राजेश कुमार
यह लेख सामान्य उल्लेखनीयता निर्देशों के अनुरूप नहीं है। कृपया विषय के बारे में विश्वसनीय स्रोत जोड़कर उल्लेखनीयता स्थापित करने में सहायता करें। यदि उल्लेखनीयता स्थापित न की जा सकी, तो लेख को विलय, पुनर्निर्देशित अथवा हटाया जा सकता है।
स्रोत खोजें: "राजेश कुमार" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
राजेश कुमार राय - जनवादी नाटककार, का जन्म -11 जनवरी 1958 पटना, बिहार में हुआ।
राजेश कुमार नुक्कड़ नाटक आंदोलन के शुरुआती दौर 1986 से सक्रिय है। अब तक दर्जनों नाटक एवं नुक्कड़ नाट्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आरा की नाट्य संस्था युवानीति, भागलपुर की दिशा और शाहजहाँपुर की नाट्य संस्था अभिव्यक्ति के संस्थापक सदस्य। पेशे से ईन्जीनियर रहे , सन् 2018 में UPPCL के लखनऊ कार्सेयालय से मुख्य अभियंता के पद से सेवा निवृत । इन दिनो लखनऊ में निवास।
जन्म बिहार के पटना शहर में , प्रारंभिक शिक्षा बिहार के आरा और भागलपुर शहर में हुई | उच्च शिक्षा "भागलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज" के Electrical Engineering में स्नातक के बाद, अपनी सेवा उत्तर प्रदेश की बिजली विभाग में बतौर इंजीनियर शुरू की | राजेश कुमार की साहित्यिक, सांस्कृतिक परवरिश भोजपुर के आरा शहर में हुई । | नौकरी के सिलसिले में चली सफ़र भागलपुर, अलीगढ़, शाहजहांपुर जैसे छोटे - बड़े कइयों शहरों - कस्बों से होते हुए फिलहाल लखनऊ में कहने के लिए स्थिर हुए हैं। शुरुआत कहानी लेखन से किया लेकिन नाट्य लेखन, अभिनय और निर्देशन के भी अभिन्न हिस्सा बने हुए हैं। हाशिये पर रहनेवाले वंचित समाज की बेचैनी, छटपटाहट और करवटें उनकी कहानी और नाटक में हमेशा प्रमुखता से रहे हैं। और इसे अभिव्यक्त करने के लिए इन्होंने चौंकाने, चमत्कृत और चमकीले शब्दों का सहारा लेने के बजाय दिल में उतरकर दिमाग में दस्तक देने वाले शब्द, भाषा, कथ्य पर ज्यादा भरोसा किया है।
राष्ट्रीय नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक देवेंद्र राज अंकुर ने कहा कि राजेश कुमार ने अपने लेखन से समाज को आईना दिखाने का काम किया है । पूर्व निदेशक भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ, सूर्यमोहन क़ुलश्रेष्ठ जी का कहना है की राजेश कुमार ने ‘सत भासे रैदास ‘ नाटक में रैदास की क्रन्तिकारी छवि को दिखाने का प्रयास किया है। यही नहीं , उन्होंने तफ्तीश जैसा नाटक लिखा जिसमें एक समुदाय विशेष को लेकर समाज के नजरिये को बखूबी दर्शाने की कोशिश की गयी है। धर्म के पाखंड पर लिखा गया नाटक ‘ शुद्धि ‘भी काफी प्रासंगिक है। इप्टा के महासचिव राकेश जी ने इन्हें रंगमंच के प्रति काफी सजग, जागरूक और गंभीर नजरिया वाला नाटककार बताया। पुरस्कृत नाटककार राजेश कुमार ने कहा कि एक समय रंगमंच विपक्ष की भूमिका में था लेकिन आज प्रतिरोध की ताकत कम हुई है। अलग दुनिया के