वार्ता:चमार

Latest comment: 1 माह पहले by 2402:3A80:11A3:A36A:B4CA:31FF:FEC7:1AEA in topic सुधार अपेक्षित

यह पृष्ठ चमार लेख के सुधार पर चर्चा करने के लिए वार्ता पन्ना है। यदि आप अपने संदेश पर जल्दी सबका ध्यान चाहते हैं, तो यहाँ संदेश लिखने के बाद चौपाल पर भी सूचना छोड़ दें।

लेखन संबंधी नीतियाँ

चमार का अर्थ है की जो चमडे का काम करता हो

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  1. लेख में कई स्थानों पर विकिपीडिया विश्वकोष की दृष्टि से अनावश्यक विशेषणों का प्रयोग हुआ है, जैसे एक से अधिक बार डॉ., महान अभिनेत्री, बाबासाहब, महान नेता, भगवान, आदि जिनकी आवश्यकता नहीं है। डॉ उपाधि भी मात्र अधिकतम एक बार प्रयोग कर सकते हैं।
  2. इस जाति के लोग सामाजिक होते है।  :- इस प्रकार के वाक्य ये जताते हैं कि किसी जाति या समूह में ये जन्मजात गुण होता है, जबकि ये एक मानवीय गुण है तथा किसी में भी उपस्थित हो या नहीं हो सकता है। इसका अर्थ ये नहीं होना चाहिये कि क्या अन्य अधिकांश जातियों के लोग असामाजिक हुआ करते हैं?
  3. आदि शहरों में ये बहुत मजबूत स्थिति में है।: क्या ये कोई सेना आदि है जो मजबूत स्थिति बतायी जा रही है? साधारण भाषा जैसे -- इन राज्यों में इस समूह या जाति के लोग बहुतायत में पाये जाते हैं। -- इसे लिखा जाना चाहिये।
  4. मेरे विचार से यहां गौतम बुद्ध जी के चित्र का औचित्य समझ नहीं आया। हालांकि इन चित्रों को दीर्घा में व्यवस्थित रूप में विशेषण यथासंभव रूप से हटा कर लगा दिया है, किन्तु इस चित्र विशेष की आवश्यकता ???
  5. आज भी भारत में ब्राह्मण के बाद सर्वाधिक IAS , IPS और PCS चमार जाति से है आज भी ??? भारतीय सेवाओं में किसी जाति विशेष के लोगों की संख्या की परस्पर तुलना शायद विश्वकोषीय सामग्री नहीं होगी।
उपरोक्त बिन्दुओं पर सम्मति/राय/सुधार आदि अपेक्षित हैं। -- आशीष भटनागरवार्ता 05:31, 11 फ़रवरी 2017 (UTC)उत्तर दें
  समर्थन सुधार में मेरा भी सहयोग रहेगा। दूसरे भी एसे बहुत से लेख है और बन रहे है। काम में दूसरे सदस्यों का सहयोग भी इच्छनिय है।--☆★आर्यावर्त (✉✉) 06:30, 11 फ़रवरी 2017 (UTC)उत्तर दें
अंबेडकर जी के नाम में बार-बार बाबा बाबासाहब जोड़ने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि विश्वकोष में एक बार ये अवश्य आना चाहिये कि उन्हें लोग बाबासाहब कहा करते थे, किन्तु उनका मुख्य नाम तो मात्र भीमराव ही था, व हमें किसी के मूल नाम से छेड़छाड़ करने की न तो आवश्यकता है, न अनुमत ही है। यह संदेश जी को समझना चाहिये।
ऐसे ही किसी के नाम में श्री या जी भी नहीं जोड़ना चाहिये। यह सम्मान का विषय नहीं अपितु विकिपीडिया के विष्वकोषीय सिद्धांत का विषय है। विकिपीडिया के लिये महात्मा गांधी, बाबासाहेब आंबेडकर या नाथुराम गौड़से में कोई अंतर नहीं होना चाहिये, वैसे ही जैसे विष, अमृत या औषधि के लेखों में कोई अंतर नहीं होना चाहिये। इसी समान पृथ्वी/आकाश, स्वर्ग/नर्क, मित्र/शत्रु, रूस/संयुक्त राज्य/पाकिस्तान, आदि भी उदाहरणार्थ हैं। --आशीष भटनागरवार्ता 06:47, 11 फ़रवरी 2017 (UTC)उत्तर दें
Sahi baat boli ashish ji ne 2401:4900:5C27:5EF1:6AE0:2D8B:C38A:F687 (वार्ता) 12:40, 22 जुलाई 2024 (UTC)उत्तर दें

