कंब रामायण
रामावतारम् या कंब रामायण तमिल साहित्य की सर्वोत्कृष्ट कृति एवं एक बृहत् ग्रंथ है। [1] इसके रचयिता कंबन "कविचक्रवर्ती" की उपाधि से प्रसिद्ध हैं। कंबन की सर्वोत्तम रचनाओं के रचनाकाल के विषय में मतैक्य नहीं है। राघव आयंगर की बहुमूल्य खोजों के आधार पर यह मान लिया गया है कि रामवतारम् ११७८ ई. में समाप्त हुआ और इसका प्रकाशन ११८५ में हुआ। श्री वी.वी.एस. अय्यर के अनुसार "कंब रामायण विश्वसाहित्य में उत्तम कृति है। इलियड, पैराडाइज़ लॉस्ट और महाभारत से ही नहीं, वरन् आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण की तुलना में भी यह अधिक सुन्दर है।" [2]
कंबन चोल राजा कुलोतुंग तृतीय (११७८-१२०२ ई.) के दरबार में थे। उन्होंने रामायण की रचना अपने संरक्षक सदयप्पा वल्लाल के प्रोत्साहन से की। उनका जन्म तिरॅवेन्नैनलुर, जिला तंजौर (मद्रास) में हुआ। उनका संरक्षण कृपालु सदयप्पा ने किया जिनका उल्लेख कंबन की रचनाओं में बहुधा मिलता है। कंबन विरुतम काव्य में दक्ष थे। उनकी समृद्धि उस काल में हुई जब भक्तिपन्थ नयनमरों तथा आलवरों द्वारा लोकप्रिय हे रहा था। उत्कट वैष्णव होते हुए भी कंबन का दृष्टिकोण यथेष्ट उदार था। उन्होंने भगवान् शिव की प्रशंसा अपनी रामायण में की है। उनके युग में कई उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना हुई किन्तु उनका 'रामवतारम्' उनमें सर्वोपरि है।
परिचय
संपादित करेंउपलब्ध ग्रंथ में 10,050 पद्य हैं और बालकाण्ड से युद्धकाण्ड तक छह काण्डों का विस्तार इसमें मिलता है। इससे संबंधित एक उत्तरकांड भी प्राप्त है जिसके रचयिता कंबन के समसामयिक एक अन्य महाकवि "ओट्टककूत्तन" माने जाते हैं। पौराणिकों के कारण कंब रामायण में अनेक प्रक्षेप भी जुड़ गए हैं किन्तु इन्हें बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है क्योंकि कंबन की सशक्त भाषा और विलक्षण प्रतिपादन शैली का अनुकरण शक्य नहीं है।
कम्ब रामायण के छः काण्ड निम्नलिखित हैं-
- बालकाण्डम्
- अयोध्या काण्डम्
- अरण्यकाण्डम्
- किष्किन्धा काण्डम्
- सुन्दर काण्डम्
- युद्ध काण्डम्
कम्ब ने उत्तर काण्ड के विषय में कुछ नहीं लिखा और उनकी रामायण राम के राज्याभिषेक पर समाप्त हो जाती है। इसमें १२३ पादम् (अध्याय) हैं।
कंब रामायण का कथानक वाल्मीकि रामायण से लिया गया है, परन्तु कंबन ने मूल रामायण का अनुवाद अथवा छायानुवाद न करके, अपनी दृष्टि और मान्यता के अनुसार घटनाओं में सैकड़ों परिवर्तन किए हैं। विविध परिस्थितियों के प्रस्तुतीकरण, घटनाओं के चित्रण, पात्रों के संवाद, प्राकृतिक दृश्यों के उपस्थापन तथा पात्रों की मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति में पदे-पदे मौलिकता मिलती है। तमिल भाषा की अभिव्यक्ति और संप्रेषणीयता को सशक्त बनाने के लिए भी कवि ने अनेक नए प्रयोग किए हैं। छंदोविधान, अलंकारप्रयोग तथा शब्दनियोजन के माध्यम से कंबन ने अनुपम सौंदर्य की सृष्टि की है। सीता-राम-विवाह, शूर्पणखा प्रसंग, बालिवध, हनुमान द्वारा सीता संदर्शन, इंद्रजीतवध, राम-रावण-युद्ध आदि प्रसंग अपने-अपने काव्यात्मक सौंदर्य के कारण विशेष आकर्षक हैं। लगता है, प्रत्येक प्रसंग अपने में पूर्ण है और नाटकीयता से ओतप्रोत है। घटनाओं के विकास के सुनिश्चित क्रम हैं। प्रत्येक घटना आरंभ, विकास और परिसमाप्ति में एक विशिष्ट शिल्पविधान लेकर सामने आती है।
