मो.हिफ्ज़ुर्रहमान स्योहारवी
मौलाना हिफ्ज़ुर रहमान स्योहारवी (1900 – 2 अगस्त 1962) भारत के सुन्नी इस्लामी विद्वान और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी तथा मुस्लिम राष्ट्रवादी राजनेता थे।[1]
हिफ्ज़ुर रहमान स्योहारवी | |
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पद बहाल 1952–1962 | |
चुनाव-क्षेत्र | अमरोहा |
तीसरी लोकसभा में सांसद
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जन्म | 1900 स्योहारा, बिजनौर जिला |
मृत्यु | 2 अगस्त 1962 | (उम्र 62 वर्ष)
समाधि स्थल | मुंहदियाँ, नई दिल्ली |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
शैक्षिक सम्बद्धता | जामिया क़समिया मदरसा शाही, दारुल उलूम देवबन्द |
जीवन परिचय एवं राजनैतिक सफर
संपादित करेंमौलाना का जन्म 1901 ई• में उत्तर प्रदेश राज्य के ज़िला बिजनौर के कस्बा स्योहारा में हुआ था। इनकी तालीम इस्लामी तौर तरीकों से हुई। वह बड़े होकर आलिम बने। 1919 में अटृठारह वर्ष की उम्र में खिलाफत आंदोलन से जुड़े और रोलेंट एक्ट के विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए।
1920 में गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन में चढ़बढ़ कर हिस्सा लिया। 1930 में गांधी जी की दांडी मार्च व सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल गए। 1940 में मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग का जमकर विरोध किया और गलत बताया। 1942 में गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
1947 के भारत बंटवारे की कड़ी आलोचनाएं की। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह कांग्रेस की ओर से मई 1949 में हापुड़- खुर्जा सीट से यूपी असेम्बली के निर्विरोध सदस्य चुने गए। 14 जनवरी 1950 को वह संविधान सभा के सदस्य मनोनीत किए गए।
1952, 1957, 1962 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर तीन बार उत्तर प्रदेश की अमरोहा संसदीय सीट से सांसद चुने गए। अमरोहा की जनता उनसे इतनी मुहब्बत करती थी, कि जब 1962 के चुनाव के दौरान वह अपने इलाज के लिए अमेरिका गए हुए थे तो अमरोहा की जनता ने उन्हें उनकी गैरमौजूदगी में सांसद चुना।
मौलाना जंग ए आज़ादी के जोशीले मुजाहिद थे। अपनी तकरीर से अवाम के दिलो में आज़ादी का जोश भर दिया करते थे। आज़ादी के खातिर अंग्रेज़ो की जेल भी काटी पर ब्रिटिश शासन के आगे सर नही झुकाया। मौलाना कोमो मिल्लत की बड़ी हमदर्दी थी। संसद में अपनी बात बड़ी बेबाकी से कहते थे। इसलिए अमरोहा की जनता ने उन्हें "मुजाहिदे मिल्लत" का खिताब से नवाज़ा था।
मौलाना एक स्वतंत्रता सेनानी व सियासी लीडर होने के साथ-साथ ज़बरदस्त आलीम, बेहतरीन उस्ताद, शानदार लेखक भी थे। मौलाना जमीयते ओलामा ए हिन्द के सचिव के रूप में कार्यभार संभाल चुके हैं। मौलाना साहब हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर व प्रतीक थे। 2 अगस्त 1962 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Maulana Hifzur Rahman and his Qasas-ul-Qur'an". Arab News (अंग्रेज़ी में). 2013-02-22. अभिगमन तिथि 2021-03-17.