रूपसी बैरागी
रूपसी बैरागी, राजा पृथ्वीराज कछवाहा के कनिष्ठ पुत्र थे।[1] रूपसी बैरागी दौसा व परबतसर जागीर के प्रमुख थे ताजमहल के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बैरागी हवेली इन्हीं की थी, इन्होंने यह हवेली अपनी भतीजी जोधा बाई को विवाह में उपहार स्वरूप भेंट की थी।[2]
रूपसी बैरागी | |
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आमेर के राजकुमार दौसा व परबतसर के मुखिया | |
जन्म | आमेर, राजस्थान, मुगल साम्राज्य |
संतान | कुंवर जयमल सिंह
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पिता | राजा पृथ्वीराज कच्छवाहा |
माता | गौड़ रानी सुहाग देवी (पुत्री: राजा ज्ञान राव गौड़ ) |
धर्म | हिंदू |
इतिहास
संपादित करें16वीं शताब्दी के आरंभ में अंबेर के कच्छवाह वंश के राजा पृथ्वीराज की पत्नी बालन बाई के सहयोग से रामानंदी संप्रदाय के महान संत कृष्णदास पायोहारी ने जयपुर के निकट गलताजी नामक स्थान पर उत्तर भारत में पहले प्रमुख वैष्णव भक्ति केंद्र की स्थापना की और इसे उत्तर भारत का टोडरी कहा जाने लगा। कहा जाता है कि 1527 में खानवा के युद्ध में पृथ्वीराज कच्छवाहा द्वारा बाबर के विरुद्ध राणा सांगा का साथ देने के पीछे रानी बालन बाई का महत्वपूर्ण योगदान था और रानी बालन बाई की प्रेरणा थे उनके आध्यात्मिक गुरु, वैष्णव संत कृष्णदास पायोहारी।
6 जनवरी 1562 को रानी बालनबाई की पौत्री और राजा भारमल की पुत्री जोधाबाई का विवाह अकबर से हुआ। राजा पृथ्वीराज ने अपने कनिष्ठ पुत्र रूपसी बैरागी को परबतसर की जागीर दी थी। रूपसी बैरागी दौसा का मुखिया था। अतीत में दौसा कच्छवाह वंश की राजधानी भी रहा है। राजकुमार रूपसी ने भी वैष्णव संत कृष्णदास पायोहारी से बैरागी दीक्षा ली थी और वह स्वयं को वैष्णव धर्म का रक्षक और उपासक मानते थे । इसलिए इतिहास में उन्हें बैरागी से ही जाना जाता है। राजा भारमल से भी पहले अकबर की मुलाकात रूपसी बैरागी और उनके पुत्र जयमल से हुई थी।
अपनी भतीजी जोधा बाई के विवाह में रूपसी बैरागी ने अनेक उपहार दिए, जिनमें आगरा में मोहल्ला अतगा खान के बाजार में स्थित बैरागी हवेली भी शामिल थी। इस तरह 1562 में बैरागी हवेली मुगलों के पास चली गई। बाद में यही बैरागी हवेली ताजमहल के निर्माण में सहायक बनी।
मुमताज़ महल की मृत्यु 17 जून 1631 को मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में हुई। उन्हें वहीं जैनाबाद के बगीचे में दफना दिया गया। 11 दिसंबर 1631 को मुमताज के शव को कब्र से निकालकर, ताबूत में रखकर रवाना किया गया और 8 जनवरी 1632 को आगरा पहुंचा।
15 जनवरी 1632 को ताज परिसर में शाही मस्जिद के नजदीक उन्हें दफन किया गया। मुमताज का अंतिम दफन उसकी मृत्यु के 9 वर्ष बाद 1640 में हुआ और दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल का उदय हुआ।
उल्लेखनीय बात यह है कि जिस स्थान पर ताजमहल बना है, वह जमीन शाहजहां की नहीं बल्कि राजा जयसिंह की थी और शाह जहाँ ने इस जमीन के बदले राजा जयसिंह को दूसरी जमीन दी थी।
मुमताज महल की याद में शाहजहां ने जहां पर ताजमहल बनवाया, उस जगह पर राजा जय सिंह का बाग होता था।
शाहजहां द्वारा 16 दिसंबर 1633 हिजरी 1049 के माह जुमादा 11 की 26/28 तारीख को जारी फरमान के अनुसार, जिसकी सत्यापित प्रतिलिपि सिटी पैलेस संग्रहालय जयपुर में संरक्षित है, शाहजहां ने राजा जयसिंह को ताजमहल की जमीन के बदले चार हवेलियां दी थीं।
ये हवेलियां थीं: 1. राजा भगवान सिंह की हवेली
2. राजा माधो सिंह की हवेली
3. मोहल्ला अतगा खान के बाजार में स्थित रूपसी बैरागी की हवेली
4. चांद सिंह पुत्र सूरज सिंह की हवेली
यहां पर रोचक तथ्य यह है कि इनमें से पहली तीन हवेलियां जोधा बाई को विवाह में उपहार के रूप में मिली थी। ताजमहल की जमीन के बदले शाहजहां द्वारा राजा जयसिंह को चार हवेलियां दिए जाने वाले शाहजहां के फरमान का उल्लेख, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बाबरी मस्जिद मामले के निर्णय में भी किया है। आज वह ऐतिहासिक बैरागी हवेली अस्तित्व में नहीं है लेकिन उसकी झलक ताजमहल के इतिहास में जरूर है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ https://books.google.co.in/books?id=O0oPIo9TXKcC&pg=PA43&dq=rupsi+bairagi&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiaitvchOnwAhUUc3AKHVx7CtkQ6AEwAnoECAQQAw#v=onepage&q=rupsi%20bairagi&f=false
- ↑ https:///amp/s/www.jansatta.com/religion/on-6-january-1562-jodhbai-the-granddaughter-of-rani-balan-bai-and-daughter-of-raja-bharatmal-was-married-to-akbar-king-prithviraj-had-given-the-manor-of-parbatsar-to-his-junior-son-rupasi-bairagi-rupa/1714355/lite/