महासचिव के के वत्स ने कहा है , कि जो कहते हैं कि हिंदी में नाटकों का अभाव है या नाट्य लेखन की परंपरा क्षीण होती जा रही है , नाटककार राजेश कुमार उनके लिए जवाब हैं। लगभग 24 नुक्कड़ नाटक और 22 पूर्णकालिक नाटकों के लेखक राजेश कुमार के नाटक केवल कागजों में दर्ज नहीं है, देहरादून -लखनऊ-दिल्ली-मुम्बई जैसे महानगरों में उनके मंचन की लगातार ख़बरें आती रहती है। इसके अलावा शाहजहांपुर, भागलपुर, सीतापुर, रीवा, कटनी जैसे छोटे शहरों-कस्बों में भी कथ्य और विचार को लेकर इनके नाटक एक अलग पहचान बनाने में सफल रही है।
राजेश कुमार धारा के विरुद्ध चलकर भारतीय रंगमंच को संघर्ष के मोर्चे पर लानेवाले नाटककार हैं। उन्होंने अपने नाट्य जगत में उपेक्षित और उत्पीड़ित लोगों के प्रति गहरी पक्षधरता दिखाई है। समय और समाज से करीबी रिश्ता होने के कारण स्त्री, दलित समेत सभी शोषित समाज इनके नाटकों में रचा-बसा है। इनके नाटक केवल इन पर संवेदनात्मक रुख ही नहीं रखता बल्कि उनकी मुक्ति के लिए गहरे तौर पर खुल कर मोर्चा लेता हुआ दिखता है।
हाशिये के समाज को नाटक के केंद्र में लाने के लिए नुक्कड़ नाटक की जरूरत पड़ी तो राजेश कुमार ने लंबे समय तक नुक्कड़ों-चौराहों पर मुहिम के तहत नाटक किया और जब प्रोसिनयंम थिएटर को अभिजन से विलग कर आम दर्शकों की भागीदारी की जरूरत महसूस की तो मंच पर भी नए सौन्दर्य शास्त्र के साथ प्रस्तुत करने में कोई संकोच नहीं किया।
लगभग दो दर्जन नुक्कड़ नाटकों का लेखन कर चुके है l नुक्कर नाटक 'हमें बोलने दों' और 'जनतंत्र के मुर्गे' प्रकाशित है l नाटक से नुक्कर नाटक तक और मोर्चा लगता नाटक नुक्कर नाटक पुस्तिकाओं का संयुक्त संपादन भी इन्होने किया है l एकल नाटक संग्रह शताब्दी की पर्चियाँ प्रकाशित है l उनके पूर्णकालिक नाटक आंबेडकर और गाँधी, शुधि , हवनकुंड, गाँधी ने कहा था , तफ्तीश, मार पराजय, सुखिया मर गया भूख से, ने अपने अलग अंदाज़ एंव तेवर के कारन रंग जगत में एक अलग पहचान बनायीं हैl उनके नाटक ‘द लास्ट सैल्यूट’ को फ़िल्मकार महेश भट्ट काफी समय से विभिन नगरों में करते रहते हैं l ‘साड्डा अड्डा’और ‘मुक्क्दरपुर का मजनूं’, जैसी फिल्में भी उनके नाटकों से प्रेरित रहे है l राजेश कुमार अपने नाटकों में अक्सर उन विषयों को उठाते हैं जो रंगमंच पर कम ही दिखते रहे हैं। उनके नाटक में विचार प्रधान होते हैं और समाज के अंतर्विरोधों से मन के अंतर्द्वंदों को वे नाटक के मुहावरे में बड़े कौशल से अभिव्यक्त करते हैं।
प्रकाशन
संपादित करेंदेश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में दर्जनों कहानियां एंवनुक्कड़ नाटक प्रकाशित l देश के विभिन्न नाट्य संस्थाओं द्वारा इन नाटकों की हजारों सफल प्रस्तुतियां l कुछ लेखों के मलयालम में अनुवाद l
पूर्णकालिक नाटक
संपादित करें- आखिरी सलाम (1986)
- आखिरी सलाम (1996)
- पगड़ी संभाल जट्टा (1997)
