अवंतीबाई

भारतीय स्वतंत्रता सेनानी
(रानी अवंतीबाई से अनुप्रेषित)
चित्र:Statue of zamindars also called Rani Avanti Bai, in bus stand of Balaghat district , Madhya Pradesh (cropped).jpg
बालाघाट जिला, मध्य प्रदेश में महिला जमींदार अवंतीबाई की मूर्ति
जमींदार अवन्तीबाई लोधी
(16 अगस्त 1831 - 20 मार्च 1858)
जन्मस्थल : ग्राम मनकेड़ी, जिला सिवनी, मध्य प्रदेश
मृत्युस्थल: देवहारगढ़, मध्य प्रदेश
प्रमुख संगठन: लोध,लोधी,क्षत्रिय ( राजपूत )
जमींदार अवंतीबाई लोधी  (जन्म 16 अगस्त 1831) एक भारतीय महिला जमींदार थी,जो स्वतंत्रता सेनानी और प्रथम शहीद वीरांगना बनीं थीं। यह मध्य प्रदेश में रामगढ़ जमींदार परिवार की महिला नायिका थीं। इनके पूर्वजो को अंग्रेजों के द्वारा जमींदार बनाया गया था। विद्रोह करने के बाद अंग्रेजी सरकार ने इनके परिवार की जमींदारी को जप्त करके अन्य लोगों को जमींदार बना दिया था।[1] 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की एक कट्टर विरोधी के रूप में जानी जाती हैं ।   [2]

पालक न्यायालय (1853) संपादित करें

रामगढ़ के राजा विक्रमाजीत सिंह को विक्षिप्त तथा अमान सिंह और शेर सिंह को नाबालिग घोषित कर रामगढ़ राज्य को हड़पने की दृष्टि से अंग्रेज शासकों ने पालक न्यायालय (कोर्ट ऑफ वार्ड्स) की कार्यवाही की एवं राज्य के प्रशासन के लिए सरबराहकार नियुक्त कर शेख मोहम्मद तथा मोहम्मद अब्दुल्ला को रामगढ़ भेजा, जिससे रामगढ़ रियासत "कोर्ट ऑफ वार्ड्स" के कब्जे में चली गयी। अंग्रेज शासकों की इस हड़प नीति का परिणाम भी रानी जानती थी, फिर भी दोनों सरबराहकारों को उन्होंने रामगढ़ से बाहर निकाल दिया। 1855 ई. में राजा विक्रमादित्य सिंह की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। अब नाबालिग पुत्रों की संरक्षिका के रूप में राज्य शक्ति रानी के हाथों आ गयी। रानी ने राज्य के कृषकों को अंग्रेजों के निर्देशों को न मानने का आदेश दिया, इस सुधार कार्य से रानी की लोकप्रियता बढ़ी।

क्षेत्रीय सम्मेलन (मई, 1857) संपादित करें

1857 ईस्वी में सागर एवं नर्मदा परिक्षेत्र के निर्माण के साथ अंंग्रेजों की शक्ति में वृद्धि हुई। अब अंग्रेजों को रोक पाना किसी एक राजा या तालुकेदार के वश का नहीं रहा। रानी ने राज्य के आस-पास के राजाओं, परगनादारों, जमींदारों और बड़े मालगुजारों का विशाल सम्मेलन रामगढ़ में आयोजित किया, जिसकी अध्यक्षता गढ़ पुरवा के राजा शंकरशाह ने की। इस गुप्त सम्मेलन के बारे में जबलपुर के कमिश्नर मेजर इस्काइन और मण्डला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन को भी पता नहीं था।

गुप्त सम्मेलन में लिए गए निर्णय के अनुसार प्रचार का दायित्व रानी पर था। एक पत्र और दो काली चूड़ियों की एक पुड़िया बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित करना। पत्र में लिखा गया- "अंग्रेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो या चूड़ियां पहनकर घर में बैठो।" पत्र सौहार्द और एकजुटता का प्रतीक था तो चूड़ियां पुरुषार्थ जागृत करने का सशक्त माध्यम बनी। पुड़िया लेने का अर्थ था अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति में अपना समर्थन देना।

