राऊत
- एक ही नाम के मराठा जाती से है ।
राउत एक भारतीय , कुर्मी, धानुक, जाती का उप-विभाजन है, ।[1] कुर्मी के लोगों को राऊत, आदि नामों से भी जाना जाता है ।[2]राउत एक 96 कुली मराठा का उपनाम है, ।[1] जयसवार कुनबी 96 कुली मराठा है ।[2] मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब 'शिवाजी एंड हिज़ टाइम्स' में लिखते हैं, ''जय सिंह ने शिवाजी को यह उम्मीद दिलाई कि हो सकता है कि औरंगज़ेब से मुलाकात के बाद कि वो दक्कन में उन्हें अपना वायसराय बना दें और बीजापुर और गोलकुंडापर कब्ज़ा करने के लिए उनके नेतृत्व में एक फौज भेजें. हाँलाकि, औरंगज़ेब ने इस तरह का कोई वादा नहीं किया था.''[3]मराठा दरबार में जब इस विषय पर चर्चा हुई तो यह तय किया गया कि शिवाजी को औरंगज़ेब से मिलने आगरा जाना चाहिए.शिवाजी अपनी माँ जीजाबाई को राज्य का संरक्षक बनाकर पाँच मार्च, 1666 को औरंगज़ेब से मिलने आगरा के लिए निकल पड़े l छत्रपति शिवाजी महाराज 9 मई 1666 को औरंगजेब के दरबार में पहुंचे थे, जब उन्होंने अपने साथलगभग 3000 जयसवार मराठा सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी लेकर आगरे का दौरा किया था। औरंगजेब ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें आगरे के किले में कैद कर दिया गया था।[4]कुछ दिन बाद शिवाजी ने यह पेशकश कर दी कि वो अपने साथ आए मराठा जयसवारों को वापस भेजना चाहते हैं. बादशाह ख़ुद उन सैनिकों से पीछा छुड़ाना चाह रहे थे. वो यह जान कर खुश हो गए कि शिवाजी ने ख़ुद यह इच्छा प्रकट की .जब मराठा सेना जयसवार जा रहे थे तो औरंगजेब ने षड्यंत्र रचा और अपने सेनापति को आदेश दिया कि वापस जा रहे मराठा सेना को रास्ते में खत्म कर दी जाए यह बात जब सेना के सरदार को पता चला तो उसने सुना को अलग-अलग दिशाओं में जाने को कहा ताकि सी पर वह एक साथ हमला न कर सके और इसी कारण 3000 जयसवारो की सेना टुकड़ियां अलग-अलग क्षेत्र में बट गई और इसी कारण वह कभी एक साथ नहीं हो पाए और अलग-अलग स्थान पर निवास करने लगे. उसे समय तक उन लोगों ने जिस स्थान पर थे राउत उपनाम लगाना नहीं छोड़ा था और उनकी जातियां मराठा ही [5]जब अंग्रेजी शासन आया तो भारत की पहली जातीय जनगणना में उनका उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड, छत्तीसगढ़,ओडिशा पश्चिम बंगाल और असम अन्य राज्यों में कुर्मी(जयसवार) जाति में रखा गया जिसके कारण वह आज जायसवार कुर्मी कहे जाते हैं और वे आज भी राउत उपनाम का उपयोग करते हैं l
महत्वपूर्ण जन्संख्या वाले क्षेत्र |
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छत्तीसगढ़ |
भाषा |
धर्म |
राउत मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ राज्य, और पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, बंगाल और मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं। परंपरागत रूप से, वे मुख्य रूप से दुर्ग, रायपुर, बस्तर, नागपुर और भंडारा जिलों में मौजुद थे ।
संस्कृति
संपादित करेंपरंपरागत रूप से, राउत पशुपालन व चरवही में शामिल थे ।
राउत नाच यादव समुदाय का दीपावली पर किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य है।[3] यह समूह में किये जाने वाला नृत्य है। यह शौर्य नृत्य है। राउत नाच पुरुषों द्वारा किया जाता है जिसमें उम्र का कोई बंधन नही है। समूह में दो या तीन व्यक्ति महिला का वेशभूषा धारण किये रहते हैं जिसे 'परी' कहा जाता है। [4]
सन्दर्भ
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- ↑ Soni, Lok Nath (2000). The Cattle and the Stick: An Ethnographic Profile of the Raut of Chhattisgarh. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788185579573.
- ↑ "Central List of OBCs". National Commission for Backward Classes.
- ↑ "'यदु, यदुवंसी अऊ राउत नाच'". दैनिक भास्कर.
- ↑ "Raut Nacha-Culture & Heritage". दुर्ग ज़िला, छत्तीसगढ़ सरकार.