- गांधी ने कहा था (1999) (अस्मिता थियेटर ग्रुप द्वारा अरविन्द गौड़ के निर्देशन मैं 35 शो संपन्न )
- अन्तिम युद्ध
- घर वापसी (2001)
- अम्बेड्कर और गांधी। अस्मिता थियेटर ग्रुप द्वारा अरविन्द गौड़ के निर्देशन मैं जुलाई 2009मैं शो।
- मार पराजय (2002)
- ट्रायल ऑफ़ एर्रोर्स
- सपने हर किसी को नहीं आते (2002)
- हवन कुण्ड (2003)
- सत भाषे रैदास (2006)
- सम्वाद दर सम्वाद
- झोपड़पट्टी
- सुखिया मर गया भूख से (2010)
- The Last salute (2011) (Mahesh Bhatt"s प्रस्तुत- सूत्रधार)
- हिन्दू कोड बिल (2011)
- हिंन्द स्वराज्य (2011)
- तफ्तीश (2012)
- श्राध (2014)
- गाय (2017)(सुखमंच थिएटर द्वारा शिल्पी मारवाह के निर्देशन में)
- कलाम (2019)
- खेल खत्म (2019)
एकल नाटक
संपादित करें- भेड़िये (1998 )
- मुग़लों ने सल्तनत बक्श दी (1997)
- रस प्रिया (1997)
- वैष्णव की फिसलन (1997)
- पूष की रात
- टोबा टेक सिंह
- पागल की डायरी
- एक क्लर्क की मौत
- राम की शक्ति पूजा
- डिक्टेटर रिटर्न्स
- मेरा राज हंस
- हनु हटेला से लड़की सेट क्यों नहीं होती ?
- पढ़िए कलिमा
- आदिवासी नहीं नाचेंगे
- क्या आप मोहम्मद आमीर खान को जानते हैं ?
- मूक नायक
नुक्कड़ नाट्य रूपांतरण
संपादित करें- सवा सेर गेहूं
- सद्गति
- मनोवृति
- पूष की रात
- कफ़न
चर्चित नुक्कड़ नाटक
संपादित करें- हमे बोलने दो (1982)
- जनतन्त्र के मुर्गे (1982)
- जिन्दाबाद- मुर्दाबाद (1983)
- रोशनी (1984)
- कल्चर उर्फ़ चढ़ गया ऊपर रे (1984)
- रंगा सियार
- भ्रष्टाचार का आचार (1986)
- क्रेन (1988)
- सुजाता मायने पैसा
- सोने का मटका बनाम लाटरी का झटका
- अयोध्या
- इक्कीसवीं सदी की ओर
- जाल
- आंख बंद और डिब्बा गोल
- ये दोगले
- माटी हो गइल लाल
- जाती परमो धर्मः
- तलाश
- जमीन हमारी है
- अश्वमेघ
- कठपुतली का नाच
- चिड़िया बोली चीं .. . चीं .. .चीं ...
प्रकाशित पुस्तके
संपादित करें- मोरचा लगाता नाटक (अरविन्द कुमार के साथ सन्युक्त सम्पादन)
- नाटक से नुक्कड़ नाटक तक
- जनतन्त्र के मुर्गे (नुक्कड़ नाटक संग्रह)
सम्मान
संपादित करें- सन 2007, "नई धारा रचना सान" से विभूषित।
- साहित्य कला परिषद् द्वारा आयोजित मौलिक, पूर्णकालिक नाट्य लेखन प्रतियोगिता में ‘कह रैदास खलास चमारा’ को 2008 का मोहन राकेश सम्मान।[1]
- सन 2009, राधे श्याम कथा वाचक सम्मान |
- सन 2012, दून घाटी रंगमंच , देहरादून द्वारा ' नाट्य रतन सम्मान ' और सेण्टर फॉर दलित आर्ट एंड लिटरेचर, नई दिल्ली द्वारा प्रथम दलित अस्मिता सम्मान |
- सन 2014, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, पुरस्कार नाट्य लेखन के लिए |
- सन 2015 , सेतु राष्ट्रीय नाट्य सम्मान l
- सन 2017, संघिता मंच द्वारा श्रेष्ठ नाटक पुरस्कार |
- जुगल किशोर स्मृति पुरस्कार (सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था 'अलग दुनिया' व भारतेंदु नाट्य अकादमी ' के संयुक्त तत्वाधान में 19 मार्च 2017 कों) l