"वट सावित्री": अवतरणों में अंतर

सनातन धर्म में सिद्धि साधनों के लिए वृक्षों के चयन का तार्किक वैज्ञानिक आधार है। इसे इस लेख में सीमित शब्दों में समेटने का प्रयास किया है।
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== दर्शनिक दृष्टि ==
दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।
 
दार्शनिक, वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से वृक्षों के गुणधर्म पृथक पृथक होते हैं। वे कटु, तिक्त, कसाय, मधुर, मदिर, विषाक्त, विषहर, इत्यादि अनेक प्रकार के विविध गुणों से युक्त होते हैं।जो जिसका गुण है वही उसका धर्म। नीम का गुण कटुता है , तो वही उसका धर्म भी हुआ। नीम मधुर नहीं हो सकती है यदि ऐसा हुआ तो गुणधर्म बदल गए समझें फिर नीम , नीम नहीं रही कुछ और हो गई समझें। किसी जीवित वृक्ष का चेतना मंडल, प्रभा मंडल, आभा मंडल, गंध और नाद आवृति और प्रवृत्ति विशिष्ट होती है। उस वृक्ष की संगत करने से उसके गुण विकार अन्य जीवों के गुण विकारों से सायुज्य करते हैं । जैसे नीम चढा करेला। यदि जीव मनुष्य हो तो उसके मानस पर वृक्षों के संयोग से गुण विकार विकसित हो सकते हैं। इस प्रकार विविध योग बनते हैं। ये योग साधनों पर निर्भर करते हैं। ये साधन मुख्यतः रूप है। रूप गुणधर्म के अनुसार विविध देहों में प्रकट होते हैं। देह और चेतना रूप के लक्षण हैं। अतः देह और चेतन एक दूसरे के पूरक हैं। चेतना के ह्रास से देह नष्ट होने लगती है और देह के नष्ट होने से चेतना का ह्रास आकाश में होने लगता है। जो जिसका लक्षण है वही उसका लिंग है। अतः देह रूप का लिंग है। ये समस्त लिंग लक्षण साधन हो जाते हैं उस योग के जो अन्य देह रूपों से संयोग कर सायुज्य हो रहा हो। इस योग साधना को त्रिगुणात्मक सृष्टि के अनुरूप विविध देहों के संयोग से विविध प्रकार से किये जाने का प्रावधान है। यदि देह रूप वृक्षों के हैं तो योग साधना के प्रकारों के अवलोकनों का स्पष्ट विवरण मिलता है। यह रज, तम, और सत्व गुणी सृष्टि के विविध देहों के साधन सयोग साधनाओं का उलझा हुआ जाल ( नेटवर्क) होता है। ये जंजाल सरलतम रूपों में अपने चरम गुणों में झलकता है। इस प्रकार के वैज्ञानिक और दार्शनिक अवलोकन के आधार पर साधकों ने साधना करने हेतु चार संकल्प विभक्त किये हैं। ये हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष। इस प्रकार वे वृक्ष जो इन संकल्पनाओं की पुष्टि करते हों उन्हें पृथकता से पहचाना गया है। जैसे आम का वृक्ष धर्म का, आंवले का वृक्ष अर्थ के लिए, वटवृक्ष कामनाओं की सिद्धियों के लिए,तथा अश्वथ (पीपल) का वृक्ष मुमुक्षुओं के लिए मुक्ति के लिए साधनाओं के लिए उपयुक्त पाए गए हैं। फिर और भी प्रकार के वर्गीकरण जैसे कथा और वार्ता हेतु( धर्म चर्चा) आम का वृक्ष उपयुक्त है । आंवले का वृक्ष आंवला नवमी को धन संपत्ति की समृद्धि के लिए आंवला नवमी के व्रत से पूजा करते हैं। वट वृक्ष अक्षयता के हेतु हैं । अक्षयता अमरत्व का ही नहीं स्वार्गिक भोगों की कामनाओं का भी मानक है। उदाहरण के लिए अमृत भोग, कामधेनु, कल्प वृक्ष, अप्सरा प्रसंग, देव कृपा, इंद्र अनुकूलता, एरावत ऐश्वर्य, ये दार्शनिक मानक ( स्टेण्डर्ड आफ लिविंग) हैं। जीवन संयोग और संभाविता का रहस्य है। मृत्यु की अवधि की अवधारणा जीवन काल में किये गए कर्म के रिजल्ट के अनुसार होती है। ये एक दर्शन है। इन कर्मफलों का संचय संस्कार के रूप में अक्षयता से होता है। इस प्रकार नव जन्म के लिए मृत्य काल पूरा होने के बाद संचित संस्कार के अनुसार वर्तमान संस्कृति में नवजात की जीवात्मा का चयन आयु, विवाह, यश, अपयश, विधि के विधान से होता है। सावित्री की कथा में एक विनय ( हठ योग) है। वह धर्म और आयु के हेतु अपने अर्धांग के लिए मृत्यपरांत कामना का हठ करतीं हैं। तथा संयम व साधना के तप से वटवृक्ष की अक्षयता को सिद्धांत से सिद्धिदात्री का वर प्राप्त करतीं हैं। उसी तरह जैसे बुद्ध पीपल की सिद्धि से मुक्तिदाता का वर प्राप्त करते हैं।
 
 
 
 
 
 
== कथा ==