रजीअ़ की घटना या सरिय्या रजी (अंग्रेज़ी: Expedition of Al Raji यह उहुद की लड़ाई के ठीक बाद धर्म शिक्षा के लिए °इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद द्वारा अनुरोध पर दस सहाबा भेजे गये थे उन पर ले जाने वालों का रजि नामक चश्मे के स्थान पर हमले की घटना है। यह लड़ाई इस्लामिक कैलेंडर के वर्ष एएच 4 में हुई। सभी सहाबा को शहीद (इस्लाम) कर दिया गया था।

रजीअ़ की घटना
तिथि 625, चौथा हिजरी , उहुद की लड़ाई के बाद
स्थान en:al-Raji
परिणाम
  • मुहम्मद इस्लाम का प्रचार करने के लिए मिशनरी भेजते हैं
  • मिशनरियों को खड़ा किया गया और मार डाला गया[1]
योद्धा
मुसलमान बनू लहयान जनजाति
शक्ति/क्षमता
10 [1] Unknown
मृत्यु एवं हानि
10[2] 0

पृष्ठभूमि

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उहुद की लड़ाई के तुरंत बाद, अदल और अल-कराह के पुरुषों का एक समूह मुहम्मद के पास आया; उनसे अनुरोध किया कि वे अपने लोगों को इस्लाम सिखाने के लिए कुछ प्रशिक्षकों को उनके साथ भेजें, जिन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया है। मुहम्मद इस पर सहमत हुए, और तुरंत उनके साथ छह पुरुषों (या इब्न साद के अनुसार दस पुरुष) भेजे । हालाँकि, उन दूतों को बनू लहयान द्वारा भेजा गया था, जो सरिय्या अब्दुल्लाह बिन उनैस के अभियान में अपने प्रमुख, खालिद बिन सुफियान की हत्या का बदला लेना चाहते थे। मुहम्मद द्वारा चुने गए छह सहाबा में हज़रत आसिम रजि० बिन साबित या मरसद बिन अबी मरसद गुनवी [3]को इस प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख नियुक्त किया गया था।

मुसलमानों पर हमला

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मुस्लिम विद्वान सफिउर्रहमान मुबारकपुरी के अनुसार,

पैग़म्बर मुहम्मद ने दीन सिखाने और कुरआन पढ़ाने के लिए सहाबा को इब्ने इस्हाक़ के कहने के मुताबिक छ: लोगों को और सहीह बुख़ारी की रिवायत के मुताबिक दस आदमियों को रवाना फ़रमाया और इब्ने इस्हाक़ के कहने के मुताबिक़ मरसद बिन अबी मरसद गुनवी को और सहीह बुखारी की रिवायत के मुताबिक आसिम रज़ि० बिन उमर बिन ख़त्ताब के नाना हज़रत आसिम रजि० बिन साबित को उनका अमीर मुकर्रर फ़रमाया। जब ये लोग राबिग और जद्दा के बीच कबीला हुज़ैल के रजीअ नामी एक चश्मे पर पहुंचे तो उन पर अल और कारा के ज़िक्र किए गए लोगों ने हुज़ैल क़बीला की एक शाखा बनू लहयान को चढ़ा दिया और बनू लहयान के कोई एक सौ तीरअंदाज़ उन के पीछे लग गए और क़दम के निशानों को देख-देख कर उन्हें जा लिया। इन सबाहा किराम रजि० ने एक टीले पर पनाह ली। बनू लहयान ने उन्हें घेर लिया और कहा, “तुम्हारे लिए वचन है कि अगर हमारे पास उतर आओ तो हम तुम्हारे किसी आदमी को क़त्ल नहीं करेंगे।" हज़रत आसिम रज़ि० ने उतरने से इंकार कर दिया और अपने साथियों सहित उन से लड़ाई शुरू कर दी।

आखिरकार तीरों की बौछार से सात आदमी शहीद हो गए और सिर्फ तीन आदमी हज़रत खुवैव रज़ि० जैद बिन दसना और एक और सहाबी बाकी बचे अब फिर बनू लहान ने अपना वायदा दोहराया और इस पर तीनों सहाबी इनके पास उतर आए, लेकिन उन्होंने काबू पाते ही बद- अहदी की और उन्हें अपनी कमानों की तांत से बांध लिया। इस पर तीसरे सहाबी ने यह कहते हुए कि यह पहली बद-अहदी हैं, उनके साथ जाने से इंकार कर दिया। उन्होंने खींच घसीट कर साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन सफल न हुए तो उन्हें कत्ल कर दिया और हज़रत खुबैब और जैद रज़ि० का मक्का ले जाकर बेच दिया। इन दोनों सहाबा रज़ि० ने बद्र की लड़ाई दिन मक्का के सरदारों को कत्ल किया था।

