उन्होंने अनूप पुस्तकालय बनवाया जिसमे दक्षिणभारत से लाई विभिन संस्कृत भाषा की पुस्तक तथा महाराणा कुम्भा द्वारा रचित संगीत पुस्तको को भी रखवाया

प्रारंभिक जीवन

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अनूप सिंह अपने पूर्ववर्ती और पिता करण सिंह, जो एक मुगल जागीरदार थे, के सबसे बड़े पुत्र थे। जुलाई 1667 में, जब करण सिंह जीवित थे, मुगल सम्राट औरंगजेब ने अपने पिता के मृत्यु के पश्चात , अनूप सिंह को बीकानेर पर शासन करने का अधिकार प्रदान किया। 1669 में, दक्कन क्षेत्र में मुगल अभियान के दौरान औरंगाबाद में करण सिंह की मृत्यु हो गई, और अनूप सिंह उनके उत्तराधिकारी के रूप में बीकानेर की गद्दी पर बैठे।

विद्यानुराग एवं कला प्रेम

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वीर होने के साथ-साथ वह स्वयं विद्वान व संगीतज्ञ भी थे और बड़े पुस्तक-प्रेमी थे। उन के दरबार में भाव भट्ट जैसे संगीतज्ञ और कई विद्वान आश्रय पाते थे। इनके आश्रय में रहकर तत्कालीन चित्रकारों ने एक मौलिक किंतु स्थानीय परिमार्जित चित्रशैली बीकानेर कलम को जन्म दिया। द्वारा अपने संकलन की पांडुलिपियों और निजी पुस्तकालय की पुस्तकों से आरम्भ किया गया लालगढ़ पेलेस, बीकानेर में अवस्थित एक अनूठा पुस्तक-केंद्र, जिसमें अनेकानेक ग्रंथों और पांडुलिपियों का व्यवस्थित संकलन है।

उन्होने अनूपविवेक, कामप्रबोध, श्राद्धप्रयोग चिन्तामणि और गीतगोविन्द पर 'अनूपोदय' टीका लिखी थी। उन्हें संगीत से प्रेम था। उसने दक्षिण में रहते हुए अनेक ग्रंथों को नष्ट होने से बचाया और उन्हें खरीदकर अपने पुस्तकालय के लिए ले आये। कुम्भा के संगीत ग्रन्थों का पूरा संग्रह भी उन्होने एकत्र करवाया था। आज अनूप पुस्तकालय (बीकानेर) अलभ्य पुस्तकों का भण्डार है, जिसका श्रेय अनूपसिंह के विद्यानुराग का है। दक्षिण में रहते हुये उन्होने अनेक मूर्तियों का संग्रह किया और उन्हें नष्ट होने से बचाया। यह मर्तियों का संग्रह बीकानेर के तैतीस करोड़ दवताओं के मदिर में सुरक्षित है।

सैन्य वृत्ति

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अनूप सिंह एक अनुपस्थित शासक थे, और उन्होंने अपना अधिकांश जीवन मुगल दरबार में या बीकानेर से दूर मुगल अभियानों में बिताया। उन्होंने मुगल सेनापति महाबत खान के अधीनस्थ के रूप में मराठा राजा शिवाजी के खिलाफ मुगल अभियान में भाग लिया।[1] औरंगजेब के सेनापति के रूप में, अनूप सिंह ने 1680 और 1690 के दशक के दौरान दक्कन क्षेत्र में कई अभियानों का नेतृत्व किया। 1687 में, उन्होंने गोलकुंडा सल्तनत पर कब्ज़ा करने के लिए मुग़ल सेना का नेतृत्व किया, जिसके लिए औरंगज़ेब ने उन्हें महाराजा की उपाधि दी।[3] औरंगजेब ने उन्हें माही मरातिब का शाही सम्मान भी दिया और उनका मनसबदार पद पहले 3500 और फिर 5000 तक बढ़ा दिया।