रीमान जीटा फलन अथवा आयलर–रीमान जीटा फलन, ζ(s), उन सम्मिश्र चर s का फलन है जो अनन्त श्रेणी के संकलन में वैश्लेषिक हैं

सम्मिश्र तल के आयताकार क्षेत्र में प्रस्तुत किया गया रीमान जीटा फलन ; यह प्रक्षेत्र रंगने की विधि से मैटप्लोटलिब आरेख के रूप में बनाया गया है।[1]
ध्रुव और क्रान्तिक रेखा पर दो शून्य के साथ रीमान जीटा फलन।

जो s के वास्तविक मान के 1 से अधिक होने पर अभिसारी होती है। सभी s के लिए ζ(s) व्यापक निरूपण नीचे दिया गया है। रीमान जीटा फलन विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में मुख्य फलन के रूप में प्रयुक्त होता है और इसके अनुप्रयोग भौतिकी, प्रायिकता सिद्धांत और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी में मिलते हैं।

वास्तविक तर्क के फलन के रूप में, यह फलन १८वीं सदी के पूर्वार्द्ध में सम्मिश्र विश्लेषण का उपयोग किये बिना (क्योंकि उस समय यह उपलब्ध नहीं थी) पहली बार लियोनार्ड आयलर ने किया था। बर्नहार्ड रीमान ने 1859 में प्रकाशित अपने लेख "दिये गये परिमाण से छोटी अभाज्य संख्याओं पर" (मूल जर्मन: Ueber die Anzahl der Primzahlen unter einer gegebenen Grösse) आयलर की परिभाषा सम्मिश्र चरों के लिए विस्तारित किया तथा फलनिक समीकरण और अनंतकी अनुवर्ती सिद्ध किया एवं शून्यअभाज्य संख्याओं के बंटन में सम्बन्ध स्थापित किया।[2]

धनात्मक सम संख्याओं पर रीमान जीटा फलन के मान आयलर द्वारा अभिकलित किये गये। इनमें प्रथम ζ(2) बेसल समस्या का हल प्रदान करता है। सन् १९७९ में एपेरी ने ζ(3) की अपरिमेयता सिद्ध की। नकारात्मक पूर्णांक बिन्दुओं के लिए भी आयलर के अनुसार परिमेय संख्यायें प्रतिरूपक के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। डीरिख्ले श्रेणी, डीरिख्ले एल-फलन और एल-फलन के रूप में रीमान जीटा फलन के विभिन्न व्यापकीकरण ज्ञात हैं।

डीरिख्ले श्रेणी के रूप में

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  के लिए अभिसारी होगी, जहाँ कि

 

  के लिए भी अभिसारी है। इस तरह से, अभिसरण क्षेत्र को   किसी भी   के लिए विस्तारित किया जा सकता है।


  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 मार्च 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 मार्च 2015.
  2. इस शोध पत्र में रीमान परिकल्पना भी शामिल है जो अधिकतर गणितज्ञों के अनुसार विशुद्ध गणित रीमान जीटा फलन के सम्मिश्र मूलों के बंटन के बारे में अटकल है।बोमबियरी, एनरिको. "The Riemann Hypothesis – official problem description" [रीमान परिकल्पना – आधिकारिक समस्या विवरण] (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी में). क्ले मैथेमेटिक्स इंस्टिट्यूट. मूल से 22 दिसंबर 2015 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि १५ मार्च २०१५.