हज़रत खुबैब रज़ि० कुछ दिनों मक्का वालों की कैद में रहे, फिर मक्का वालों ने उनके कत्ल का इरादा किया और उन्हें हरम बाहर नओम ले गए। जब सूली पर चढ़ाना चाहा तो उन्होंने फ़रमाया, "मुझे छोड़ दो, मैं तनिक दो रक्त नमाज़ पढ़ लूं। मुश्किों ने छोड़ दिया और आपने दो रक्त नमाज़ पढ़ी। जब सलाम फेर चुके तो फ़रमाया, अल्लाह की क़सम! अगर तुम लोग यह न कहते कि मैं जो कुछ कर रहा हूं घबराहट की वजह से कर रहा हूं तो मैं कुछ और लम्बा करता । इस के बाद फ़रमाया, ऐ अल्लाह ! इन्हें एक-एक कर के गिन ले, फिर उन्हें बिखेर कर मारना और इनमें से किसी एक को बाकी मत छोड़ना।"

इसके बाद मुश्किों ने उन्हें सूली पर लटका दिया और उनकी लाश की निगरानी के लिए आदमी मुकर्रर कर दिए, लेकिन हज़रत अन बिन उमैया जुमरी रज़ि० तशरीफ लाए और रात में झांसा देकर लाश उठा ले गए और उसे दफन कर दिया। हज़रत खुवैब रज़ि० का कातिल उक़बा बिन हारिस था हज़रत खुबैब ने उसके बाप हारिस को बद्र की लड़ाई में कत्ल किया था ।

सही बुखारी में रिवायत है कि हज़रत खुबैब रज़ि० पहले बुजुर्ग हैं जिन्होंने कत्ल के मौके पर दो रक्त नमाज़ पढ़ने का तरीका निकाला। उन्हें कैद में देखा गया कि वे अंगूर के गुच्छे खा रहे थे, हालांकि उन दिनों मक्का में खजूर भी नहीं मिलती थी ।

दूसरे सहाबी जो इस घटना में गिरफ्तार हुए थे, यानी हज़रत ज़ैद बिन दसना, उन्हें सफ़वान बिन उमैया ने ख़रीद कर अपने बाप के बदले कत्ल कर दिया।[4] [5][6]

सराया और ग़ज़वात

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अरबी शब्द ग़ज़वा [7] इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया,इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह(सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है।[8] [9] <ref>

इन्हें भी देखें

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  1. Mubarakpuri, The sealed nectar: biography of the Noble Prophet, pp. 350-351.
  2. Dr. Mosab Hawarey, The Journey of Prophecy; Days of Peace and War (Arabic) Archived 2012-03-22 at the वेबैक मशीन, Islamic Book Trust (2010). Note: Book contains a list of battles of Muhammad in Arabic, English translation available here
  3. سریہ مرثد بن ابو مرثد https://ur.wikipedia.org/s/4tok
  4. Safiur Rahman Mubarakpuri, en:Ar-Raheeq Al-Makhtum -en:seerah book. "The Raji' Mobilization". पृ॰ 395.
  5. सफिउर्रहमान मुबारकपुरी, पुस्तक अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ). "रजीअ़ की घटना". पृ॰ 583. अभिगमन तिथि 13 दिसम्बर 2022.
  6. "हादिसए रजीअ, पुस्तक 'सीरते मुस्तफा', शैखुल हदीस मौलाना अब्दुल मुस्तफ़ा आज़मी, पृष्ट 289". Cite journal requires |journal= (मदद)
  7. Ghazwa https://en.wiktionary.org/wiki/ghazwa
  8. siryah https://en.wiktionary.org/wiki/siryah#English
  9. ग़ज़वात और सराया की तफसील, पुस्तक: मर्दाने अरब, पृष्ट ६२] https://archive.org/details/mardane-arab-hindi-volume-no.-1/page/n32/mode/1up

बाहरी कड़ियाँ

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  • अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ), पैगंबर की जीवनी (प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित पुस्तक), हिंदी (Pdf)