चमार समूह के आदर्श व्यक्तिओं में गौतम बुद्ध, संत रविदास और डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर इनके नाम आते है। और संत रविदास की तरह गौतम बुद्ध और डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर चमार जाति से नहीं है। चमार जाति के प्रसिद्ध व्यक्तिओं में संत रविदास, कांशीराम, जगजीवन राम, मायावती, दिव्या भारती आदी के नाम आते है। संदेश हिवाळे (वार्ता) 10:47, 11 फ़रवरी 2017 (UTC)उत्तर दें

संविधान निर्माता बाबा साहब को लेखक चमार बनाने के पीछे क्यों पड़े हैं मुझे समझ नही आ रहा है बाबा साहब महार जाति से थे न कि चमार। अर्जुन सिंह वाल्मीकि (वार्ता) 11:31, 11 मई 2023 (UTC)उत्तर दें
क्या संत रवि दास चमार थे क्या सबूत है इनके पास 2401:4900:5C27:5EF1:6AE0:2D8B:C38A:F687 (वार्ता) 12:50, 22 जुलाई 2024 (UTC)उत्तर दें
संदेश हिवाळे जी आप कृपया इंग्लिश विकिपीडिया में B. R. Ambedkar का लेख पढ़े| इससे आंबेडकर का वास्तविक ज्ञान और कैसे लेख लिखा जाये यह आप को पता लग जायेगा

-- ए० एल० मिश्र (वार्ता) 11:23, 11 फ़रवरी 2017 (UTC)उत्तर दें

  • अंग्रेजी विकिपीडिया में नियमो का पालन तथा लेख का यथा शीघ्र परीक्षण होता है। लेख के नियमानुसार न होने पर लेख हटा दिया जाता है -- ए० एल० मिश्र (वार्ता) 11:23, 11 फ़रवरी 2017 (UTC)उत्तर दें
  • सुझाव *
  • अंग्रेजी विकिपीडिया में नाम के पूर्व विशेषण लिखने का नियम नहीं है
  • लेख में उप नाम का उल्लेख हो सकता है.
  • उपाधियाँ शिक्षा के शीर्षक के अन्तर्गत होनी चाहिए ,नाम के पहले नहीं जैसे डॉक्टर आदि। .
  • बार -बार पूरे नाम के स्थान पर अंतिम नाम का उल्लेख करें।
  • आप जिस उपाधि या अन्य तथ्य का उल्लेख करें उसे सन्दर्भ देकर पुष्टि भी करें
  • लेख में किसी भी तथ्य की बार -बार पुनरावृत्ति न करें।-- ए० एल० मिश्र (वार्ता) 11:55, 11 फ़रवरी 2017 (UTC)उत्तर दें
अंग्रेज़ी विकि क्या ये तो विकिपीडिया और सही कहें तो विश्वकोश की ही नीति है कि कोई विशेषण बार बार प्रयोग नहीं किया जाता है। शिक्षण से संबंधी उपाधियां शिक्षा उपशीर्षक के अन्तर्गत दें, अन्य लोकप्रिय उपाधियां भी एक बार उपनाम के विवरण के समय दे दें, या कोई विशेष उपाधि किसी विशेष प्रसंग से जुड़ी हो, तो उसे वहां ही दें। इसके अलावा चौथे बिन्दु का भी ध्यान रखा जाना चाहिये, अर्थात बार बार व हर बार बाबासाहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर, इतना बड़ा नाम लिखा जाये तो पढ़ने में भी कठिन व खिजाने वाला लगता है। इसीलिये साहित्य में आप सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है, व विश्वकोश/विकिपीडिया में अंतिम नाम जैसे आम्बेडकर ही प्रयोग किया जाता है, न कि पूरा नाम, या डॉ.आम्बेडकर, या श्री आम्बेडकर, वरन मात्र आम्बेडकर। बल्कि बाल्यकाल के जीवनी अंश में तो भीमराव भी प्रयोग कर सकते हैं। ये अच्छे साहित्य के अंग होते हैं। सबको ज्ञात होता है कि विश्वकोश में शब्दकोश की ही भांति कोई सम्मान या अपमान नहीं देखा जाता है। मिश्र जी के प्रत्येक बिन्दु की सराहना तो मैं क्या करूंगा, किन्तु सम्मानपूर्वक समर्थन (व पालन भी) करूंगा, व आशा करता हूं कि अन्य सदस्य भी प्रेरणा लेंगे।आशीष भटनागरवार्ता 13:29, 11 फ़रवरी 2017 (UTC)उत्तर दें

