"सर्वानुक्रमणी": अवतरणों में अंतर

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कात्यायनप्रणीत शुक्लयजुर्वेदीय सर्वानुक्रमणी में केवल पाँच ही अध्याय हैं। पहले चार अध्यायों में याजुष मंत्रों के द्रष्टा ऋषियों, देवताओं और छंदों की नामत: गणना है। इसकी एक और विशेषता यह है कि संहिताकाल से उत्तरवर्ती युग के नए ऋषियों के भी नाम संगृहीत हैं जिनमें कतिपय शतपथ ब्राह्मण से संबंध रखनेवाले भी हैं। इसके अंतिम अध्याय में वाजसनेयि संहिता के मंत्रों का संक्षिप्त विवरण भी दिया है। शुक्लयजुर्वेदीय सर्वानुक्रमणी का प्रकाशन वेबर द्वारा संपादित यजुर्वेद के संस्करण में परिशिष्ट रूप से संगृहीत है, तथा स्वतंत्र रूप से यह ग्रंथ सभाष्य बनारस संस्कृत सीरीज़ के अंतर्गत ईसवी सन् 1893-94 में सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ मिलता है। ग्रंथ का नाम "कात्यायनप्रणीत शुक्ल यजु: सर्वानुक्रमसूत्र-याज्ञिकानंतदेव कृत भाष्य सहित" दिया है।
 
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]