खगौल

भारत के बिहार राज्य के पटना ज़िले में स्थित एक नगर

खगौल (Khagaul) भारत के बिहार राज्य के पटना ज़िले में स्थित एक नगर है।[1][2]

खगौल
Khagaul
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खगौल is located in बिहार
खगौल
खगौल
बिहार में स्थिति
निर्देशांक: 25°35′N 85°03′E / 25.58°N 85.05°E / 25.58; 85.05निर्देशांक: 25°35′N 85°03′E / 25.58°N 85.05°E / 25.58; 85.05
देश भारत
प्रान्तबिहार
ज़िलापटना ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल44,364
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी, मगही
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

विवरण संपादित करें

बिहार राज्य की राजधानी पटना (प्राचीन पाटलिपुत्र) के निकट सुप्रसिद्ध दानापुर रेलवे स्टेशन के उत्तर दक्षिण पूर्व और पश्चिम चारों तरफ का क्षेत्र खगौल के नाम से प्रसिद्ध है। दानापुर रेलवे स्टेशन से सटे दक्षिण चक्रदाहा क्षेत्र में आर्यभट्ट की खगोलीय वेधशाला (एस्ट्रोनोमिकल ऑब्जर्वेटरी) के स्थित होने के कारण ही इस क्षेत्र का नामकरण खगोल हुआ, जो वर्तमान में खगोल शब्द के अपभ्रंश खगौल के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं बैठकर आर्यभट ने विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ आर्यभटीय की रचना की थी तथा शून्य के सिद्धांत का आविष्कार किया था।[3] यहीं बैठकर आर्यभट्ट ने बीजगणित (अलजेबरा), रेखागणित (ज्योमेट्री) एवं त्रिकोणमिति (ट्रिगोनोमेट्री) के मूल सिद्धांतों की रचना की थी तथा पांचवीं शताब्दी में सर्वप्रथम पाई का मान निकाला था जो आज भी मान्य है। प्राचीन काल में सुप्रसिद्ध सोन नदी इसी क्षेत्र से होकर बहते हुए दानापुर में जाकर गंगा से मिलती थी। वर्तमान चक्रदाहा से नवरतनपुर के बीच प्राचीन सोन नदी के किनारे मगध साम्राज्य के प्रधानमंत्री सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री चाणक्य की तपस्थली कुटिया थी, जहां चौथी शताब्दी ईसापूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य से प्रारंभिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्राप्त किया था। चाणक्य शिष्य चंद्रगुप्त ने मगध के क्रूर शासक धनानंद को पराजित कर विश्व के सबसे शक्तिशाली, सबसे प्रभुत्वशाली एवं सबसे विकसित विश्वविख्यात मगध साम्राज्य की स्थापना की तथा सिकंदर और उसके सेनापति सेल्युकस को हराकर वर्तमान भारत पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान समेत ईरान तक मगध साम्राज्य का विस्तार किया। चाणक्य का समाधिस्थल चाणक्य चबूतरा आज भी विद्यमान है। दानापुर रेलवे स्टेशन से उत्तर कैन्ट रोड के किनारे मुस्तफापुर में 1901 ई० में स्थापित वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल बीसवीं शताब्दी के प्रथम आधुनिक गुरुकुल के रूप में विश्वप्रसिद्ध रहा है। दानापुर रेल मंडल कार्यालय, इरिगेशन रिसर्च इंस्टीच्युट, वाटर एंड लैंड मैनेजमेंट इंस्टीच्यूट (वाल्मी), ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेज (एम्स पटना), एन०सी०घोष इंस्टीच्यूट, जगजीवन स्टेडियम राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं।

महान शिक्षाविद, चिकित्सक, चिकित्सा वैज्ञानिक, स्वतंत्रता सेनानी, आर्यसमाज के अग्रणी नेता महामंत्री पंडित हरिनारायण शर्मा (1862 - 1962) द्वारा सन 1901 ई० में स्थापित तथा सन 1915 ई० में विस्तारित वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल, मुस्तफापुर, कैन्ट रोड, खगौल, पटना (बिहार) बीसवीं शताब्दी के प्रथम आधुनिक गुरुकुल के रूप में विश्वप्रसिद्ध रहा है। वैदिक अध्ययन, गणित, विज्ञान, खगोलशास्त्र, आयुर्वेद, दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, नाड़ीविज्ञान, साहित्य, व्याकरण, धनुर्विद्या तलवारबाजी, निशानेबाजी, खेल प्रशिक्षण, वक्तृत्वकला नेतृत्व प्रशिक्षण आदि की श्रेष्ठ व्यवस्था के कारण देश - विदेश के लोग यहाँ आकर शिक्षा प्राप्त करते थे। अनेकों सुप्रसिद्ध डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर, डायरेक्टर, वक्ता, अधिवक्ता, न्यायाधीश, मंत्री, मुख्यमंत्री के आदर्श व्यक्तित्व का निर्माता यह गुरुकुल अत्याधुनिक शिक्षा चिकित्सा छात्रावास सुविधायुक्त प्राथमिक से स्नातकोत्तर स्तर की संस्कारयुक्त शिक्षा हेतु प्रसिद्ध रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन एवं समाजसुधार आन्दोलन का यह सुप्रसिद्ध केन्द्र रहा है। करीब चार एकड़ क्षेत्र में विस्तृत चौतरफा चहारदीवारीयुक्त इस गुरुकुल के दक्षिणी भाग में छात्रावासभवन, मध्यपूर्व में यज्ञशाला, सुदूर पूर्व में औषधि निर्माणकेन्द्र एवं रसोईघर, मध्यपश्चिम में अवस्थित आयुर्वेदिक चिकित्सालय, उत्तरपश्चिम में प्रशासनिक एवं शैक्षणिक भवन तथा बीच में खेल का मैदान अवस्थित था। प्राथमिक स्तर से स्नातकोत्तर स्तर की उच्च स्तरीय शिक्षा व्यवस्था एवं सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति हेतु यह गुरुकुल विश्वविख्यात रहा है। वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल में सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति के विषय थे - धर्मविज्ञान, न्यायविधिविज्ञान योगविज्ञान, भाषाविज्ञान प्रकृतिविज्ञान, समाजविज्ञान, गणित, सैन्यविज्ञान, व्यावसायिकशिक्षा, नेतृत्वप्रशिक्षण। सन 1926 ई० में मुस्तफापुर स्थित वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल के उच्च शिक्षा विभाग को देवघर में स्थानांतरित किया गया, जहां वह करीब अस्सी एकड़ भुक्ल्हंद में विस्तृत “गुरुकुल महाविद्यालय बैद्यनाथधाम, देवघर” के नाम से प्रसिद्ध है। पंडित हरि नारायण शर्मा की प्रेरणा और सक्रिय सहयोग से 1902 ई० में उनके परम सहयोगी आर्य समाजी मित्र स्वामी श्रद्धानंद द्वारा हरिद्वार में “गुरुकुल कांगड़ी विश्व विद्यालय” की स्थापना की गयी तथा सन 1916 ई० में पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा “बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय’ की स्थापना की गयी। उन्होंने लाला हंसराज, गुरुदत्त विद्यार्थी, लाला लाजपत राय के साथ मिलकर सन 1886 ई० में लाहौर में प्रथम ‘डी०ए०वी० स्कूल’ एवं डी०ए०वी० कॉलेज की स्थापना में सक्रिय सहयोग दिया। इस गुरुकुल के संस्थापक सचिव पं० हरिनारायण शर्मा के 1962 ई० में स्वर्गवास, उनके शिक्षाविद पुत्र पं०वेद व्रत शर्मा का पृथ्वीराज कपूर के साथ मुंबई प्रवास एवं 1966 ई० में स्वर्गवास तथा पौत्र ब्रज बल्लभ शर्मा के अन्यत्र कार्यरत रहने एवं सरकारी उपेक्षा के कारण यहाँ की उच्चस्तरीय शिक्षा बाधित हुई। इसके दक्षिणी भाग में अभी मध्यविद्यालय कार्यरत है। पं० हरिनारायण शर्मा के प्रपौत्र कृष्ण बल्लभ शर्मा ‘योगीराज’ (अधिवक्ता, पटना उच्च न्यायालय) द्वारा गुरुकुल के जीर्णोद्धार एवं विकास का प्रयास निरंतर जारी है। बिहार सरकार द्वारा संचालित प्रसिद्ध शोध संस्थान के० पी० जायसवाल रीसर्च इंस्टीच्युट, पटना संग्रहालय भवन, बुद्ध मार्ग, पटना द्वारा प्रकाशित “कॉम्प्रिहेंसिव हिस्ट्री ऑफ बिहार” के वोल्यूम – ३, पार्ट – २, पृष्ठ – २९, ३१, ३७ में पंडित हरि नारायण शर्मा की कुछ कीर्ति सहित उपर्युक्त वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल का ऐतिहासिक स्वरुप वर्णित है।

महान शिक्षाविद, चिकित्सक, चिकित्सा वैज्ञानिक, स्वतंत्रता सेनानी, आर्यसमाज के अग्रणी नेता महामंत्री पंडित हरिनारायण शर्मा (1862 - 1962) ने लाहौर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त किये थे। लाला लाजपत राय, नरदेव शास्त्री, मंगलदेव शास्त्री आदि सुप्रसिद्ध महान लोग लाहौर में उनके सहपाठी रहे थे। साइमन कमीशन के विरुद्ध आंदोलन में लाठीचार्ज से घायल अपने परम सहयोगी मित्र लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने चंद्रशेखर आजाद को वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल प्रांगण में रखकर सन १९२८ ई० में अंग्रेज सौन्डर्स को मारने की योजना को सफल बनाया।

डॉ०राजेन्द्र प्रसाद, डॉ०दुखन राम, डॉ०बद्री प्रसाद, डॉ०मधुसूदन दास, लखन लाल पॉल, पारस नाथ, रमाकांत पांडे, अनुग्रह नारायण सिंह, श्रीकृष्ण सिंह, कृष्ण बल्लभ सहाय, सतीश चन्द्र मिश्रा, बलभद्र प्रसाद, चंद्रशेखर आजाद, पं०वेद व्रत शर्मा, पं०सत्य व्रत शर्मा, पं०प्रिय व्रत शर्मा, ताराकांत झा आदि महान विभूतियों के आदर्श व्यक्तित्व का निर्माता यह सुप्रसिद्ध ‘वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल’ रहा है। गुरुकुल का आदर्श था- ‘एक सुशिक्षित व्यक्ति 100 सेना के बराबर होता है।’ लालालाजपत राय, बालगंगाधर तिलक, नरदेव शास्त्री, मंगलदेव शास्त्री, डॉ०राजेन्द्र प्रसाद, पं०मदनमोहन मालवीय, जे०बी०कृपलानी, पृथ्वीराज कपूर आदि मानवता के महान विभूतियों का गुरुकुल में आगमन होता रहा है। पं०हरिनारायण शर्मा द्वारा प्रभावशाली व्यक्तित्व नेतृत्व प्रशिक्षण कोर्स हेतु सदाकत आश्रम पटना तथा आर्यसमाज मंदिर पटना- रांची में गुरुकुल की शाखा चलाई जाती थी। पं०हरिनारायण शर्मा एवं उनके सहयोगी मित्र लालालाजपत राय के सक्रिय सहयोग से उनके मित्र स्वामी श्रद्धानंद द्वारा 1902 में गुरुकुल कांगड़ी विव्श्वविद्यालय की स्थापना हुई, तदनंतर सन 1909 ई० में हिन्दू महासभा की स्थापना हुई। सन 1916 ई० में वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल में स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्रारम्भ की गयी। यहीं से सन 1916 ई० में पं०हरिनारायण शर्मा द्वारा मासिक पत्रिका ‘दिव्य रश्मि’ एवं ‘शाकद्वीपीय ब्राह्मण बंधू’ तथा सुप्रसिद्ध अखबार “आर्यावर्त” का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया और “दिव्य आयुर्वेद” नाम से आयुर्वेदिक औषधि का उत्पादन प्रारम्भ किया गया। सम्पूर्ण बुद्धिजीवी वर्ण की एकता हेतु “ऑल इंडिया ब्राह्मण एसोसियेशन” का गठन किया गया। उनके द्वारा 1916 ई० में पुनपुन में तथा मुस्तफापुर में अपने पैतृक आवास के सामने 6000 वर्गफीट में दोमंजिला पक्का भवन बनाकर उसमें आयुर्वेदिक चिकित्सालय एवं आयुर्वेद शिक्षाकेन्द्र शुरू किया गया। पं०हरिनारायण शर्मा के सक्रिय सहयोग से उनके सहयोगी पं०मदनमोहन मालवीय द्वारा 1916 ई० में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी। 1926 में “गुरुकुल महाविद्यालय बैद्यनाथधाम” की स्थापना कर उसमें ‘वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल’ का उच्चतर शिक्षा विभाग स्थानांतरित कर दिया गया।

पं०हरिनारायण शर्मा तथा उनके मित्र लालालाजपत राय, गुरुदत्त विद्यार्थी, स्वामी श्रद्धानंद आदि मिलकर 1886 ई० में लाहौर में प्रथम डी०ए०वी०स्कूल, डी०ए०वी०कॉलेज स्थापित किये। सन 1901 ई० में वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल की स्थापना के बाद देश भर में विभिन्न स्थानों पर डी०ए०वी०स्कूल, डी०ए०वी०कॉलेज तथा अनाथाश्रम, विधवाश्रम एवं गुरुकुल स्थापित करने का सिलसिला प्रारम्भ किया गया। 1915 ई०में पं०हरिनारायण शर्मा द्वारा 4000 मुसलमान एवं ईसाई लोगों को आर्यसमाज में शामिल करके एक नया विश्व इतिहास रच दिया गया। हिन्दू समाज में व्याप्त छुआछूत एवं जातिवाद की गंदी राजनीति का उन्होंने प्रबल विरोध किया तथा विधवा विवाह प्रथा को प्रोत्साहित किया। धर्मांतरण एवं समाज सुधार आंदोलन के विरोध की समाप्ति हेतु वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल में 1916 ई० में विश्वधर्मसभा (वर्ल्ड रेलीजीयस समिट) का आयोजन किया गया। 1938 ई० में उन्होंने हैदराबाद निजाम के विरुद्ध कॉंग्रेस जत्था का नतृत्व किया। सन 1929 ई० साइमन कमीशन के विरुद्ध आंदोलन में अंग्रेज पुलिस पदाधिकारी सौन्डर्स द्वारा लाहौर में किये गए लाठीचार्ज के कारण लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने हेतु चंद्रशेखर आजाद द्वारा वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल में क्रांतिकारियों की बैठक कर सौन्डर्स को मारने का निर्णय लिया गया और सौन्डर्स को मारकर लालालाजपत राय की मौत का बदला लिया गया। पं०हरिनारायण शर्मा के अन्यत्र व्यस्तता के कारण दरभंगा महाराजा सर कामेश्वर सिंह द्वारा 1941 में आर्यावर्त का पुनःप्रकाशन प्रारम्भ किया गया।

पं० हरिनारायण शर्मा के पुत्र पं० वेद व्रत शर्मा सुप्रसिद्ध वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल के प्राचार्य, सुप्रसिद्ध शिक्षाविद, इतिहासकार, पत्रकार तथा अनेक शिक्षण संस्थानों के संस्थापक होने के साथ साथ अंगरेजी साहित्य के विश्व प्रसिद्द विद्वान रहे हैं। पं० वेद व्रत शर्मा जी के छोटे भाई पं० सत्य व्रत शर्मा 'सुजन'(पूर्व निदेशक, राजभाषा विभाग, बिहार सरकार) संस्कृत और हिन्दी साहित्य के राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान रहे हैं। पं० वेद व्रत शर्मा जी के सबसे छोटे भाई पं० प्रिय व्रत शर्मा जी पूर्व प्राचार्य, पटना आयुर्वेदिक महाविद्यालय, पटना एवं पूर्व निदेशक, स्नातकोत्तर आयुर्वेद संस्थान, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (Director, Post Graduate Institute of Indian Medicine, Banaras Hindu University, Varanasi) विश्वप्रसिद्ध आयुर्वेद विशेषज्ञ एवं ऋषि परम्परा के महान संत थे।आयुर्वेद के विश्वव्यापी प्रचार प्रसार, कालजयी रचना और हिन्दी अंगरेजी संस्कृत भाषा में पं० श्रेष्ठ चंद मिश्र, पं० प्रभुनाथ मिश्र, पं० रामावतार मिश्र उर्फ पं० रामावतार शर्मा, पं० हरिनारायण मिश्र उर्फ पं० हरिनारायण शर्मा जैसे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त महान आयुर्वेद विशेषज्ञों की वंश परम्परा से अर्जित सम्पूर्ण ज्ञान और अनुभव को आचार्य प्रिय व्रत शर्मा जी ने विश्व पटल पर स्थापित किया।

पं० हरिनारायण शर्मा के भतीजा आचार्य प्रिय व्रत शर्मा जी विश्व प्रसिद्द ऐतिहासिक गुरुकुल 'वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल, मुस्तफापुर, खगौल, जिला- पटना' के अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे और उन्होंने गुरुकुल की उच्च परंपरा और ऊँचे आदर्शों का जीवन पर्यंत निर्वाह किया। वह ऋषि परम्परा के महान संत थे। उनका संप[उरन जीवन, चरित्र, आचरण, व्यवहार और विश्व प्रसिद्द उपलब्धिया सभी समुदाय के सभी लोगों के लिए एक आदर्श प्रेरणा का स्रोत है।अनेकों विश्वप्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक अनुवादक महान आयुर्वेद विशेषज्ञ के रूप में वह प्रसिद्द रहे हैं। इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इन्होने हजारों वर्षों से आयुर्वेद की वंश परम्परा द्वारा अर्जित सम्पूर्ण ज्ञान और अनुभव को वर्तमान समय की प्रचलित भाषा अंगरेजी हिन्दी और संस्कृत भाषा में सम्पूर्ण विश्व के कल्याणार्थ पुस्तक रूप में लिखकर प्रकाशित करवा दिया है। आचार्य प्रिय व्रत शर्मा जी द्वारा लिखित एवं अंगरेजी-हिन्दी-संस्कृत भाषा में अनुवादित विश्वप्रसिद्ध पुस्तकों के नाम हैं :-

  • Essentials of Ayurveda
  • Medicinal Use of Fruits and Vegetables in Ancient India.
  • Research Methods In Ayurveda.
  • Indian Medicine in the Classical Age.
  • Charak Samhita (Sanskrit and English)
  • Sushrut Samhita (Sanskrit and English)
  • History of Medicine in India from Antiquity to 1000 AD.
  • द्रव्यगुण विज्ञान
  • माधव द्रव्यगुण
  • आयुर्वेद अनुसंधान पद्धति

पं० हरिनारायण शर्मा के प्रपौत्र कृष्ण बल्लभ शर्मा 'योगीराज' द्वारा भी अपने परिवार की उच्च परम्परा का निर्वाह करने का यथासंभव प्रयास किया जाता रहा है। सन 1991 से वह पटना उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्यरत हैं और साथ ही झारखण्ड उच्च न्यायालय, रांची, उड़ीसा उच्च न्यायालय, कटक, कलकत्ता उच्च न्यायालय, कोलकाता, दिल्ली उच्च न्यायालय, नई दिल्ली, एवं सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली में कोर्ट केस की ड्राफ्टिंग बहस का कार्य करने और वकालत के पेशा की व्यस्तता के बावजूद पारिवारिक सामाजिक जिम्मेवारियों का निर्वहन करते हुए सबके लिए आदर्श प्रेरणास्रोत के रूप में आदर्श जीवन जीने का प्रयास करता रहे हैं। राष्ट्रीय नव निर्माण परिषद और कृष्णा फाउन्डेशन तथा धर्म समाज के संस्थापक अध्यक्ष की जिम्मेवारी निभाते हुए सम्पूर्ण विश्व के कल्याणार्थ अंगरेजी एवं हिन्दी भाषा में हम स्वयं भी कई सुप्रसिद्ध पुस्तकों का उन्होंने लेखन प्रकाशन किया है। कृष्ण बल्लभ शर्मा 'योगीराज' द्वारा लिखित एवं कृष्णा फाउन्डेशन द्वारा प्रकाशित पुस्त्यकों के नाम हैं :-

  • Basic Principles of Dharma Justice and Democracy
  • Science of Dharma Law and Justice
  • Vedic Civilization : Mother of All Civilizations
  • इतिहास रचयिता
  • धर्मवाद
  • धर्मन्यायविधिविज्ञान

नाड़ीविज्ञान एवं आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ पं०श्रेष्ठ चन्द्र मिश्र, पं० रामावतार शर्मा वैद्य, पं० हरिनारायण शर्मा, पं० प्रिय व्रत शर्मा, पं०नंदकिशोर मिश्र, पं०लाल बिहारी मिश्र आदि ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खगौल का नाम रौशन किया है। गुरुकुल शिक्षा प्रोत्साहन, स्वतंत्रता आंदोलन, समाज सुधार आंदोलन, स्वतंत्रतापूर्व राजनीति क्षेत्र में पं०हरिनारायण शर्मा का योगदान उल्लेखनीय है। अंगरेजी पत्रकारिता साहित्य एवं शिक्षा में पं०वेदव्रत शर्मा अग्रणी हैं। संस्कृत हिन्दी साहित्य में पं०सत्यव्रत शर्मा ‘सूजन’, डॉ०मेधा व्रत शर्मा, पं०ब्रज बल्लभ शर्मा ‘ब्रजराज’, केदारनाथ मिश्र ‘सोम’, पं०केशव मिश्र ‘आचार्य काका’, डॉ०प्रमुद रंजन मिश्र ‘प्रमुद’ प्रमुख हैं। पटना उच्चन्यायालय के अधिवक्ता कृष्ण बल्लभ शर्मा ‘योगीराज’ माननीय न्यायमूर्ति हरिलाल अग्रवाल, अली इमाम (अधिवक्ता) आदि का न्यायपालिका में उल्लेखनीय योगदान है। कुश्ती में विष्णुदयाल यादव, रामपल्लख सिंह प्रमुख है। फुटबॉल के खेल में मेवालाल, अवधेश कुमार सिन्हा, ब्रजेश प्रसाद, नरेशचंद्र प्रसाद, धर्मेन्द्र मिश्र प्रमुख हैं। रंगमंच, फिल्म, संगीत, टेलीविजन कार्यक्रम में वासुदेव विश्वकर्मा, श्याम सागर शर्मा, राजेन्द्र प्रसाद वर्मा ‘तरुण’, अम्बिका प्रसाद सिन्हा, सरूरअली अंसारी, जयप्रकाश मिश्र, अनिरुद्ध पाठक, मिथिलेशकुमार पांडे, उदय कुमार, ज्ञानी प्रसाद, नवाब आलम, शोएब कुरेशी, रामनाथ प्रसाद, सज्ज़ाद आलम, मनोजकुमार सिन्हा प्रमुख है। शिक्षा के क्षेत्र में कृष्णमुरारि शर्मा, प्रमोद कुमार त्रिपाठी, आर०एन० सहाय, प्रदीप कुमार मिश्र का योगदान उल्लेखनीय है।समाज सेवा के क्षेत्र में कृष्ण बल्लभ शर्मा ‘योगीराज’, डॉ०बिमलेश कुमार, आशुतोष कुमार श्रीवास्तव, नज़रुल हसन चिश्ती, भरत कुमार पोद्दार, नवीन कुमार सैनिक, अशोक कुमार नागवंशी प्रमुख हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
  2. "Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810
  3. "अंतरिक्ष विज्ञान में भारत के योगदान को समर्पित है बिहार की यह जगह". मूल से 28 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जुलाई 2017.