वरुण (देव)
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वरुण (प्रचेता) हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं। वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड के अनुसार महर्षि वाल्मीकि जी वरुण प्रजापति कश्यप और उनकी पत्नी अदिति के ग्यारहवें पुत्र हैं। श्रीमद्भागवतपुराण के अनुसार वरुणदेव की पत्नी का नाम चर्षणी है [1] | वरुणदेव का वाहन मगरमच्छ है और वे जललोक के अधिपति हैं | प्राचीन वैदिक धर्म में उनका स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण था पर वेदों में उसका रूप इतना अमूर्त हैं कि उसका प्राकृतिक चित्रण मुश्किल है। माना जाता है कि वरुण की स्थिति अन्य वैदिक देवताओं की अपेक्षा प्राचीन है, इसीलिए वैदिक युग में वरुण किसी प्राकृतिक उपादान का वाचक नहीं है। अग्नि व इंद्र की अपेक्षा वरुण को संबोधित सूक्तों की मात्रा बहुत कम है फिर भी उसका महत्व कम नहीं है। इंद्र को महान योद्धा के रूप में जाना जाता है तो वरुण को नैतिक शक्ति का महान पोषक माना गया है, वह ऋत (सत्य) का पोषक है। अधिकतर सूक्तों में वस्र्ण के प्रति उदात्त भक्ति की भावना दिखाई देती है। ऋग्वेद के अधिकतर सूक्तों में वरुण से किए गए पापों के लिए क्षमा प्रार्थना की गई हैं। वरुण को अन्य देवताओं जैसे इंद्र आदि के साथ भी वर्णित किया गया है। वरुण से संबंधित प्रार्थनाओं में भक्ति भावना की पराकाष्ठा दिखाई देती है। उदाहरण के लिए ऋग्वेद के सातवें मंडल में वस्र्ण के लिए सुंदर प्रार्थना गीत मिलते हैं। उनको इतिहासकार मानते हैं कि वरुण ही पारसी पंंथ में "अहुरा मज़्दा" कहलाए। बाद की पौराणिक कथाओं में वरुण को मामूली जल-देव बना दिया गया। वरुणदेव को प्रचेता भी कहतें हैं| इनके भाई क्रमश: सूर्यनारायण , इन्द्रदेव , मित्र , भग , अर्यमा , पूषा , वामनदेव आदि आदित्य हैं |
सन्दर्भ
संपादित करें[1] श्रीमद्भागवतपुराण स्कन्ध ६ अध्याय १८ श्लोक ४
- ↑ अ आ "श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः ६/अध्यायः १८ - विकिस्रोतः". sa.wikisource.org (sanskrit में). अभिगमन तिथि 2022-03-14.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)