लालकृष्ण आडवाणी
लालकृष्ण आडवाणी (जन्म: 8 नवम्बर 1927) भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। भारतीय जनता पार्टी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। जनवरी 2008 में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने लोकसभा चुनावों को आडवाणी के नेतृत्व में लड़ने तथा जीत होने पर उन्हें प्रधानमन्त्री बनाने की घोषणा की थी। भारत सरकार ने 31 मार्च 2024 को उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की।[1]
लालकृष्ण आडवाणी | |
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कार्यकाल 2002 - 2004 | |
प्रधानमंत्री | अटल बिहारी वाजपेयी |
पूर्वा धिकारी | देवीलाल |
कार्यकाल 1998 - 2004 | |
प्रधानमंत्री | अटल बिहारी वाजपेयी |
उत्तरा धिकारी | शिवराज पाटिल |
जन्म | 8 नवम्बर 1927 |
राजनीतिक दल | भारतीय जनता पार्टी |
जीवन संगी | कमला आडवाणी |
धर्म | हिन्दू धर्म |
भारतीय जनता पार्टी के जिन नामों को पूरी पार्टी को खड़ा करने और उसे राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय जाता है उसमें सबसे आगे की पंक्ति का नाम है लालकृष्ण आडवाणी। लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी।
जीवन वृत्त
संपादित करेंलालकृष्ण आडवाणी का जन्म आठ नवंबर, 1927 को सिन्ध प्रान्त के कराची में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। उनके पिता श्री के० डी० आडवाणी और माँ ज्ञानी आडवाणी थीं। उनकी विद्यालयी शिक्षा कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल में हुई। उनकी देशभक्ति के भावना ने उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वह जब केवल 14 वर्ष के थे, उस समय से उन्होंने अपना जीवन देश के नाम कर दिया। 1947 में भारत के स्वतंत्र होने तथा साथ ही देश के विभाजन के परिणामस्वरूप आफरा-तफरी के माहौल में उन्होंने 12 सितंबर, 1947 को अपना घर छोड़ा और साथी स्वंयसेवकों के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुए। भारत आने के बाद वे आरएसएस के प्रचारक बन गए।
सिंध से आने वाले सभी प्रचारकों और वरिष्ठ नेताओं को जोधपुर में इकट्ठा होने के लिए कहा गया ताकि आने वाले दिनों के लिए योजना का निर्माण किया जा सके। आरएसएस नेताओं ने सिंध से आने वाले स्वंयसेवकों को निर्देश दिए कि वह बंटवारे के बाद आकर रह रहे लोगों की सहायता करें। आडवाणी जी और अन्य सभी लोग इसी प्रकार से आने-जाने वाले प्रवासियों की मदद में जुटे थे और उन्हें राहत मुहैया करवा रहे थे। अगले एक दशक तक राजस्थान ही उनकी कर्मभूमि बनकर रहा, पहले प्रचारक के तौर पर और फिर भारतीय जनसंघ के पूर्णकालीन कार्यकर्ता के तौर पर।
1957 में उनको राजस्थान छोड़कर दिल्ली आने के लिए कहा गया जिससे कि वह लोग अटल बिहारी वाजपेयी और नवनिर्वाचित सासंदों की मदद कर सकें। इसके बाद दिल्ली इनके काम और राजनीति का केन्द्र बन गई। उन्होंने संसद के काम करने के तरीका सीखा और जनसंघ के लिए सवाल-जवाब एवं पार्टी की नीतियों को तय करने का काम करते रहे।
भारत आकर उन्होंने मुम्बई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से विधि (लॉ) में स्नातक किया।
राजस्थान से दिल्ली आने के बाद सबसे पहला घर जिसमें आडवाणी जी रहे थे, वह अटल जी का आधिकारिक निवास था (30 राजेन्द्र प्रसाद रोड)। दिल्ली में दफ्तर में करीब 3 साल तक काम करने के बाद आडवाणी जी ने पत्रकार के रूप में अपने जीवन का एक नया अध्याय शुरू किया। 1960 में उन्होंने आर्गनाइजर में सहायक संपादक का पदभार ग्रहण किया। ऑर्गनाइजर एक हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका थी जो कि आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित थी। 1947 में स्थापित ऑर्गनाइजर का पाठक वर्ग काफी कम था लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग के बीच इसकी गूंज हो चुकी थी। इसके संपादक केवल रतन मलकानी एक बढ़िया लेखक थे जिन्हें आडवाणी जी पसंद थे और वह भी सिन्ध से आए थे। मलकानी जी के काबिल नेतृत्व में ऑर्गनाइजर आरएसएस और जनसंघ के विरोधियों और साथ वालों के बीच काफी लोकप्रिय होने लगा।
