लुई पास्चर

फ्रेंच केमिस्ट और माइक्रोबायोलॉजिस्ट

लुई पास्तर (फ़्रान्सीसी: Louis Pasteur‎) एक फ्रांसीसी रसायनशास्त्र वैज्ञानिक और सूक्ष्म-जैवविज्ञानी थे जो टीकाकरण, किण्वन और पास्तरीकरण के सिद्धान्तों की अपनी खोजों के लिए प्रसिद्ध थे। रसायन विज्ञान में उनके शोध ने रोगों के कारणों और निवारण की समझ में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की, जिन्होंने स्वच्छता, जनस्वास्थ्य और आधुनिक चिकित्सा की नींव रखी। उनके कार्यों को रेबीज़ और ऐंथ्राक्स के टीकों के विकास के माध्यम से लाखों लोगों की जीवन बचाने का श्रेय दिया जाता है। उन्हें आधुनिक जीवाणु विज्ञान के संस्थापकों में से एक माना जाता है और उन्हें "जीवाणु विज्ञान के पिता" के रूप में और "सूक्ष्म जीव विज्ञान के पिता" के रूप में सम्मानित किया गया है [1](रोबर्ट कॉख़ के साथ, और बाद की उपाधि आन्तोनी वान लेवन्हुक को भी दिया गया था[2])।

लुई पास्तर
मूल नाम Louis Pasteur
जन्म 27 दिसम्बर 1822
दॉल, जुरा, फ़्रान्स
मृत्यु सितम्बर 28, 1895(1895-09-28) (उम्र 72 वर्ष)
यार्न ला कॉकैत, फ़्रान्स
शिक्षा एकॉल नॉर्माल सुपेरियर, पैरिस विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि रोगों के जीवाणु सिद्धांत, रेबीज़, हैजा, एंथ्राक्स हेतु पहला टीका बनाया, पास्तरीकरण

पास्तर सहज उत्पादन के सिद्धांत का खंडन करने के लिए जिम्मेदार थे। फ़्रांसीसी विज्ञान अकादमी के तत्वावधान में, उनके प्रयोग ने प्रदर्शित किया कि जीवाणुरहित और बंद फ्लास्क में, कभी भी कुछ भी विकसित नहीं हुआ; और, इसके विपरीत, जीवाणुरहित लेकिन खुले फ्लास्क में, सूक्ष्मजीव विकसित हो सकते हैं। इस प्रयोग के लिए, अकादमी ने उन्हें 1862 में 2,500 फ़्रांक ले जाने वाले अल्हुम्बर्ट पुरस्कार से सम्मानित किया।

पास्तर को रोगों के जीवाणु सिद्धांत के पिता के रूप में भी माना जाता है, जो उस समय एक गौण चिकित्सा अवधारणा थी। उनके कई प्रयोगों से पता चला कि रोगाणुओं को मारने या रोकने से रोगों को रोका जा सकता है, जिससे रोगाणु सिद्धांत और नैदानिक चिकित्सा में इसके अनुप्रयोग का सीधे समर्थन होता है। जीवाणु संदूषण को रोकने के लिए दूध और शराब के उपचार की तकनीक के आविष्कार के लिए उन्हें आम जनता के द्वारा जाना जाता है, एक प्रक्रिया जिसे अब पास्तरीकरण कहा जाता है। पाश्चर ने रसायन विज्ञान में भी महत्वपूर्ण खोज की, विशेष रूप से आणविक आधार पर कुछ क्रिस्टल की विषमता और रेसमाइज़ेशन। अपने करियर की शुरुआत में, टार्टरिक अम्ल की उनकी जांच के परिणामस्वरूप अब चाक्षुष आइसोमर कहा जाता है। उनके काम ने कार्बनिक यौगिकों की संरचना में एक मौलिक सिद्धांत की वर्तमान समझ का मार्ग प्रशस्त किया।[3]

बचपन तथा शिक्षा

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लुई पाश्चर का जन्म दायीर 182क़्रांसीसी विज्ञान अकादमी ान नैपोलियन बोनापार्ट के एक व्यवसायी सैनिक के यहां जीवाणुरहित उनिता की इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़ लिखकर कोई महान आदमी बने। वे उसकी पढाई के लिए कर्ज का बोझ भी उठाना चाहते थे। पिता के साथ काम में हाते हुए लुई पाश्चर ने अपने पिता की इच्छा पुरी करने के लिए अरबोय की एक पाठशाला में प्रवेश लिया किन्तु वहा के अध्यापको द्वारा पढाई गयी विद्या उनकी समझ के बाहर थी। उन्हें मंदबुद्धि और बुद्धू कहकर चिढाया जाता था।

