रामठाकुर बाबा
बिहार के सुपौल जिले के प्रतापगंज प्रखंड के सिरीपुर गाँव में रामठाकुर बाबा का गहबर है। यहाँ आसपास के कई गाँवों से लोग अपनी इच्छा लेकर आते हैं,और संतुष्ट होकर जातेहै।यहाँ रामठाकुर बाबा पिंडी रुप में विराजमान हैं॥
श्री राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे शहस्त्रनाम तत्तुल्यं श्री रामनाम वरानने
इतिहास
संपादित करेंइस मंदिर और रामठाकुर बाबा का इतिहास बहुत प्राचिन है।यह कथा आज से लगभग एक सौ पचास वर्ष पहले सुरु होता है। सिरीपुर में एक अद्भुत और चमत्कारी बच्चे का जन्म हुआ। *इनके ईश्वरीय तेज को इनकी माँ सह न सकी।और जन्म के समय ही स्वर्गवासी हो गई। *पिता ने इनका नाम रामठाकुर रखा।इनका बचपन अन्य बच्चों की तरह सामान्य न बिता।इनके चेहरे पर दिव्य मुस्कान के साथ अद्भुत तेज हमेशा झलकता रहता था।किसी बिमार व्यक्ति को इनके छुने मात्र से तुरंत आराम मिल जाता था। अन्य बच्चों की तरह वे खेलकुद और मस्ती नही किया करते थे। वे हमेशा हि ध्यानमग्न हो जाया करते थे।उनका बचपन इसी तरह एकांतमय ही बिता।जब वे किशोरावस्था में पहूँचे,उनके पिता उन्हें खेती में मदद करने के लिए दबाव बनाने लगे।पर इनका मन तो बस ध्यान और उपासना में ही रहता था।एक बार उनके पिता उन्हें जबरदस्ती धान रोपने के लिए ले के चले गए।उन्होंने जितना धान रोपा,वो सात दिन में ही पककर काटने योग्य हो गया।ये बात गाँव के साथ साथ पुरे इलाके में फैल गया।कई अंग्रेज अफसर भी उनके शरण में आए।उन्होंने सबको आशीष दिया।अब उनके लोककल्याण का कार्य सुरु हो गया।उनके पिता भी समझ गए की मेरे घर भगवान ने जन्म लिया है।इसीतरह लोकसेवा करते-करते जब वो उन्चास साल के हुए।एक दिन अपने पिता को लेकर गाँव के बिच एक खेत (जहाँ अभी मंदिर स्थित है) में लेकर आ गए,और अपने हाथों से एक पीपल का पौधा रोपा,फिर अपने पिता से कहा- "पिताजी मेरा प्रत्यक्छ कार्य अवधि अब पुरा हो गया,अब मैं अंतरध्यान हो रहा हूँ, जब भी कोई इच्छा लेकर मेरे पास आएगा,में उसे कभी निराश नहीं करुंगा'" |ईतना कहकर वे वहीं पास के पत्थर में समा गए। इस घटना का गवाह वो पिपल, आज भी अपने जगह पर ही है।मंदिर में आने वाले लोग इसकी भी पुजा करते हैं।
रामनवमी मेला
संपादित करेंयहाँ रामनवमी के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है।तब यहाँ की रौनक देखने लायक रहती है।ईस समय जागरण और अष्टयाम जैसे कार्यक्रम होते हैं। बहुत बरे मेले का आयोजन किया जाता है।इस मेले का आयोजन की तैयारी रामनवमी से एक-डेढ महिने पहले सुरु हो जाती है।इसके लिए गाँव के बुजुर्ग से युवा तक सभी मिलकर तैयारी में लग जाते हैं।पहले चंदा वसुली होता है,इसके बाद मुर्ति निर्माण सुरु होता है। मंदिर की रंगाई-पुताई होती है।स्टेज बनाये जाते हैं।डेकोरेशन का काम होता है।रामनवमी के रात बारह बजे से अष्टयाम सुरु होता है।सुबह में कलस्थापना कर पुजा सुरु होता है। चौबीस घंटे अष्टयाम के बाद दो रात जागरण होता है,जिसमें कई प्रसिद्ध कलाकार आते हैं।चौथे दिन मुर्तिविसर्जन कर पुजा की समाप्ति होती है।
लोगों में आस्था
संपादित करेंसिरीपुर तथा आसपास के गाँव के लोगों में रामठाकुर बाबा के प्रति अटुट आस्था है। कोई भी सुभ काम हो,बाबा के आशीर्वाद के बिना पुरा नही हो सकता है॥
स्तुति मंत्र संग्रह
संपादित करें"ॐ दशरथाय विधमहे सीता बल्लभाय धीमही तन्नो राम प्रचोदयात"