रूपकुण्ड

रूपकुंड पर्यटन
(रुपकुण्ड से अनुप्रेषित)

निर्देशांक: 30°15′43″N 79°43′55″E / 30.262°N 79.732°E / 30.262; 79.732 रूपकुंड (कंकाल झील) भारत उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक हिम झील है जो अपने किनारे पर पाए गये पांच सौ से अधिक मानव कंकालों के कारण प्रसिद्ध है। यह स्थान निर्जन है और हिमालय पर लगभग 5029 मीटर (16499 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इन कंकालों को 1942 में नंदा देवी शिकार आरक्षण रेंजर एच. के. माधवल, ने पुनः खोज निकाला, यद्यपि इन हड्डियों के बारे में आख्या के अनुसार वे 19वीं सदी के उतरार्ध के हैं।[1] इससे पहले विशेषज्ञों द्वारा यह माना जाता था कि उन लोगों की मौत महामारी भूस्खलन या बर्फानी तूफान से हुई थी। 1960 के दशक में एकत्र नमूनों से लिए गये कार्बन डेटिंग ने अस्पष्ट रूप से यह संकेत दिया कि वे लोग 12वीं सदी से 15वीं सदी तक के बीच के थे।

रूपकुण्ड
—  झील  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य उत्तराखंड
ज़िला चमोली
जनसंख्या Nil
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)

• 5,029 मीटर (16,499 फी॰)
Human Skeletons in Roopkund Lake

2004 में, भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने उस स्थान का दौरा किया ताकि उन कंकालों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके। उस टीम ने अहम सुराग ढूंढ़ निकाले जिनमें गहने, खोपड़ी, हड्डियां और शरीर के संरक्षित ऊतक शामिल थे।[2] लाशों के डीएनए परीक्षण से यह पता चला कि वहां लोगों के कई समूह थे जिनमें शामिल था छोटे कद के लोगों का एक समूह (सम्भवतः स्थानीय कुलियों) और लंबे लोगों का एक समूह जो महाराष्ट्र में कोकणस्थ ब्रामिंस के डीएनए उत्परिवर्तन विशेषता से निकट संबंधित थे।[1] हालांकि संख्या सुनिश्चित नहीं की गयी, 500 से अधिक लोगों से संबंधित अवशेष पाए गए हैं और यह भी माना जाता है कि छह सौ से अधिक लोग मारे गए थे। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय रेडियोकार्बन प्रवर्धक यूनिट में हड्डियों की रेडियोकार्बन डेटिंग के अनुसार इनकी अवधि 850 ई. में निर्धारित की गयी है जिसमें 30 वर्षों तक की गलती संभव है।

Roopkund Lake

खोपड़ियों के फ्रैक्चर के अध्ययन के बाद, हैदराबाद, पुणे और लंदन में वैज्ञानिकों ने यह निर्धारित किया कि लोग बीमारी से नहीं बल्कि अचानक से आये ओला आंधी से मरे थे।[2] ये ओले, क्रिकेट के गेंदों जितने बड़े थे और खुले हिमालय में कोई आश्रय न मिलने के कारण सभी मर गये।[2] इसके अलावा, कम घनत्व वाली हवा और बर्फीले वातावरण के कारण, कई लाशें भली भाँति संरक्षित थी। उस क्षेत्र में भूस्खलन के साथ, कुछ लाशें बह कर झील में चली गयी। जो बात निर्धारित नहीं हो सकी वह है कि, यह समूह आखिर जा कहाँ रहा था। इस क्षेत्र में तिब्बत के लिए व्यापार मार्ग होने का कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है लेकिन रूपकुंड, नंदा देवी पंथ की महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा के मार्ग पर स्थित है जहां नंदा देवी राजजातउत्सव लगभग प्रति 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता था।[1][3]