अध्यापको की उपेक्षा से दुखी होकर लुई पाश्चर ने विद्यालयीन पढाई तो छोड़ दी किन्तु उन्होंने कुछ ऐसा करने की सोची जिससे सारा संसार उन्हें बुद्धू नही कुशाग्र बुद्धि मानकर सम्मानित करे। पिता द्वारा जोर जबरदस्ती करने पर वे उच्च शिक्षा हेतु पेरिस गये और वही पर वेसाको के एक कॉलेज में अध्ययन करने लगे। उनकी विशेष रूचि रसायनशास्त्र में थी। वे रसायन शास्त्र के विद्वान डा.ड्यूमा से विशेष प्रभावित थे। इकोलनारमेल कॉलेज से उपाधि ग्रहण कर लुई पाश्चर ने 26 वर्ष की उम्र में रसायन की बजाय भौतिक विज्ञान पढना आरम्भ किया।

बाधाओं को पार करते हुए वे विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बन गये। इस पद को स्वीकारने के बाद उन्होंने अनुसन्धान कार्य आरम्भ कर दिया। सबसे पहले अनुसन्धान करते हुए उन्होंने इमली के अम्ल से अंगूर अम्ल बनाया किन्तु उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोज “विषैले जन्तुओ द्वारा काटे जाने पर उनके विष से मानव के जीवन की रक्षा करनी थी। ” चाहे कुत्ते के काटने के बाद रेबीज का टीका बनाना हो या फिर किसी जख्म के सड़ने और उसमे कीड़े पड़ने पर अपने उपचार की विधि द्वारा उसकी सफल चिकित्सा करने का कार्य हो लुई पाश्चर ने उन्ही कार्यो में अपने प्रयोगों द्वारा सफलता पायी।

लुई बचपन से ही दयालु प्रकृति के थे। अपने शैशवकाल में आपने गांव के आठ व्यक्तियों को पागल भेड़िए के काटने से मरते हुए देखा था। वे उनकी दर्दभरी चीखों को लुई पास्चर भूल नहीं सके थे। युवावस्था में भी जब यह अतीत की घटना स्मृति पटल पर छा जाती, तो लुई बेचैन हो उठते थे। पर वे पढ़ने-लिखने में विशेष तेज नहीं थे। इस पर भी आप में दो गुण मौजूद थे, जो विज्ञान में सफलता के लिए आवश्यक होते हैं – उत्सुकता एवं धीरज। युवावस्था में आपने लिखा था कि शब्दकोश में तीन शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं: इच्छाशक्ति, काम तथा सफलता।

कॉलेज की पढ़ाई समाप्त कर, अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक रसायन शाला में कार्य करना आरम्भ कर दिया। यहाँ पर उन्होने क्रिस्टलों का अध्ययन किया तथा कुछ महत्त्वपूर्ण अनुसंधान भी किए। इनसे रसायन के रूप में उन्हे अच्छा यश मिलने लग गया।

पाश्चराइजेशन

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लुई पास्चर ने अपने सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा मदिरा की परीक्षा करने में घण्टों बिता दिए। अंत में पास्चर ने पाया कि जीवाणु नामक अत्यन्त नन्हें जीव मदिरा को खट्टी कर देते हैं। अब पास्चर ने पता लगाया कि यदि मदिरा को 20-30 मिनट तक 60 सेंटीग्रेड पर गरम किया जाता है तो ये जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। ताप उबलने के ताप से नीचा है। इससे मदिरा के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बाद में उन्होंने दूध को मीठा एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए भी इसी सिद्धान्त का उपयोग किया। यही दूध ‘पास्चरित दूध’ कहलाता है।

एक दिन लुई पास्चर को सूझा कि यदि ये नन्हें जीवाणु खाद्यों एवं द्रव्यों में होते हैं तो ये जीवित जंतुओं तथा लोगों के रक्त में भी हो सकते हैं। वे बीमारी पैदा कर सकते हैं। उन्हीं दिनों फ्रांस की मुर्गियों में ‘चूजों का हैजा’ नामक एक भयंकर महामारी फैली थी। लाखों चूजे मर रहे थे। मुर्गी पालने वालों ने पास्चर से प्रार्थना की कि हमारी सहायता कीजिए। फिर पास्चरने उस जीवाणु की खोज शुरू कर दी जो चूजों में हैजा फैला रहा था। पास्चरको वे जीवाणु मरे हुए चूजों के शरीर में रक्त में इधर-उधर तैरते दिखाई दिए। उन्होंने इस जीवाणु को दुर्बल बनाया और इंजेक्शन के माध्यम से स्वस्थ चूजों की देह में पहुँचाया। इससे वैक्सीन लगे हुए चूजों को हैजा नहीं हुआ। पाश्चरने टीका लगाने की विधि का आविष्कार नहीं किया पर चूजों के हैजे के जीवाणुओं का पता लगा लिया।

