राम शास्त्री
राम शास्त्री प्रभूणे ((जन्म : १७१८ ई, माहुली, महाराष्ट्र -- मृत्यु : माहुली, मृत्युदिन अज्ञात) ) १८वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मराठा साम्राज्य के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश थे। वे उस समय के पेशवा के विरुद्ध निर्णय देने के लिये प्रसिद्ध हैं जिस पर हत्या के लिये उकसाने का आरोप था। सार्वजनिक जीवन में उनकी शुचिता सदा के लिये एक आदर्श बन गयी है। महाराष्ट्र में राम शास्त्री प्रभूणे की न्याय-प्रियता की गाथा आज तक सुनाई जाती है।
राम शास्त्री प्रभूणे का जन्म सतारा के माहुली ग्राम में एक गरीब ब्राह्मण के घर सन् 1724 में हुआ था। 12 वर्ष (1739 से 1751) तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे पुणे लौटे तो उनकी योग्यता व विद्वता के कारण उन्हें पेशवा के अदालती कार्यों का प्रधान न्यायपति नियुक्त किया गया।
न्यायप्रियता
संपादित करेंएक बार माधवराव पेशवा के दरबार में राज्य के शीर्षस्थ विद्वानों को सम्मानित करने के लिए पंडितों का चयन किया जा रहा था। उस समय राम शास्त्री प्रभूणे राज्य के प्रधान न्यायपति थे तथा वही सम्मानित किए जाने वाले विद्वानों की नामावली को अंतिम स्वीकृति प्रदान करते थे। चुने हुए नामों की सूची को अंत में राम शास्त्री प्रभूणे के सम्मुख प्रस्तुत किया गया। उन्होंने उसे भली-भांति देखने के पश्चात् एक नाम के आगे आपत्ति सूचक चिह्न लगा दिया और जिन्होंने यह नामावली तैयार की थी, उनसे पूछा कि, यह व्यक्ति कौन है? कहां का है? कैसे विदित हुआ कि इसकी योग्यता तथा विद्या इन विद्वान महानुभावों के समकक्ष है?
दरबार में एकदम सन्नाटा छा गया। नामावली बनाने वाले से उत्तर देते न बना। राम शास्त्री ने पुन: पूछा-बताते क्यों नहीं कि यह कहां का विद्वान है? मैंने तो कभी इसके विषय में ऐसा कुछ सुना ही नहीं? वस्तुत: वह नाम था, स्वयं राम शास्त्री के ही सुपुत्र गोपाल शास्त्री का। यह बात जब राम शास्त्री को बताई गई तो उन्होंने कहा, "अभी तुरन्त यह नाम हटा दिया जाए और ध्यान रखो, भविष्य में पुन: कभी ऐसा अवसर न आए। राम शास्त्री क्या इसी पक्षपात के लिए प्रधान न्यायपति के आसन पर बैठाया गया है? गोपाल शास्त्री, राम शास्त्री का पुत्र है इसलिए उसे भी राज-सम्मान की धन राशि प्रधान की जानी चाहिए, यह कदापि नही हो सकता।' और तब उस नामावली से गोपाल शास्त्री का नाम हटा देना पड़ा।
बाहरी कड़ियाँ
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