वाल्मीकि ने राम के रूप में "पुरुष पुरातन" का नहीं, अपितु "महामानव का चित्र उपस्थित किया था, जबकि कंबन ने अपने युगादर्श के अनुरूप राम को परमात्मा के अवतार के साथ आदर्श महामानव के रूप में भी प्रतिष्ठित किया। वैष्णव भक्ति तत्कालीन मान्यताओं और जनता की भक्तिपूत भावनाओं से जुड़े रहकर इस महाकवि ने राम के चरित्र को महत्तापूरित एवं परमपूर्णत्व समन्वित ऐसे आयामों में प्रस्तुत किया जिनकी इयत्ता और ईदृक्ता सहज ग्राह्य होते हुए भी अकल्पनीय रूप से मनोहर किंवा मनोरम थी। यह निश्चित ही कंबन जैसा अनन्य सुलभ प्रतिभावान् महाकवि ही कर सकता था।
रामायण के चरित्रों के चित्रण में कंबन ने तमिल संस्कृति, परंपरा तथा रीति रिवाज ग्रहण किया। एक तमिल परंपरा एंव रुचि को ग्रहण करने के कारण कंबन चरित्रचित्रण में वाल्मीकि रामायण से विलग हो गए हैं। उदाहरणार्थ वाल्मीकि के अनुसार सुग्रीव ने बालि की विधवा से विवाह किया जब कि कंबन के अनुसार रत्न तथा सौभाग्य के बिना वह माता जैसी लगती थी। वाल्मीकि के अनुसार रावण ने सीता का हरण पंचवटी से किया लेकिन कंबन का कथन है कि रावण ने सम्पूर्ण आश्रम ही पृथ्वी से उठा लिया था। ब्रह्मा के शाप के कारण उसने सीता का स्पर्श नहीं किया। वाल्मीकि ने कहा है कि राक्षस ने सीता को लंका में कैद किया। कंबन एक बात और जोड़ के कहते हैं कि सीता लंकेश के हृदय में भी कैद थीं। कंबन अंगद के शरणस्थल के विषय में भी लिखते हैं, जबकि इसका कोई उल्लेख वाल्मीकि ने नहीं किया। वाल्मीकि मौन हैं पर कंबन ने राम तथा सीता के प्रथम प्रेम के जन्म का भी वर्णन किया है जो राम सीता के प्रथम साक्षात्कार के समय हुआ, जब राम विश्वामित्र और लक्ष्मण के साथ मिथिला जा रहे थे।
कंबन के राजनीतिक विचार, जो रामावतारम् में पाए जाते हैं और भी महत्वपूर्ण हैं। वह दो प्रकार के शासन का वर्णन करते हैं। पहला न्याययुक्त शासन जो सत्कार्यों पर आधारित होता है। दूसरा शक्तिशासन जिसका आधार साहस होता है। अयोध्या में न्याययुक्त शासन था जबकि लंका में शक्तिशासन था। न्याययुक्त शासक अपने मंत्रियों की मंत्रणा मानता है जबकि शक्तिशासक उसकी उपेक्षा करता है। कंबन अनुभव करते हैं कि एक आदर्श शासक का उद्देश्य सर्वहित होना चाहिए। मुदालियर की कंबन रामायण व्याख्या उत्कृष्ठ है।
कंबन का काव्य उपमा तथा अर्थ की गूढ़ता में अतुलनीय है। महान् तमिल विद्वान् प्रो॰ सेल्वकेसवरयर ने ठीक ही कहा है कि "तमिल भाषा के केवल दो लौह स्तम्भ हैं। वे है कंबन और तिरुवल्लुवर।
कंब रामायण का प्रचार प्रसार केवल तमिलनाडु में ही नहीं, उसके बाहर भी हुआ। तंजौर जिले में स्थित तिरुप्पणांदाल मठ की एक शाखा वाराणसी में है। लगभग 350 वर्ष पूर्व कुमारगुरुपर नाम के एक संत उक्त मठ में रहते थे। संध्यावेला में वे नित्यप्रति गंगातट पर आकर कंब रामायण की व्याख्या हिंदी में सुनाया करते थे। गोस्वामी तुलसीदास उन दिनों काशी में ही थे और संभवत: रामचरितमानस की रचना कर रहे थे। दक्षिण में जनविश्वास प्रचलित है कि तुलसीदास ने कंब रामायण से प्ररेणा ही प्राप्त नहीं की, अपितु मानस में कई स्थलों पर अपने ढंग से, उसकी सामग्री का उपयोग भी किया। यद्यपि उक्त विश्वास की प्रामाणिकता विवादास्पद है, तो भी इतना सच है कि तुलसी और कंबन की रचनाओं में कई स्थलों पर आश्चर्यजनक समानता मिलती है।
महत्व
संपादित करेंबहुत से लोग पूजा में कम्ब रामायण का पाठ करते हैं। कुछ घरों में तमिल मास 'आदि' (मध्य जुलाई से मध्य अगस्त) में इस महाकाव्य का एक बार सम्पूर्ण पाठ करते हैं। हिन्दू मन्दिरों में इसका पाठ किया जाता है। बहुत से धार्मिक संघ भी इसका नियमित पाठ करते हैं। इसका सुन्दरकाण्डम् विशेष रूप से पवित्र माना जाता है और अत्यन्त लोकप्रिय है।