विचारण न्यायालय (Trial court) किसी क्षेत्र की न्याय व्यवस्था में वह न्यायालय होता है जिसका उस क्षेत्र में न्यायिक मामलों पर सबसे पहले अधिकारिता होती है। यहाँ किसी भी मुकद्दमे का विचारण सबसे पहले करा जाता है। साधारणतः यहाँ दोनों पक्षों द्वारा अपना पक्ष साबित करने के लिए प्रस्तुत करे गए प्रमाण भी परखे जाते हैं। इस न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय के विरुद्ध न्याय व्यवस्था में इस से ऊपर के स्तर के पुनरावेदन न्यायालय में सुने जाने की गुहार लगाई जा सकती है, लेकिन अधिकांश पुनरावेदन न्यायालय प्रमाण नहीं परखते और विचारण न्यायालय द्वारा उसपर करे गए विश्लेषण को ही आधार बनाते हुए वैधिक दलीलों पर ध्यान देते हैं।[1][2]

भारत के कर्नाटक राज्य के गुंटूर ज़िले का ज़िला न्यायालय। यह एक विचारण न्यायालय है, जहाँ उस ज़िले में उत्पन्न कानूनी मामलों की पहली सुनवाई होती है।

न्यायालय स्तर

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विश्व के अधिकांश भागों में तीन स्तर के न्यायालय होते हैं:

  • विचारण न्यायालय (trial court) - जहाँ सबसे पहले कोई मुकद्दमा सुना जाता है। भारत में यह ज़िला न्यायालय (डिस्ट्रिक्ट कोर्ट) होते हैं।
  • प्रथम पुनरावेदन न्यायालय (court of first appeal) - जहाँ विचारण न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध याचिका डाली जा सकती है। भारत में यह भिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) होते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय (supreme court) या अंतिम पुनरावेदन न्यायालय (court of last resort) - जहाँ प्रथम पुनरावेदन न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध याचिका डाली जा सकती है। इस न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध साधारणतः कोई पुनरावेदन सम्भव नहीं होता। भारत में यह भारत का उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) है।

इन्हें भी देखें

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  1. State v. Randolph, 210 N.J. 330, 350 n.5 (2012), citing Mandel, New Jersey Appellate Practice (Gann Law Books 2012), chapter 28:2
  2. Lax, Jeffrey R. "Constructing Legal Rules on Appellate Courts." American Political Science Review 101.3 (2007): 591–604. Sociological Abstracts; Worldwide Political Science Abstracts. Web. 29 May 2012.