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नाटककार की टिप्पणी संपादित करें

अपने दूसरे नाटक ("लहरों के राजहंस") की भूमिका में मोहन राकेश नें लिखा कि "मेघदूत पढ़ते हुए मुझे लगा करता था कि वह कहानी निर्वासित यक्ष की उतनी नहीं है, जितनी स्वयं अपनी आत्मा से निर्वासित उस कवि की जिसने अपनी ही एक अपराध-अनुभूति को इस परिकल्पना में ढाल दिया है।" मोहन राकेश ने कालिदास की इसी निहित अपराध-अनुभूति को "आषाढ़ का एक दिन" का आधार बनाया। Shubham8p (वार्ता) 09:35, 13 जुलाई 2021 (UTC)उत्तर दें

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