चवर (चमार) वंश का इतिहास बड़ा ही गौरव शाली है खास कर भारत का, आप इसमें जितना ही डूबेंगे उतना ही आपको मजा आएगा, आइये कुछ झलक देखते है और अब जानते हैं चमार एवं खटिक जाति का गौरवशाली इतिहास के बारे में ।

सिकन्दर लोदी (१४८९-१५१७) के शासनकाल से पहले पूरे भारतीय इतिहास में 'चमार' नाम की किसी जाति का उल्लेख नहीं मिलता। आज जिन्हें हम 'चमार' जाति से संबोधित करते हैं और जिनके साथ छूआछूत का व्यवहार करते हैं, दरअसल वह वीर चंवरवंश के क्षत्रिय हैं। जिन्हें सिकन्दर लोदी ने चमार घोषित करके अपमानित करने की चेष्टा की।भारत के सबसे विश्वसनीय इतिहास लेखकों में से एक विद्वान कर्नल टाड को माना जाता है जिन्होनें अपनी पुस्तक 'द हिस्ट्री आफ राजस्थान' में चंवरवंश के बारे में विस्तार से लिखा है। प्रख्यात लेखक डॉ विजय सोनकर शास्त्री ने भी गहन शोध के बाद इनके स्वर्णिम अतीत को विस्तार से बताने वाली पुस्तक "हिन्दू चर्ममारी जातिः एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास" लिखी। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी इस राजवंश का उल्लेख है। डॉ शास्त्री के अनुसार प्राचीनकाल में न तो चमार कोई शब्द था और न ही इस नाम की कोई जाति ही थी। 'अर्वनाइजेशन' की लेखिका डॉ हमीदा खातून लिखती हैं, मध्यकालीन इस्लामी शासन से पूर्व भारत में चर्म एवं सफाई कर्म के लिए किसी विशेष जाति का एक भी उल्लेख नहीं मिलता है। हिंदू चमड़े को निषिद्ध व हेय समझते थे। लेकिन भारत में मुस्लिम शासकों के आने के बाद इसके उत्पादन के भारी प्रयास किए गये थे। डा विजय सोनकर शास्त्री के अनुसार तुर्क आक्रमणकारियों के काल में चंवर राजवंश का शासन भारत के पश्चिमी भाग में था और इसके प्रतापी राजा चंवरसेन थे। इस क्षत्रिय वंश के राज परिवार का वैवाहिक संबंध बाप्पा रावल वंश के साथ था। राणा सांगा व उनकी पत्नी झाली रानी ने चंवरवंश से संबंध रखने वाले संत रैदासजी को अपना गुरु बनाकर उनको मेवाड़ के राजगुरु की उपाधि दी थी और उनसे चित्तौड़ के किले में रहने की प्रार्थना की थी। संत रविदास चित्तौड़ किले में कई महीने रहे थे। उनके महान व्यक्तित्व एवं उपदेशों से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोगों ने उन्हें गुरू माना और उनके अनुयायी बने। उसी का परिणाम है आज भी विशेषकर पश्चिम भारत में बड़ी संख्या में रविदासी हैं। राजस्थान में चमार जाति का बर्ताव आज भी लगभग राजपूतों जैसा ही है। औरतें लम्बा घूंघट रखती हैं आदमी ज़्यादातर मूंछे और पगड़ी रखते थे।संत रविदास की प्रसिद्धी इतनी बढ़ने लगी कि इस्लामिक शासन घबड़ा गया सिकन्दर लोदी ने मुल्ला सदना फकीर को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा वह जानता था की यदि रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में इस्लाम मतावलंबी हो जायेगे लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गयी स्वयं मुल्ला सदना फकीर शास्त्रार्थ में पराजित हो गये और कोई उत्तर न दे सका और उनकी भक्ति से प्रभावित होकर अपना नाम रामदास रखकर उनका भक्त वैष्णव (हिन्दू) हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी आगबबूला हो उठा एवं उसने संत रैदास को कैद कर लिया और इनके अनुयायियों को चमार यानी अछूत चंडाल घोषित कर दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जुती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए। लेकिन उन्होंने कहा-"वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान. वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार" (रैदास रामायण) संत रैदास पर हो रहे अत्याचारों के प्रतिउत्तर में चंवर वंश के क्षत्रियों ने दिल्ली को घेर लिया। इससे भयभीत हो सिकन्दर लोदी को संत रैदास को छोड़ना पड़ा था। संत रैदास का यह दोहा देखिए: बादशाह ने वचन उचारा। मत प्यारा इसलाम हमारा ।। खंडन करै उसे रविदासा। उसे करौ प्राण कौ नाशा ।। जब तक राम नाम रट लावे। दाना पानी यह नहींपावे ।। जब इसलाम धर्म स्वीकारे। मुख से कलमा आपा उचारै ।। पढे नमाज जभी चितलाई। दाना पानी तब यह पाई । समस्या तो यह है कि लोगो संत रविदास के दोहों को ही नहीं पढ़ा, जिसमें उस समय के समाज का चित्रण है जो बादशाह सिकंदर लोदी के अत्याचार, इस्लाम में जबरदस्ती धर्मांतरण और इसका विरोध करने वाले हिंदू ब्राहमणों व क्षत्रियों को निम्न कर्म में धकेलने की ओर संकेत करता है। चंवरवंश के वीर क्षत्रिय जिन्हें सिकंदर लोदी ने 'चमार' बनाया और हिंदू पुरखों और रजपूरोहीत पंडितों  ने सत्ता और धन के लालच में हिन्दू धर्म में इनको निम्न वर्ग और अछूत बना कर इस्लामी बर्बरता का हाथ मजबूत किया। इस समाज ने पददलित और अपमानित होना स्वीकार किया, लेकिन विधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है। लेकिन इतिहास में इनके पूर्वजों को कारागार में रहना पडा, इनकी सम्पत्ति इस्लामिक राजाओं ने जप्त कर ली और इनके परिवार को समाज की मुख्य धारा से अलग दिया गया फिर इन्हें जंगल में रहना पडा और घास फूंस,कच्ची फसलों और मरे जानवरों का मांस खाना पडा अपने जीवन को बचाने के लिए

