मुहम्‍मद फारूक चिश्‍ती (१९०१ - १९६८) , भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी तथा राजनेता थे। वे उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा में विधायक रहे। 1952 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के देवरिया (उत्‍तर पूर्व) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। [1] तीन बार विधायक रहे फारूक, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के बहुत करीबी रहे।

मुहम्‍मद फारूक चिश्‍ती

Mohammad Farooq Chishti

मोहम्मद फ़ारूक़ चिश्ती (M) जवाहरलाल नेहरू (R) और गोविंद बल्लभ पंत (L) के साथ

विधायक - 318 - देवरिया (उत्‍तर पूर्व) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र, उत्तर प्रदेश
कार्यकाल
1952 से 1957
कार्यकाल
1957 से 1962
कार्यकाल
1967 से 1968

जन्म देवरिया
राष्ट्रीयता भारतीय
शैक्षिक सम्बद्धता किंग एडवर्ड स्कूल

इलाहाबाद विश्वविद्यालय

धर्म इस्लाम

रेलवे स्टेशन रोड निवासी मौलवी मुहम्मद इस्माइल के छोटे बेटे मुहम्मद फारूक चिश्ती का जन्म 1901 में हुआ। उनके पिता बैरिस्टर मौलवी मुहम्मद इस्माइल मछलीशहर, जौनपुर में जन्मे, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से वक़ालत करने के बाद भारत लौटे तो देवरिया बस गए। फ़ारूक़ का परिवारवालों ने किंग एडवर्ड स्कूल (अब राजकीय इंटर कॉलेज) में दाखिला कराया। शुरुआती तालीम के दौरान ही ये देश को आजाद कराने के आंदोलनो में हिस्सा लेने लगे। चौरी चौरा कांड मे इनका नाम आया जिसके चलते हेडमास्टर अख्तर आदिल ने दूसरी जगह पढ़ाने के लिए भेजने का मशविरा दिया, ताकि अंग्रेजों की कार्यवाही से बच सके। इसके बाद इलाहाबाद गए, जहां फारूक को छात्रों की पहली सफल हड़ताल कराने का श्रेय है। उसी दरम्यान महात्मा गांधी के संपर्क में आए और उनके के बहुत करीबी हो गए।

उसके बाद गांधी और नेहरू जब भी देवरिया जिले में आए तो रेलवे स्टेशन रोड स्थित चिश्ती हाउस में रुके। जंग-ए-आजादी के अहम किरदार और महात्मा गांधी के करीबी मौलाना मज़हरुल हक़ की कोशिशों के बाद उनके बड़े भाई हामिद चिश्ती ने अंग्रेजों का साथ छोड़ा और आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गए और फिर कई बार कार्यवाही मे जेल भी गए। इसके चलते आजादी के दीवानों के लिए चिश्ती हाउस ठिकाना हो गया।

मुहम्मद फारूक चिश्ती ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। इन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना की तरफ से पाकिस्तान के गृह मंत्री के पद का प्रस्ताव लेकर आए सलेमपुर के राजा को बैरंग लौटा दिया, कहा कि मुस्लिम लीग का टिकट नहीं, बल्कि देश की आजादी चाहिए।

उत्तर प्रदेश में 1950 में चार विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस के देवरिया में फारूक चिश्ती जीत हासिल कर सके। इसके अलावा 1952 में आम चुनाव में जीते और 1957 में भी विजयी हुए, लेकिन 1962 में पराजित हो गए। 1967 में तीसरी बार विधायक बने। 1968 में उनका इंतकाल हो गया। [2]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "उत्तर प्रदेश विधान सभा". मूल से 10 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  2. Empty citation (मदद)