माण्डले
माण्डले (Mandalay / बर्मी भाषा में : မန္တလေးမြို့; / मन्तलेःम्रों ) बर्मा का दूसरा सबसे बड़ा शहर एवं बर्मा का अन्तिम शाही राजधानी है। यह रंगून से ७१६ किमी उत्तर में इरावदी नदी के किनारे बसा है।
मांडले ऊपरी बर्मा का आर्थिक केन्द्र एवं बर्मी संस्कृति का केन्द्र है। मांडले की जेल में ही बहादुरशाह जफर, बालगंगाधर तिलक[1], सुभाष चन्द्र बोस आदि अनेक भारतीय नेताओं एवं क्रान्तिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने बन्दी बना रखा था।
मांडले जिला
संपादित करेंयह उत्तरी बर्मा का जिला है। कृषियोग्य भूमि केवल इरावदी नदी की घाटी में है जो कॉप मिट्टी द्वारा निर्मित है और इसका क्षेत्रफल लगभग 600 वर्ग मील है। उत्तर और पूर्व में पहाड़ तथा पठार है जो भौगोलिक रूप से शान पठार के ही भाग हैं। इनका विस्तार लगभग 1,500 वर्ग मील में है। सर्वोच्च चोटी मैमयो (Maymyo) 4,753 फुट ऊँची है। यहाँ बाँस आदि के जंगल पाए जाते हैं। इस जिले में इरावदी और उसकी सहायक म्यितंगे (Myitnge) तथा मडया नदियाँ बहती हैं। यहाँ का वार्षिक ताप 7° सेंo से यहाँ 43° सेंo है। मैदानी भाग की जलवायु शुष्क एवं स्वास्थ्यप्रद है तथा औसत वार्षिक वर्षा 60 इंच होती है। पहाड़ी भागों में मुख्यत: हाथी, गवल एवं साँभर पाए जाते हैं। भूकने वाला हरिण (संगइ) प्राय: सभी जगह पाया जाता है। धान इस जिले की प्रधान फसल है। लेकिन गेहूँ, चना, तंबाकू और कई प्रकार की दालें भी उत्पन्न की जाती है। अभ्रक मुख्य खनिज है। इसके अतिरिक्त, माणिक्य, सीसा और निम्न कोटि का कोयला भी पाया जाता है।
रेशम के वस्त्र बुनना एक महत्वपूर्ण उद्योग है। इस जिले में कई पगोड़ा हैं, किंतु सूतांग्ब्यी (Sutaungbyi) सूतांग्ये (Sutaungye), शुई जयान (Shue Zayan) और श्वे मेल (Shwe Male) उल्लेखनीय है।
मांडले नगर
संपादित करेंयह स्वतंत्र बर्मा की भूतपूर्व राजधानी, मुख्य व्यापारिक नगर एवं गमनागमन का केंद्र है जो इरावदी नदी के बाएँ किनारे पर, रंगून से 350 मील उत्तर स्थित है। 1856-57 ई0 में राजा मिंडान ने इसे बसाया था। नगर को बाढ़ से बचाने के लिये एक बाँध बनाया गया है। मांडले से बर्मा की सभी जगहों के लिये स्टीमर सेवाएँ हैं। रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा यह रंगून से संबद्ध है। यहाँ की जनसंख्या का अधिकांश बौद्ध धर्मावलंबी हैं। यहाँ का मुख्य पगोडा पयाग्यी या अराकान है जो राजमहल से चार मील दूर स्थित है। यहाँ का मुख्य बाजार जैग्यो है। यहाँ विश्वविद्यालय भी है।
नगर में बर्मियों के अतिरिक्त हिंदू, मूसलमान, यहूदी, चीनी, शान एवं अन्य जाति के लोग निवास करते हैं। द्वितीय महायुद्ध के समय 1 मई 1942 ईo को जापानियों ने इसपर अधिकार कर लिया था। उस समय राजप्रासाद की दीवारों के अतिरिक्त लगभग सभी इमारतें जल गई थीं। अत: जापानियों ने इसे 'जलते हुए खंडहरोंवाला नगर' कहा।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "मांडले में कैद है तिलक की याद". मूल से 21 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 जुलाई 2019.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- A new Myanmar photobook by Claudia Wiens about people in Mandalay, Chin-, and other States, combined with Burmese fairy tales and personal travelogue. Published 2009
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