खटिक जाति के बारे में :-खटिक जाति मूल रूप से वो ब्राहमण जाति है, जिनका काम आदि काल में याज्ञिक पशु बलि देना होता था। आदि काल में यज्ञ में बकरे की बलि दी जाती थी। संस्कृत में इनके लिए शब्द है, 'खटिटक'। मध्यकाल में जब क्रूर इस्लामी अक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों पर हमला किया तो सबसे पहले खटिक जाति के ब्राहमणों ने ही उनका प्रतिकार किया। राजा व सेना तो बाद में आती थी। मंदिर परिसर में रहने वाले खटिक ही सर्वप्रथम उनका सामना करते थे। तैमूरलंग को दीपालपुर व अजोधन में खटिक योद्धाओं ने ही रोका था और सिकंदर को भारत में प्रवेश से रोकने वाली सेना में भी सबसे अधिक खटिक जाति के ही योद्धा थे। तैमूर खटिकों के प्रतिरोध से इतना भयाक्रांत हुआ कि उसने सोते हुए हजारों खटिक सैनिकों की हत्या करवा दी और एक लाख सैनिकों के सिर का ढेर लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर नमाज अदा  बर्बर दिल्ली सल्तनत में गुलाम, तुर्क, लोदी वंश और मुगल शासनकाल में जब अत्याचारों की मारी हिंदू जाति मौत या इस्लाम का चुनाव कर रही थी तो खटिक जाति ने अपने धर्म की रक्षा और बहू बेटियों को मुगलों की गंदी नजर से बचाने के लिए अपने घर के आसपास सूअर बांधना शुरू किया। इस्लाम में सूअर को हराम माना गया है। मुगल तो इसे देखना भी हराम समझते थे। और खटिकों ने मुस्लिम शासकों से बचाव के लिए सूअर पालन शुरू कर दिया। उसे उन्होंने हिंदू के देवता विष्णु के वराह (सूअर) अवतार के रूप में लिया। मुस्लिमों की गो हत्या के जवाब में खटिकों ने सूअर का मांस बेचना शुरू कर दिया और धीरे धीरे यह स्थिति आई कि वह अपने ही हिंदू समाज में पददलित होते चले गए। कल के शूरवीर ब्राहण आज अछूत और दलित श्रेणी में हैं। 1857 की लडाई में मेरठ व उसके आसपास अंग्रेजों के पूरे के पूरे परिवारों को मौत के घाट उतारने वालों में खटिक समाज सबसे आगे था। इससे गुस्साए अंग्रेजों ने 1891 में पूरी खटिक जाति को ही वांटेड और अपराधी जाति घोषित कर दिया।जब आप मेरठ से लेकर कानपुर तक 1857 के विद्रोह की दासतान पढ़ेंगे तो रोंगटे खडे हो जाएंगे। जैसे को तैसा पर चलते हुए खटिक जाति ने न केवल अंग्रेज अधिकारियों, बल्कि उनकी पत्नी बच्चों को इस निर्दयता से मारा कि अंग्रेज थर्रा उठे। क्रांति को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने खटिकों के गांव के गांव को सामूहिक रूप से फांसी दे दिया गया और बाद में उन्हें अपराधि जाति घोषित कर समाज के एक कोने में ढकेल दिया। आजादी से पूर्व जब मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी तो मुस्लिमों ने कोलकाता शहर में हिंदुओं का नरसंहार शुरू किया, लेकिन एक दो दिन में ही पासा पलट गया खटिक जाति ने मुस्लिमों का इतना भयंकर नरसंहार किया कि बंगाल के मुस्लिम लीग के मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हमसे भूल हो गई। अगर भारत के चमारों और खटीको ने इस्लाम की शर्तों को मानकर मुसलमान बन गये होते तो आज भारत में मुस्लिम जनसंख्या 60 करोड़ के पार होती और आज भारत एक मुस्लिम राष्ट्र बन चुका होता। यहाँ भी जेहाद का बोलबाला होता और ईराक, सीरिया, सोमालिया, पाकिस्तान और अफगानिस्तान आदि देशों की तरह बम धमाके, मार-काट और खून-खराबे का माहौल होता। हिन्दू या तो मार डाले जाते या फिर धर्मान्तरित कर दिये जाते या फिर हमें काफिर के रूप में अत्यंत ही गलीज जिन्दगी मिलती। धन्य हैं चमार जाती जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी अत्याचार और अपमान सहकर भी हिन्दुत्व का गौरव बचाये रखा और स्वयं अपमानित और गरीब रहकर भी हर प्रकार से हिंदू धर्म को बचाये रखा। 2409:4055:4E4B:4EC0:E3EC:7FE0:6C02:BCF1 (वार्ता) 11:42, 18 मई 2024 (UTC)उत्तर दें