25 फ़रवरी 1965 को उन्होंने 'कमला आडवाणी' को अपनी अर्धांगिनी बनाया। उनके दो बच्चे हैं।
ऑर्गनाइजर के साथ आडवाणी जी की 7 वर्ष की लंबी पारी अचानक 1967 में खत्म होने को आ गई। दिल्ली की राजनीति में एक नई जिम्मेदारी आ गई थी। 1967 में 5 महीनों के अंतराल में दिल्ली में 3 चुनाव हुए और लगभग एकसाथ, लोकसभा चुनाव, मेट्रोपॉलिटन काउंसिल और नगरपालिका के चुनाव। जनसंघ ने तीनों चुनावों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया। आडवाणी जी की पार्टी ने लोकसभा में 7 में से 6 सीटें हासिल की, काउंसिल में 56 सीटों में से 33 और 100 में से 52 सीट नगरपालिका में हासिल की थी। 1962 में 14 सीटों से 1967 में 35 सीटों तक जनसंघ भारतीय राजनीति पर धीरे-धीरे हावी होने लगा।
राजनीति में आडवाणी जी का प्रवेश नगरपालिका से हुआ। पार्टी के संसदीय प्रभाग में काम करने के अलावा उनसे कहा जाता था कि वह दिल्ली की जनसंघ इकाई का बतौर महासचिव कार्यभार संभालें। जनसंघ, कांग्रेस के खिलाफ थी और उस समय अपने शिखर पर थी। ऐसी स्थिति में 80 के सदन में जनसंघ ने 25 सीटें जीती, जो कांग्रेस से केवल 2 कम थीं।
अप्रैल 1970 में इन्द्र कुमार गुजराल का कार्यकाल पूरा होने पर राज्य सभा में एक नियुक्ति थी। जनसंघ ने आडवाणी जी को आगे बढ़ाया और काउंसिल में बहुमत होने के कारण आडवाणी जी को वह जगह मिल गई। उसके बाद आडवाणी जी दिल्ली मेट्रोपॉलिटिन काउंसिल के अध्यक्ष के दफ्तर से संसद भवन पहुंच गए। राज्य सभा में अपने शुरुआती भाषणों में आडवाणी जी ने देशहित के मुद्दों पर जोर दिया।
दिसंबर 1972 में आडवाणी जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने। 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लागू कर दिया। अटल जी और आडवाणी जी उस समय बंगलुरु में थे जहां से उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। १९७७ में जनता पार्टी की सरकार बनी और 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई ने भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। आडवाणी जी जनसंघ के उन तीन लोगों में एक थे जो नई सरकार में शामिल हुए थे। अटल जी को विदेश मंत्री, ब्रिजलाल वर्मा को उद्योग मन्त्री और आडवाणि जी को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मिला। आडवाणी जी को लगता था कि बतौर पत्रकार उन्होंने जो काम किया था, उससे उन्हें मीडिया से जुड़े मामलों की समझ और उनमें रुची पैदा हो गई थी। उन्होंने सुना भी था कि कैसे आपातकाल के दौरान मीडिया से सबकुछ छीन लिया गया था, वह उसे बदलना चाहते थे।
जनता पार्टी की सरकार ज्यादा चल ही नहीं सकी और पार्टी को अपना आधा कार्यकाल पूरा करने से पहले ही जाना पड़ा। मोरारजी देसाई ने बतौर पीएम इस्तीफा दे दिया।
5-6 अप्रैल 1980 को 2 दिन के राष्ट्रीय सम्मेलन में भारतीय जनता पार्टी नामक एक नए संगठन का गठन हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी का पहला अध्यक्ष चुना गया और सिकंदर बख्त एवं सूरज भान को महासचिव की जिम्मेदारी दी गई। 1984 में आम चुनाव से कुछ समय पहले ही इंदिरा गांधी की हत्या हो गई जिससे कांग्रेस को भावनात्मक जीत प्राप्त हुई और बीजेपी की संख्या बेहद कम रही, वहीं कांग्रेस को रेकॉर्ड जीत मिली। इसके बाद आडवाणी जी को पार्टी अध्यक्ष घोषित कर दिया गया।
1980 से 1990 के बीच आडवाणी जी ने भाजपा को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए अपना पूरा समय दिया। इसका परिणामस्वरूप भारतीय जनता पार्टी को १९८९ के लोकसभा चुनावों में 86 सीटें मिली जो उस समय के लिहाज से काफी बेहतर प्रदर्शन था। १९८४ में भाजपा को लोकसभा में केवल २ सीटें मिली थीं। पार्टी की स्थिति 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 पर पहुंच गई। आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और भाजपा सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी बनकर उभरी थी।
राजनैतिक जीवन
