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बिखरते मोती

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यह जीवन है,यह सभी जानते हैं|लेकिन यह कभी नहीं जानते हैं हम कि इस जीवन को जीना कैसे है | आज जीवन के मोती बिखरते जा रहे है, खुशियां बिखरती जा रहीं हैं |यह भारत देश कई वर्षों से सम्पूर्ण जगत को मार्ग दर्शन करता आया है |परंतु आज भारत देश के मोती बिखरने लगे हैं |कई महान विद्वानों, ऋषी-मुनियों और ज्ञानीयों को जन्म देने वाला यह देश भारत है | इसका मोती आज बिखरते जा रहे हैं|अगर एसा ही होता रहा तो यह भारत जगत का कल्याण कैसे करेगा,भारत ही एक एसा देश है जो पूरा विश्वे एक धागा में बांध सकता है|लेकिन मामला तो उल्टा है कि आज भारत के मोती बिखरते है,इसको रोकने के लिए मैं बहुत कोशिश कर रहा हुं|लेकिन अचानक मुझे ख्याल आया कि इसके लिए सम्पूर्ण भारतीयों को जगाना चाहिए|मैं नहीं कहता हुं कि मेरा नाम हो,मैं चाहता हुं कि जगत के प्रत्येक प्राणी की आत्मा में शांति हो|अगर संसार में,जगत में,विश्वे में शांति नहीं होगी तो कोई लेख काम के नहीं होंगें|मैं नहीं चाहता हुं कि भारतीयों के मोती बिखरे,मैं यह भी नहीं चाहता हुं कि दुनिया का मोती बिखरे,मैं चाहता हुं कि सभी जीवों की आत्मा एक शांति को प्राप्त हो,एक मोक्ष को प्राप्त हो|जीसको तुम मोक्ष कहते हो,वह तो मरने के बाद मिलेगा,लेकिन जीसको मैं मोक्ष कहता हुं,वह जीवित प्राणीयों के ह्र्दय में होंगा|मैं सम्पूर्ण विश्व को शांति मिलने को मोक्ष कहता हुं |वैसे तो भारत में अनेक संत हुए परंतु राजस्थान में एक संत हुआ नाम था सुखराम दास,जिन्हों ने जाना ही नहीं अपितु दूसरों को भी जनाने की कोशिश की है |सुखराम दास जी का जन्म राजस्थान के नागौर जिला में हुआ|सुखराम दास का आश्रम लुण्सरा के पास पौ नामक गांव में है |सुखराम दास जी से मिलने के लिए बङे-बङे राजा-महाराजा आते थे|वैसे तो संतों का कोई पंथ नहीं होता फिर भी सुखराम दास जी एक दादू पंथी था|सुखराम दास जी ने एक जगह कहा है कि,अगर पूरा जगत का कल्याण नहीं हो तो अभी भारत देश भी सुख नहीं हो सकता |इसलिए मैं कहता हुं कि चाहिए कितने ही धनवान हो जाएं सुख तब ही मिलता है,जब दूसरों को भी सुख होंगा |

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