अरे भाई अगर चमार इतने बड़े राजवंशी थे तो इनके इस तरह be इज़्जत नहीं किया जाता इनके समशान घाट अलग है क्यूं है जब इतने बड़े चंवर वंशी थे तो उस टाइम लड़े क्यों नहीं बहुत कारण होगे ना तो ये चावर वंशी है और न ही बौद्ध के ये किसी के सगे नही हुए आज तक 2401:4900:5C27:5EF1:6AE0:2D8B:C38A:F687 (वार्ता) 12:47, 22 जुलाई 2024 (UTC)उत्तर दें
उस टाइम भी सब अपने हक के लिए लड़े थे 2401:4900:5C27:5EF1:6AE0:2D8B:C38A:F687 (वार्ता) 12:48, 22 जुलाई 2024 (UTC)उत्तर दें
Aap log bahut lde tabhi to mugalo aur angrejo ke gulam huye 2402:3A80:11A3:A36A:B4CA:31FF:FEC7:1AEA (वार्ता) 03:19, 8 अक्टूबर 2024 (UTC)उत्तर दें

चमार रेजिमेंट थी ये अपर जाति धारियों ने निष्ट की हुई है

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इसको बहाल करना चाहिए 103.93.114.180 (वार्ता) 09:38, 3 जुलाई 2024 (UTC)उत्तर दें

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