इसके बाद लुई पाश्चर ने गायों और भेड़ों के ऐन्थ्रैक्स नामक रोग के लिए वैक्सीन बनायी: पर उनमें रोग हो जाने के बाद वे उन्हें अच्छा नहीं कर सके: किन्तु रोग को होने से रोकने में लुइको सफलता मिल गई। पास्चरने भेड़ों के दुर्बल किए हुए ऐन्थ्रैक्स जीवाणुओं की सुई लगाई। इससे होता यह था कि भेड़ को बहुत हल्का ऐन्थ्रैक्स हो जाता था; पर वह इतना हल्का होता था कि वे कभी बीमार नहीं पड़ती थीं और उसके बाद कभी वह घातक रोग उन्हें नही होता था। पास्चर और उनके सहयोगियों ने महीनों फ्रांस में घूमकर सहस्रों भेड़ों को यह सुई लगाई। इससे फ्रांस के गौ एवं भेड़ उद्योग की रक्षा हुई। अंगूठाकार|303x303पिक्सेल|लुइ पास्चेर अपनी प्रयोगशाला में एक पेंटिंग १८८५

रेबीज टीका

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पाश्चरने तरह-तरह के सहस्रों प्रयोग कर डाले। इनमें बहुत से खतरनाक भी थे। वे विषैले वाइरस वाले भयानक कुत्तों पर काम कर रहे थे। अत में पाश्चरने इस समस्या का हल निकाल लिया। उन्होंने थोड़े से विषैले वाइरस को दुर्बल बनाया। फिर उससे इस वाइरस का टीका तैयार किया। इस टीके को उन्होंने एक स्वस्थ कुत्ते की देह में पहुँचाया। टीके की चौदह सुइयाँ लगाने के बाद रैबीज के प्रति रक्षित हो गया। पाश्चरकी यह खोज बड़ी महत्त्वपूर्ण थी; पर पाश्चरने अभी मानव पर इसका प्रयोग नहीं किया था। सन् १८८५ ई० की बात है। लुई पाश्चर अपनी प्रयोगशाला में बैठे हुए थे। एक फ्रांसीसी महिला अपने नौ वर्षीय पुत्र जोजेफ को लेकर उनके पास पहुँची। उस बच्चे को दो दिन पहले एक पागल कुत्ते ने काटा था। पागल कुत्ते की लार में नन्हे जीवाणु होते हैं जो रैबीज वाइरस कहलाते हैं। यदि कुछ नहीं किया जाता, तो नौ वर्षीय जोजेफ धीरे-धीरे जलसंत्रास(hydrofobia) से तड़प कर जान दे देता।

लुई पाश्चरने बालक जोजेफ का परीक्षण किया। बहुत वर्षों से वे इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि जलसंत्रास को कैसे रोका जाए? लुई इस रोग से विशेष रूप से घृणा करते थे। अब प्रश्न था कि बालक जोजेफ के रैबीज वैक्सिन की सुईयाँ लगाने की हिम्मत करें अथवा नहीं। बालक की मृत्यु की सम्भावना थी। पर सुइयां न लगने पर भी उसकी मृत्यु निश्चित् थी। इस दुविधा में लुईने तत्काल निर्णय लिया और बालक जोजेफ का उपचार करना शुरू कर दिया। लुई दस दिन तक बालक जोजेफ के वैक्सीन की बढ़ती मात्रा की सुइयाँ लगाते रहे और तब महान आश्चर्य की बात हुई। बालक जोजेफ को जलसंत्रास नही हुआ। इसके विपरीत वह अच्छा होने लग गया। इतिहास में प्रथम बार मानव को जलसंत्रास से बचाने के लिए सुई लगाई गई। पास्चरने वास्तव में मानव जाति को यह अनोखा उपहार दिया। पाश्चरके देशवासियों ने उन्हें सब सम्मान एवं सब पदक प्रदान किए। उन्होंने लुईके सम्मान में पास्चर इंस्टीट्यूट का निर्माण किया: किन्तु कीर्ति एव ऐश्वर्य से पास्चर मे कोई परिवर्तन नहीं आया। वे जीवनपर्यन्त तक सदैव रोगों को रोक कर पीड़ा हरण के उपायों की खोज में लगे रहे।

रेशम के कीड़ो के रोग की रोकथाम के लिए उन्होंने 6 वर्षो तक इतने प्रयास किये कि वे अस्वस्थ हो गये। पागल कुत्तो के काटे जाने पर मनुष्य के इलाज का टीका, हैजा, प्लेग आदि संक्रामक रोगों के रोकथाम के लिए उन्होंने विशेषत: कार्य किया। यह सचमुच एक महान कार्य था।

सन् 1895 ई। में उनकी निद्रावस्था में ही मृत्यु हो गई।

बाहरी कड़ीयाँ

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चिकित्सा जगत में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं ‘लुई पाश्चर’

  1. Adam, P. (1951-09). "Louis Pasteur: Father of bacteriology". Canadian Journal of Medical Technology. 13 (3): 126–128. PMID 14870064. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0008-4158. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. Lane, Nick (2015-04-19). "The unseen world: reflections on Leeuwenhoek (1677) 'Concerning little animals'". Philosophical Transactions of the Royal Society B: Biological Sciences. 370 (1666): 20140344. PMID 25750239. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0962-8436. डीओआइ:10.1098/rstb.2014.0344. पी॰एम॰सी॰ 4360124.
  3. The Private Science of Louis Pasteur (अंग्रेज़ी में). 2016-04-19. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-691-63397-8.