रूपकुंड, हिमालय की गोद में स्थित एक मनोहारी और खूबसूरत पर्यटन स्थल है, यह हिमालय की दो चोटियों के तल के पास स्थित है: त्रिशूल (7120 मीटर) और नंदघुंगटी (6310 मीटर). बेदनी बुग्याल की अल्पाइन तृणभूमि पर प्रत्येक पतझड़ में एक धार्मिक त्योहार आयोजित किया जाता है जिसमें आसपास के गांवों के लोग शामिल होते हैं। नन्दा देवी राजजात का उत्सव, रूपकुंड में बड़े पैमाने पर प्रत्येक बारह वर्ष में एक बार मनाया जाता है। कंकाल झील वर्ष के ज्यादातर समय बर्फ से ढकी हुई रहती है। हालांकि, रूपकुंड की यात्रा एक सुखद अनुभव है। पूरे रास्ते भर, व्यक्ति अपने चारों ओर से पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ होता है।

यात्री के लिए रूपकुंड जाने के कई रास्ते हैं। आम तौर पर, ट्रेकर और रोमांच प्रेमी सड़क मार्ग से लोहाजंग या वाँण से रूपकुंड की यात्रा करते हैं। वहां से, वे [वांण] में एक पहाड़ी पर चढ़ते है और रणका धार पहुंचते हैं। वहां कुछ समतल क्षेत्र है जहां ट्रेकर रात को शिविर लगा सकते हैं। अगर आसमान साफ हो, तो व्यक्ति बेदनी बग्याल और त्रिशूल देख सकता हैं। अगला शिविर स्थान है बेदनी बुग्याल, जो वांण से 12-13 कि॰मी॰ दूर है पर है। वहां खच्चरों, घोड़ो और भेड़ो के लिए एक विशाल चरागाह है। वहां दो मंदिर और एक छोटी झील है जो उस जगह की खूबसूरती को बढ़ाता है। व्यक्ति बेदनी बुग्याल पुल से हिमालय की कई चोटियों को देख सकता हैं। इसके बाद ट्रेकर भखुवाबासा तक पहुंचता है, जो बेदनी बुग्याल से 10-11 कि॰मी॰ दूर है। भखुवाबासा का जलवायु वर्ष के अधिकांश समय प्रतिकूल रहता है। व्यक्ति को त्रिशूल और 5000 मीटर से अधिक ऊंची अन्य चोटियों को करीब से देखने का अवसर मिलता है। आसपास के पहाड़ों की गहरी ढलानों पर कई झरने और भूस्खलन देखने को मिलते हैं। भखुवाबासा से, ट्रेकर या तो रूपकुंड जाकर वापस आते हैं या वे जुनारगली कर्नल पास, जो झील के थोड़ी ही ऊपर है, से होते हुए शिला समुद्र (पत्थरों का महासागर) जाते हैं और फिर वे [होमकुंड] तक ट्रेक के द्वारा आगे बढ़ते हैं।

मार्ग१. काठगोदाम - अलमोड़ा - गरूड़ - ग्वालदम - देवाल (1220 मी) - बगरीगाड़ (1890 मी) - मुन्दोली गांव - लोहाजंग पास - गांव (2590 मीटर) - बेदनी बुग्याल (3660 मी) - बगुवाबासा - केलू विनायक - रूपकुंड - जुनारगली - शिला-समुद्र - होमकुण्ड

मार्ग२. हरिद्वार - ऋषिकेश - देवप्रयाग - श्रीनगर गढ़वाल - कर्णप्रयाग - थराली - देवाल - वाँण-[[बेदिनी बुग्याल (3660 मी) - बगुवाबासा - केलू विनायक - रूपकुंड - जुनारगली - शिला-समुद्र - होमकुण्ड

लोकप्रिय संस्कृति में रूपकुंड के कंकाल

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रूपकुंड के कंकालों को नेशनल ज्योग्राफिक के वृत्तचित्र "रिडल्स ऑफ़ दी डेड: स्केलिटन लेक" में दर्शाया गया है। [1]

  1. "Roopkund - Skeleton lake". Wondermondo. मूल से 20 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  2. http://www.रूपकुंड.कॉम/2008/12/23/रूपकुंड-लेक/[मृत कड़ियाँ]
  3. Sturman Sax, William (1991). Mountain goddess: gender and politics in a Himalayan pilgrimage (अंग्रेज़ी में). Oxford University Press. पृ॰ 256. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 019506979X.
  • ऐत्केन, बिल. दी नंदा देवी अफेयर, पेंगुइन बुक्स इंडिया, 1994. ISBN 0-14-024045-4.