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15 मई 2020

28 अप्रैल 2020

22 अप्रैल 2020

  • 07:2107:21, 22 अप्रैल 2020 अन्तर इतिहास −61 सतलोकअध्याय 18 का श्लोक 58 मच्चित्तः, सर्वदुर्गाणि, मत्प्रसादात्, तरिष्यसि, अथ, चेत्, त्वम्, अहंकारात्, न, श्रोष्यसि, विनङ्क्ष्यसि।।58।। अनुवाद: (मच्चितः) मेरे में चितवाला होकर (त्वम्) तू (मत्प्रसादात्) मेरे द्वारा बताई शास्त्रानुकूल विचार धारा की कृप्यासे (सर्वदुर्गाणि) समस्त संकटोंको अनायास ही (तरिष्यसि) पार कर जाएगा (अथ) और (चेत्) यदि (अहंकारात्) अहंकारके कारण मेरे वचनोंको (न) न (श्रोष्यसि) सुनेगा तो (विनङ्क्ष्यसि) नष्ट हो जायगा अर्थात् योग भ्रष्ट हो गया तो नष्ट हो जाएगा। यही प्रमाण अध्याय 6 श... टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 07:1807:18, 22 अप्रैल 2020 अन्तर इतिहास −2 गरीब दास→‎गरीब दास जी की अमृतवाणी टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 07:1607:16, 22 अप्रैल 2020 अन्तर इतिहास −91 अकृतक त्रैलोक्य→‎सत्यलोक: सतलोक को अपडेट किया गया । टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन

20 मार्च 2020

30 मई 2019

15 मार्च 2019