क्रांति का प्रारम्भ संपादित करें

देश के कुछ क्षेत्रों में क्रांति का शुभारम्भ हो चुका था। 1857 में 52वीं देशी पैदल सेना जबलपुर सैनिक केन्द्र की सबसे बड़ी शक्ति थी। 18 जून को इस सेना के एक सिपाही ने अंग्रेजी सेना के एक अधिकारी पर घातक हमला किया। जुलाई 1087 में मण्डला के परगनादार उमराव सिंह ठाकुर ने कर देने से इनकार कर दिया और इस बात का प्रचार करने लगा कि अंग्रेजों का राज्य समाप्त हो गया। अंग्रेज, विद्रोहियों को डाकू और लुटेरे कहते थे। मण्डला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन ने मेजर इस्काइन से सेना की मांग की। पूरे महाकौशल क्षेत्र में विद्रोहियों की हलचलें बढ़ गईं। गुप्त सभाएं और प्रसाद की पुड़ियों का वितरण चलता रहा।

इस बीच राजा शंकरशाह और राजकुमार रघुनाथ शाह को दिए गए मृत्युदण्ड से अंग्रेजों की नृशंसता की व्यापक प्रतिक्रिया हुई। वे इस क्षेत्र के राज्यवंश के प्रतीक थे। इसकी प्रथम प्रतिक्रिया रामगढ़ में हुई। रामगढ़ के सेनापति ने भुआ बिछिया थाना में चढ़ाई कर दी। जिससे थाने के सिपाही थाना छोड़कर भाग गए और विद्रोहियों ने थाने पर अधिकार कर लिया। रानी के सिपाहियों ने घुघरी पर चढ़ाई कर उस पर अपना अधिकार कर लिया और वहां के तालुकेदार धन सिंह की सुरक्षा के लिए उमराव सिंह को जिम्मेदारी सौंपी। रामगढ़ के कुछ सिपाही एवं मुकास के जमींदार भी नारायणगंज पहुंचकर जबलपुर-मण्डला मार्ग को बंद कर दिया। इस प्रकार पूरा जिला और रामगढ़ राज्य में विद्रोह भड़क चुका था और वाडिंग्टन विद्रोहियों को कुचलने में असमर्थ हो गया था। वह विद्रोहियों की गतिविधियों से भयभीत हो चुका था।

खैरी युद्ध (23 नवम्बर 1857) संपादित करें

मण्डला नगर को छोड़कर पूरा जिला स्वतंत्र हो चुका था। अवंती बाई ने मण्डला विजय के लिए सिपाहियों सहित प्रस्थान किया। रानी की सूचना प्राप्त होने पर शहपुरा और मुकास के जमींदार भी मण्डला की ओर रवाना हुए। मण्डला पहुंचने के पूर्व खड़देवरा के सिपाही भी रानी के सिपाहियों से मिल गए। खैरी के पास अंग्रेज सिपाहियों के साथ अवंती बाई का युद्ध हुआ। वाडिंग्टन पूरी शक्ति लगाने के बाद भी कुछ न कर सका और मण्डला छोड़ सिवनी की ओर भाग गया। इस प्रकार पूरा मण्डला जिला एवं रामगढ़ राज्य स्वतंत्र हो गया। इस विजय के उपरांत आन्दोलनकारियों की शक्ति में कमी आ गई, किन्तु उल्लास में कमी नहीं आयी। रानी रामगढ़ वापस हो गईं।

घुघरी में अंग्रेजों का नियंत्रण संपादित करें

वाडिंग्टन ने फिर से रामगढ़ के लिए प्रस्थान किया। इसकी जानकारी रानी को मिल गई। रामगढ़ के कुछ सिपाही घुघरी के पहाड़ी क्षेत्र में पहुंचकर अंग्रेजी सेना की प्रतीक्षा करने लगे। लेफ्टिनेंट वर्टन के नेतृत्व में नागपुर की सेनाएं बिछिया विजय कर रामगढ़ की ओर बढ़ रही हैं, इसकी जानकारी वाडिंग्टन को थी, अत: वाडिंग्टन घुघरी की ओर बढ़ा। 15 जनवरी 1858 को घुघरी पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

  1. Gupta, Charu (18 May 2007). "Rajput 'Viranganas' and Reinvention of 1857". Economic and Political Weekly. 42 (19): 1742. JSTOR 4419579.
  2. Narayan, Badri (2006). Women Heroes and Dalit Assertion in North India: Culture, Identity, and Politics. SAGE Publications. पपृ॰ 26, 48, 79, 86. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-8-17829-695-1.