लेग़ारी

एक बलोच समुदाय है जो पकिस्तान के बलोचिस्तान, सिन्ध और पंजाब प्रान्तो में बसा हुआ है।

लेग़ारी या लग़ारी (बलोचसिन्धी: لغاری) एक बलोच समुदाय है जो पाकिस्तान के बलोचिस्तान, सिन्ध और पंजाब प्रान्तो में बसा हुआ है। वे बलोच, सिन्धी और सराईकी भाषाएँ बोलते हैं और सुन्नी मुस्लिम हैं।

नाम का उच्चारण

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'लेग़ारी' में बिन्दु-युक्त 'ग़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना नुक़्ते वाले 'ग' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ग़लती' और 'ग़रीब' शब्दों के 'ग़' से मिलता है।

लेग़ारी समुदाय इन शाखाओं में बँटा हुआ है: होत अलयानी, हदयानी, बगाल, चंगवानी, जलब या जलबानी, रमदानी, बिरमानी और मुरीदानी हयबत, गौलानी![1]

१८वीं सदियों में लेग़ारी क़बीलों के सरदारों ने सिन्ध के तालपूर अमीरों (राजाओं) के साथ मिलकर ब्रिटिश हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ मदद की थी और १८४३ में मियानी के युद्ध में भी उनके मित्रपक्ष में रहकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़े थे। आधुनिक सिन्ध में भी उनकी सक्रीय राजनैतिक भूमिका रही है। उदाहरण के लिए फ़ारूक़ अहमद ख़ान लेग़ारी पाकिस्तान पीपल्ज़ पार्टी के एक वरिष्ठ नेता थे और १९९३-१९९७ काल में पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी रहे। होत कबीले के लोग एशीया में मशहूर रठी नस्ल के पशुओ का पालन करना होतो के साथ कैच मकरान का संसी-पुनू प्रेम का किसा भी मशहुर हूआ [2]

इन्हें भी देखें

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