रानी पोखरी
रानी पोखरी (नेपाली: रानी पोखरी) जिसका शाब्दिक अर्थ है रानी का तालाब। इसे नेपाल में न्हु पुखू (नेपाली: एन्हु पुखू) के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है नया तालाब। नेपाल के काठमांडू के मध्य में स्थित यह एक ऐतिहासिक कृत्रिम तालाब है। इसका निर्माण काल लगभग 17वीं शताब्दी के आसपास है। तत्कालीन शहर की सीमा के पूर्वी हिस्से में यह स्थित है तथा शहर के द्वार के ठीक बाहर स्थित है। तालाब काठमांडू के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है और अपने धार्मिक और सौंदर्य महत्व के लिए जाना जाता है। इसका आयाम 180 मीटर गुणा 140 मीटर है।[1][2]
रानी पोखरी | |
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स्थान | काठमांडू, नेपाल |
निर्देशांक | 27°42′28″N 85°18′56″E / 27.707847°N 85.315447°Eनिर्देशांक: 27°42′28″N 85°18′56″E / 27.707847°N 85.315447°E |
प्रकार | तालाब |
निर्मित | 1670 ई॰ |
सतही क्षेत्रफल | 7.7 एकड़ (3.1 हे॰) |
जल आयतन | 30,000,000 लीटर (6,600,000 ब्रिटिश गैलन; 7,900,000 अमेरिकी गैलन) |
बनावट
संपादित करेंरानी पोखरी का निर्माण 1670 ईस्वी में राजा प्रताप मल्ल द्वारा किया गया था, जो मल्ल वंश के प्रतापी सम्राटों में से एक थें। इस वंश ने 600 से अधिक वर्षों तक नेपाल पर शासन किया था। प्रताप मल्ल ने अपनी रानी को सांत्वना देने के लिए तालाब का निर्माण कराया था, जो अपने बेटे को हाथी द्वारा कुचले जाने के बाद दुःख से व्याकुल थी। तालाब निर्माण हेतु उन्होंने नेपाल और भारत में विभिन्न पवित्र स्थानों और नदी संगमों जैसे गोसाईकुंडा, मुक्तिनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ से पानी एकत्र किया।[3][4]
हिंदू देवता शिव के एक रूप, मातृकेश्वर महादेव को समर्पित एक मंदिर भी तालाब के केंद्र में स्थित है। यहां हरिशंकरी की एक मूर्ति है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की एक मात्र संयुक्त मूर्ति है। तालाब के दक्षिणी तटबंध पर प्रताप मल्ल और उनके दो पुत्र चक्रवर्तीेंद्र मल्ल और महिपतेंद्र मल्ल की छवियों वाले हाथी की एक बड़ी पत्थर की मूर्ति स्थित है। एक भूमिगत जल स्रोत के माध्यम से तालाब को भरा जाता है, साथ ही तालाब के अंदर सात कुएं भी हैं।[1]
तालाब के चारों कोनों पर चार छोटे मंदिर स्थित हैं:- उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व में भैरव मंदिर, दक्षिण-पूर्व में महालक्ष्मी मंदिर और दक्षिण-पश्चिम में गणेश मंदिर। पूर्वी तरफ के मंदिर अब त्रि चंद्र कॉलेज और एक पुलिस स्टेशन के परिसर में स्थित हैं, जिसने उनके सांस्कृतिक महत्व को कम कर दिया है।[1][5]
रानी पोखरी को लोहे की सलाखों से बांध दिया जाता है और साल में एक बार तिहाड़ के पांचवें और अंतिम दिन भाई दूज और छठ उत्सव के दौरान खोला जाता है। दुनिया का सबसे बड़ा छठ उत्सव हर साल रानीपोखरी में ही होता है। तालाब उन महिलाओं को भी समर्पित हैं जो ठंडे पानी में जाती हैं और सूर्य भगवान से प्रार्थना करती हैं।[6]
रानी पोखरी शिलालेख
संपादित करेंराजा प्रताप मल्ल ने रानी पोखरी में तीन भाषाओं में लेखन के साथ एक पत्थर की शिलालेख स्थापित की। ये तीन भाषाएँ संस्कृत, नेपाली और नेपाल भाषा है। यहाँ नेपाल संवत् 790 (1670 ईस्वी) दिनांकित है और रानी पोखरी के निर्माण और इसके धार्मिक महत्व का वर्णन है। इसमें गवाह के रूप में पांच ब्राह्मण, पांच प्रधान (मुख्यमंत्री) और पांच खास मगर का भी उल्लेख है।[1]
विवादास्पद उन्नयन
संपादित करेंनेपाल के 2015 के भूकंप के बाद रानी पोखरी पर बहाली का काम जनवरी 2016 में शुरू हुआ और जो की विवादों से भरा रहा। मूल योजनाओं में पारंपरिक ईंट और मिट्टी के बजाय बहाली के लिए कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया था। स्थानीय विरोधों की एक श्रृंखला के बाद, तालाब को उसी तरह बहाल करने का निर्णय लिया गया जैसा 1670 में था और इसका पुनर्निर्माण अक्टूबर 2020 में पूरा हुआ।[7][8][9][10]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ इ ई Tribhuvan University Teachers' Association (June 2012). "Historical and Environmental Study of Rani Pokhari". Government of Nepal, Ministry of Environment, Science and Technology. पृ॰ 4-5. मूल से 22 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 February 2014.
- ↑ Amatya, Saphalya (2003). Water & Culture (PDF). पृ॰ 25. मूल (PDF) से 22 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 February 2014.
- ↑ Chitrakar, Anil (30 July 2010). "Infant Mortality". ECS NEPAL. Kathmandu. अभिगमन तिथि 7 February 2014.
- ↑ "Majestic Rani Pokhari". Republica. Kathmandu. 1 November 2013. अभिगमन तिथि 7 February 2014.
- ↑ Regmi, DR (1966). Medieval Nepal: A history of the three kingdoms, 1520 AD to 1768 AD. Firma K. L. Mukhopadhyay. पृ॰ 110.
- ↑ "Chhath Puja in Ranipokhari, world's largest : ICIMOD". मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 नवंबर 2021.
- ↑ Rani Pokhari blunder, The Kathmandu Post, September 28, 2018, retrieved 14 September 2019
- ↑ Reconstruction work of Rani Pokhari resumes by Anup Ojha, The Kathmandu Post, March 6, 2019, retrieved 14 September 2019
- ↑ Bhaktapur sets an example for local-led heritage reconstruction, while Kathmandu and Patan fall short by Timothy Aryal, The Kathmandu Post, April 25, 2019, retrieved 14 September 2019
- ↑ Nepal completes reconstruction of historical 'Rani Pokhari', The Times of India, 22 October 2020, retrieved 12 August 2021