संपादित करेंवर्ष 1951 में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की। तब से लेकर सन 1957 तक आडवाणी पार्टी के सचिव रहे। वर्ष 1973 से 1977 तक आडवाणी ने भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व सम्भाला। वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद से 1986 तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे। इसके बाद 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी उन्होंने सम्भाला।
1990 राम रथ यात्रा
संपादित करेंइसी दौरान वर्ष 1990 में राम मन्दिर आन्दोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए राम रथ यात्रा निकाली। हालांकि आडवाणी को बीच में ही गिरफ़्तार कर लिया गया पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया।[2] 1990 की रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुँचा दिया था। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल है।
लालकृष्ण आडवाणी ने राम रथ यात्रा के अलावा भी कई रथयात्राएँ की, जैसे जनादेश यात्रा, भारत सुरक्षा यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा आदि।
पार्टी भूमिका
संपादित करेंलालकृष्ण आडवाणी तीन बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। आडवाणी चार बार राज्यसभा के और पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे। वर्ष 1977 से 1979 तक पहली बार केन्द्रीय सरकार में कैबिनेट मन्त्री की हैसियत से लालकृष्ण आडवाणी ने दायित्व सम्भाला। आडवाणी इस दौरान सूचना प्रसारण मन्त्री रहे।
आडवाणी ने अभी तक के राजनीतिक जीवन में सत्ता का जो सर्वोच्च पद सम्भाला है वह है एनडीए शासनकाल के दौरान उपप्रधानमन्त्री का। लालकृष्ण आडवाणी वर्ष 1999 में एनडीए की सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्रीय गृहमन्त्री बने और फिर इसी सरकार में उन्हें 29 जून 2002 को उपप्रधानमन्त्री पद का दायित्व भी सौंपा गया।
भारतीय संसद में एक अच्छे सांसद के रूप में आडवाणी अपनी भूमिका के लिए कभी सराहे गए तो कभी पुरस्कृत भी किए गए।
धारण किये गये प्रमुख पद
संपादित करें- 1967-1977 : दिल्ली महानगर परिषद के सदस्य (महापौर के रूप में भी कार्य किया)
- 1970-1972 : भारतीय जनसंघ, दिल्ली के अध्यक्ष
- 1970-1976: दिल्ली के राजगृह परिषद के सदस्य (अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया)
- 1973-1977: भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष (अखिल भारतीय स्तर पर)
- 1977-1979: सूचना और प्रसारण मंत्री (जनता पार्टी सरकार)
- 1977-1979: राज्यसभा में सदन के नेता (जनता पार्टी सरकार)
- 1978-1984 राज्यसभा के सदस्य (गुजरात से निर्वाचित)
- 1980-1986: राज्यसभा में भाजपा के नेता
- 1980-1986: भारतीय जनता पार्टी के महासचिव
- 1986-1991: भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष (पहले 5 अध्यक्षों में से एक)
- 1991-1998: लोकसभा में विपक्ष के नेता (भाजपा)
- 1996-2009: राज्यसभा के सदस्य (मध्य प्रदेश से निर्वाचित)
- 1998-2004: गृह मंत्री (भाजपा सरकार)
- 1998-2004: गृह मामलों पर केंद्रीय कैबिनेट समिति के अध्यक्ष
- 2002-2004: उप प्रधानमंत्री (भाजपा सरकार)
- 2002-2004: सुरक्षा मामलों पर केंद्रीय मंत्रिमंडलीय समिति के अध्यक्ष
- 2004-2009: लोकसभा में लोक लेखा समिति के अध्यक्ष
- 2009: लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
- 2014-2020: भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य
- 2024 : भारत सरकार द्वारा इनको भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Bharat Ratna: लाल कृष्ण आडवाणी को 31 मार्च को दिया जाएगा भारत रत्न". अभिगमन तिथि 29 मार्च 2024.
- ↑ "लालू प्रसाद यादव की ज़ुबानी, लालकृष्ण आडवाणी को क्यों और कैसे गिरफ्तार किया था". मूल से 7 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 दिसंबर 2017.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंविकिसूक्ति पर लालकृष्ण आडवाणी से सम्बन्धित उद्धरण हैं। |