युग चारण
राष्ट्रवादी कवियों की उपाधि
युग चारण एक भारतीय उपाधि है जिसका अर्थ 'युग अथवा काल का चारण' है, उन कवियों के लिए जो अपने जीवंत लेखन द्वारा देश की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं को आवाज देते हैं। इसका उल्लेख हो सकता है:
यह भी देखें
संपादित करें- राष्ट्रकवि
- कविराज
- ↑ Lāla, Vaṃśīdhara (1989). Bhāratīya svatantratā aura Hindī patrakāritā. Bihāra Grantha Kuṭīra.
भारतेन्दु युग चारण थे । उनकी पत्रिकाओं में भारतीयों के हृदय की धड़कन सुनायी पड़ती है । अंग्रेजी - राज्य में जनता की गुलामी के बन्धन और उनके शोषण की उन्होंने सच्ची तस्वीर खींची । उन्होंने अंग्रेजों के तथाकथित न्याय , जनतंत्र और उनकी सभ्यता का पर्दाफाश किया । उनके इस कार्य की सराहना करते हुए डा ० रामविलास शर्मा ने लिखा- ' देश के रूढ़िवाद का खंडन करना और महंतों , पंडे - पुरोहितों की लीला प्रकट करना निर्भीक पत्रकार हरिश्चन्द्र का ही काम था ।
- ↑ Sekhāvata, Kalyāṇasiṃha (1989). Rājasthānī bhāshā, sāhitya, saṃskr̥ti. Rājasthānī Granthāgāra.
आधुनिक युग चारण काव्य परम्परा के उत्तरक्रम के कवियों में हींगलाजदान कविया को लिया जा सकता है , जिन्होंने वीर रस प्रधान काव्यों का प्ररणयन किया। इनके अतिरिक्त आपकी कुछ रचनाएँ काव्यशास्त्र से जुड़ी भी उपलब्ध होती हैं , जिनमें ' प्रत्यय पयोधर ' प्रमुख है ।
- ↑ Ātura, Prakāśa (1979). Rājasthāna kī Hindī kavitā. Saṅghī Prakāśana.
कवि ने जिस युग में सृजन क्रम प्रारम्भ किया, वह राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम का पावन क्षरण था प्रतः सेठिया जैसा दार्शनिक चितन अपने परिवेश से भसम्पृक्त न रह सका और वह भी युगवाणी में अपना स्वर मिला कर, युग चारण के दायित्व का निर्वाह करने लगा।
- ↑ Sārasvata, Gaṇeśadatta (1978). Sāhityika nibandha. Vidyā Vihāra.
यह वर्णन कवि की सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का परिचायक है। इस प्रकार हम देखते हैं कि चतुर्वेदी जी सच्चे अर्थों में युग चारण हैं। उन्होंने आजीवन राष्ट्रीयता की अलख जगाया । उनकी वाणी राष्ट्र के मर्म की वाणी बन गई है । आधुनिक राष्ट्रीय काव्यधारा में बलि पत्थी युग - तारुण्य के ज्योति पुरुष के रूप में वे सर्वथा अविस्मरणीय हैं ।
- ↑ Varadā. Rājasthāna Sāhitya Samiti. 1999.
डॉ. मनोहर शर्मा का कवि जनजीवन से सम्पृक्त रहा है। उनके काव्य ने युग को वाणी दी है । वे युग चारण रहे हैं । समाज में व्याप्त असमानताओं , विषमताओं एवं विद्रूपताओं पर उन्होंने आक्रोश प्रकट किया है । अपनी कृतियों में उन्होंने यत्र तत्र करारे व्यंग्य भी किए हैं ।
- ↑ Śrīmālī, Rāmeśvaradayāla (1993). Padmanābha. Sāhitya Akādemī. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7201-340-0.
कहने की आवश्यकता नहीं कि पद्मनाभ जैसे युग चारण कवि कभी-कभी ही पैदा होते हैं और अपने समय के काव्य ही नहीं, इतिहास को भी धार देते हैं। सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा ने कान्हडदे प्रबन्ध एवं पद्मनाभ के सम-सामयिक रचनाकारों के प्रबन्ध - काव्यों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया है ।
- ↑ Dāmodara, Śrīhari (1975). Ādhunika Hindī kavitā meṃ rāshṭrīya bhāvanā, san 1857-1947. Bhārata Buka Ḍipo. पृ॰ 472.
उन्हें युग चारण की संज्ञा देकर हिन्दी के आलोचकों ने उनके काव्य की मूल भूमि को राष्ट्रीयता माना है।
- ↑ Swarnkiran (1970). Santa Ravidāsa aura unakā kāvya. Samakālīna Prakāśana.
रविदास : एक युगचारण रविदास का आविर्भाव एक युग - चारण के रूप में हुआ । कहते हैं , जब किसी युग में विरोधी शक्तियाँ प्रबल हो जाती हैं और देश विशेष में प्रतनोन्मुखी प्रवृत्तियाँ जोर पकड़ती हैं, सन्तों, महात्माओं, उपदेशकों और नेताओं का जन्म होता है । कभी-कभी एक ही सन्त या महात्मा या उपदेशक अथवा नेता का अवतार होता है, और कभी-कभी एक ही व्यक्ति सन्त, महात्मा, उपदेशक और नेता सबके रूप में अपना कार्य करता है ।
- ↑ कोरोनाकालीन साहित्य, कोरोना आलोचना पर एकाग्र-1,2,3, वर्ष-21, अंक-5,6,7, मई,जून एवं जुलाई 2021, आवरण एवं पृष्ठ-80
- ↑ Sākshātkāra. Ma. Pra. Śāsana Sāhitya Parishad. 2009.
विमर्श का विषय रखा गया था ' युग चारण श्रीकृष्ण सरल ' जिसकी अध्यक्षता श्री बलवीर सिंह ' करुण ' ने की ।