मराठा सम्राट और छत्रपति रामराज थे उनका राज्याभिषेक 1749 में हुआ था उनकी दादी ताराराणी उनको अपना पोता बता कर छत्रपति शाहू को गोद लेने के लिए कहा वह राजा राम को गद्दी पर बैठा कर स्वयं शासन से मिलना चाहती थी जो जिसके लिए वो पिछले कई सालों से कोशिश कर रही थी शाहू की 1749 मृत्यु होने के बाद बालाजी बाजीराव और ताराबाई के बीच में घमासान युद्ध छिड़ गया बालाजी बाजीराव ताराराणीने रामराज को छत्रपति करने से नाराज होकर 1750 में रामराज को कैद कर लिया उसके बाद बालाजी बाजीराव पेशवा और ताराराणी के बीच में लड़ाई छिड़ गई और बाद में उन बालाजी बाजीराव और ताराबाई के बीच में संधि हो गई संधि के तहत ताराराणीने रामराज को अपना पोता होने से इंकार कर दिया जिससे मराठा साम्राज्य की सारी शक्तियां पेशवा बालाजी बाजीराव के हाथ में आ गई ताराबाई वापस कोल्हापुर गई और राजाराम महाराज पेशवा की कठपुतली राजा बन कर रह गए और वास्तविक शक्तियां पेशवा के हाथ में आ गई यहीं से छत्रपति की सारी शक्ति का अंत हो गया उनका शासन काल 1749 शुरू हुआ उन्हीं के शासनकाल में पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ जो कि 1761 में हुआ था उसमें मराठों के सबसे बड़े नेता सदाशिव राव भाऊ के साथ साथ कई बड़े महान सेनापतियों का निधन हो गया और मराठों के लिए सबसे खतरनाक और भीषण युद्ध साबित हो जो की 18 वीं सदी का सबसे भयानक युद्ध में करीब 100000 से अधिक लोग मारे गए आज पेशवा बालाजी बाजीराव का भी निधन इसी युद्ध के डिप्रेशन के कारण हो गया उनकी मृत्यु भी 1761 में हो गई फिरभि वापस रामराज अपनी शक्ति पाने के लिये बहुत मेहनत करने के बावजूद सत्ता में नहीं आ पाए।1777 में जब प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध चल रहा था तभी उनकी मृत्यु हो गई उनके बाद उनकी गद्दी को छूट थी जो कि उनके दत्तक पुत्र थे उन्होंने संभाला और उनके समय से ही छत्रपति की शक्ति मात्र सातारा तक ही सीमित रह गई और पूरे मराठा साम्राज्य का संचालन पेशवाओ के हाथ में आ गया।

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