महाराज हरि सिंह (जन्म: २३ सितंबर १८९५, जम्मू; निधन: २६ अप्रैल १९६१ मुंबई) जम्मू और कश्मीर रियासत के अंतिम शासक महाराज थे।[1] वे महाराज रणबीर सिंह के पुत्र और पूर्व महाराज प्रताप सिंह के भाई, राजा अमर सिंह के सबसे छोटे पुत्र थे। इन्हें जम्मू-कश्मीर की राजगद्दी अपने चाचा, महाराज प्रताप सिंह से वीरासत में मिली थी।

महाराज हरि सिंह
जम्मू और कश्मीर के महाराज
महाराज हरि सिंह, जम्मू और कश्मीर के महाराज
पूर्ववर्तीमहाराज प्रताप सिंह
उत्तरवर्तीकर्ण सिंह(राजप्रमुख के रूप में)
संतान६: (४ पुत्र, २ पुत्री)
घरानाडोगरा राजवंश
महा राजा हरि सिंह

उन्होंने अपने जीवनकाल में चार विवाह किये। उनकी चौथी पत्नी, महारानी तारा देवी से उन्हें एक बेटा था जिसका नाम कर्ण सिंह है।

हरि सिंह, डोगरा शासन के अन्तिम राजा थे जिन्होंने जम्मु के रज्य को एक सदी तक जोड़े रखा।जम्मु राज्य ने १९४७ तक स्वायत्ता और आंतरिक सपृभुता का मज़ा उठाया। यह राज्य न केवल बहुसांस्कृतिक और बहुधमी॔ था , इसकी दूरगामी सीमाएँ इसके दुर्जेय सैन्य शक्ति तथा अनोखे इतिहास का सबूत हैं।

हरि सिंह का जन्म २३ सितम्बर १८९५ को अमर महल में हुआ था। १३ वर्ष की आयु मे उन्हें मयो कालेज , अजमेर भेज दिया गया था। उसके एक साल बाद १९०९ मे उनके पिताजी की मृत्यु हो गयी। इसके बाद मेजर एच० के० बार को उनका संरक्षक घोषित कर दिया गया। २० साल की आयु में उन्हें जम्मू राज्य का मुख्य सेनापति नियुक्त कर दिया गया।

व्यक्तिगत जीवन

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उन्होने चार विवाह किये। उनकी पहली पत्नी धरम्पुर रानी श्री लाल कुन्वेर्बा साहिबा थी जिनसे उनका विवाह राजकोट में ७ मई १९१३ को हुआ।उनकी अन्तिम पत्नी महारानी तारा देवि से उन्हे एक पुत्र, युवराज कर्ण सिंह था। उनकी दूसरी पत्नी चम्बा रानी साहिबा थी जिनसे उन्होंने ८ नवंबर १९१५ में शादी की। तीसरी पत्नी महारानी धन्वन्त कुवेरी बैजी साहिबा थी जिनसे उन्होंने धरम्पुर में ३० अप्रैल १९२३ को शादी की। चौथी बीवी कानगरा की महारानी तारा देवी साहिबा थी जिनसे उनहे एक पुत्र था।

उन्होने अपने राज्य में प्रराम्भिक शिक्षा अनिवार्य कर दिया एवं बाल विवाह के निषेध का कानून शुरु किया। उन्होंने निम्न वर्गिय लोगों के लिये पूजा करने कि जगह खोल दी। वे मुस्लिम लीग तथा उनके सदस्यों के साम्प्रदयिक सोच के विरुद्ध थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय वे १९४४-१९४६ तक शाही युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य थे। हरि सिंह ने २६ अक्तुबर १९४७ को परिग्रहन के साधन पर हस्ताक्षर किए और इस प्रकार अपने जम्मु राज्य को भारत के अधिराज्य से जोड़ा।[2]उन्होंने नेहरु जी तथा सरदार पटेल के दबाव में आकर १९४९ में अपने पुत्र तथा वारिस युवराज करन सिंह को जम्मु का राज-प्रतिनिधि नियुक्त किया। उन्होंने अपने जीवन के आखरी पल जम्मु में अपने हरि निवास महल में बिताया। उन्की मृत्यु २६ अप्रैल १९६१ को बम्बैइ में हुई। उनकी इच्छानुसार उनकी राख को जम्मु लाया गया और तवि नदि में बहा दिया गया।

महाराज हरि सिंह
जन्म: १९२५ मृत्यु: १९६१
राजसी उपाधियाँ
पूर्वाधिकारी
महाराज प्रताप सिंह
(जम्मू और कश्मीर के महाराज के रूप में)
जम्मू और कश्मीर के महाराज
१९२५-१९६१
उत्तराधिकारी
कर्ण सिंह(राजप्रमुख के रूप में)

इन्हें भी देखें

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  1. "भारत में कश्मीर का विलय?".
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 फ़रवरी 2017.

बाहरी कड़ियाँ

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