लीलाधर मंडलोई हिन्दी भाषा के लेखक और कवि हैं। मुख्य रूप से इनकी पहचान एक कवि के रूप में है हालाँकि इन्होंने विविध विधाओं में लेखन कार्य किया है।

जीवन संपादित करें

मंडलोई का जन्म 1954 की जन्माष्टमी के दिन भारतीय राज्य मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िला के गुढ़ी नामक गाँव में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई। प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए 1987 में राष्ट्रकुल संबंध अभिभावकता, लंदन की ओर से आमंत्रित किए गए। इन दिनों में वह प्रसार भारती दूरदर्शन के महानिदेशक का कार्यभार संभाल लिया।

मंडलोई मूलतः कवि हैं। उनकी कविताओं में छत्तीसगढ़ की बोली की मिठास और वहाँ के जनजीवन का सजीव चित्रण है। वह लोककथा, लोकगीत, यात्रावृत्तांत, डायरी, मीडिया, पत्रकारिता तथा आलोचना लेखन की ओर प्रवृत्त हैं।[1]

कृतियाँ संपादित करें

कविता-संग्रह
  • घर-घर घूमा,
  • रात-बिरात,
  • मगर एक आवाज,
  • देखा-अदेखा,
  • ये बदमस्ती तो होगी,
  • देखा पहली दफा अदेखा,
  • उपस्थित है समुद्र
गद्य साहित्य
  • अंदमान-निकोबार की लोक कथाएँ,
  • पहाड़ और परी का सपना,
  • चाँद का धब्बा,
  • पेड़ भी चलते हैं,
  • बुंदेली लोक रागिनी

सम्मान संपादित करें

  • मध्य प्रदेश साहित्य परिषद के रामविलास शर्मा सम्मान से पुरस्कृत,
  • वागीश्वरी सम्मान ,
  • रज़ा सम्मान,
  • पुश्किन सम्मान और
  • नागार्जुन सम्मान 

सन्दर्भ संपादित करें

  1. स्पर्श भाग 2. भारत: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्. पृ॰ 77. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7450-647-0.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें