वैदिक छंद वेदों के मंत्रों में प्रयुक्त कवित्त मापों को कहा जाता है। श्लोकों में मात्राओं की संख्या और उनके लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों के समूहों को छंद कहते हैं - वेदों में कम से कम १५ प्रकार के छंद प्रयुक्त हुए हैं। गायत्री छंद इनमें सबसे प्रसिद्ध है जिसके नाम ही एक मंत्र का नाम गायत्री मंत्र पड़ा है। इसके अलावे अनुष्टुप, त्रिष्टुप इत्यादि छंद हुए हैं।

पिंगल द्वारा रचित छंदशास्त्र वैदिक छंदों की सबसे मान्य विवेचना है।

इनके विवरण इस सूची में दिए गए हैं-

छंद नाम
मात्राओं की संख्या विन्यास उदाहरण - टीका
६८ १२+१२+८+८+८+१२+८ ऋग्वेद ९.१११.३
५२ ११ + १० + १० + १० + ११ ऋग्वेद ५.८७.१
६० १६ +१६ + १२ +८ ८ ६.१५.६
३२ ८ +८ +८ +८ ३.५३.१२
६४ १६ +१६+ १६+ ८+ ८ ४.१.१, २.२२.१
२८ ८+ ८+ १२ ३.१०.३
१० १० १०.२०.१, इसको दशाक्षरा भी कहते हैं क्योंकि एक ही पङक्ति में १० अक्षर होते हैं।
२४ ८+ ८+ ८ ३.११.४, प्रसिद्ध गायत्री मंत्र
४८ १२+१२+१२+१२ ९.६८.१
४४ ११ +११+ ११+ ११ १०.१.३
२० १२ ८ १० १०
७२ १२+१२+ ८+ ८+ ८+ १६+ ८ ४.१.३
४० ८+ ८+ ८+ ८+ ८ ५.६.२
७२ ८+ ८+ ८+ १२+ १२+ १२+ १२ ३.१६.३
४० १२+ १२+ ८+ ८ ६.९.७५
३६ ८+ ८+ १२+ ८ ३.९.१
४४ ८+ ८+ ८+ ८+ १२ ६.४८.२१
४० १०+ १० +१०+ १० ६.२०.७
५६ ८ +८+ ८+ ८+ ८+ ८+ ८ ५.२७.५

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