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लेखन संबंधी नीतियाँ

चिप की बदौलत ही चीजें माइक्रो, मैक्रो और फिर नैनो हो गई है। माइक्रोचिप, इंट्रीग्रेटेड सíकट की एक चिप होती है, जो कि सिलिकॉन से बनी होती है। आज के दौर में माइक्रोचिप कंप्यूटर, मोबाइल, पीडीए और माइक्रोवेब ओवन सहित इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम का जरूरी अंग बन गई है। इतिहास : 1958 में माइक्रोचिप का आविष्कार रॉबर्ट नॉयस और जैक किल्बे ने किया था। यह दोनों अलग-अलग कंपनियों में काम करते थे और दोनों ही कंपनियां इस रिसर्च को अपने दृष्टिकोण से कर रही थी। इस रिसर्च के बाद जब दोनों ही कंपनियों ने इसके पेटेंट के लिए आवेदन किया, तो बेहद रोचक स्थिति उत्पन्न हो गई। अंतत: दोनों कंपनियों को सम्मिलत रूप से इसका लाइसेंस दिया गया और सम्मिलत रूप से इसका पेटेंट दिया गया। पहली बार माइक्रोचिप लोगों के लिए 1961 में उपलब्ध हुई। उस दौर से लेकर अब तक माइक्रोचिप में कई बदलाव आ चुके हैं। पहली माइक्रोचिप में जहां एक ट्रांजिस्टर, एक कैपेसिटर और तीन रजिस्टर थे। वर्तमान माइक्रोचिप में एक छोटी सी जगह में 125 मिलियन ट्रांजिस्टर समाए हुए हैं। फायदे : इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के अलावा माइक्रोचिप के कई फायदे हैं। इसने मानव की जिंदगी को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। वर्तमान में माइक्रोचिप का इस्तेमाल बॉयोलॉजिकल सिस्टम में होता है। धीरे-धीरे माइक्रोचिप का प्रयोग जिंदगी को बचाने के रूप में भी होने लगा है। हृदय रोगियों के लिए विकल्प के रूप में आए पेसमेकर में माइक्रोचिप का प्रयोग होता है। यह हृदय की गति को नियत्रिंत रखता है। इसका इस्तेमाल हाथ की घड़ियों, मोबाइल फोन से लेकर स्पेस शटल तक में हो सकता है।

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