"कुरील द्वीपसमूह": अवतरणों में अंतर

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कुरील के द्वीपों पर सब से पहले वासी [[आइनू लोग]] थे। जापान ने अपने इतिहास के एदो काल में (जो सन् 1603 में शुरू हुआ) इन द्वीपों को अपना हिस्सा घोषित कर दिया। जापानी नियंत्रण दक्षिणी द्वीपों से उत्तर की तरफ़ बढ़ने लगा। उधर रूसी भी फैलकर [[साइबेरिया]] और कमचातका को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना चुके थे और इन द्वीपों में उत्तर से दक्षिण की ओर फैलने लगे। 18वी सदी तक इतुरूप द्वीप तक रूसी बस्तियाँ बन चुकी थीं। उस से दक्षिण के द्वीपों में जापानी पहरेदार तैनात थे। सन् 1811 में वासिली गोलोवनिन (Василий Головнин) नामक रूसी नाविक कप्तान अपने दस्ते के साथ कुनाशीर द्वीप पर रुके तो उन्हें जापानी सैनिकों ने गिरफ़्तार कर लिया। सन् 1812 में रूसी सैनिकों ने ताकादाया काहेई (高田屋嘉兵衛) नामक जापानी व्यापारी को कुनाशीर पर ही गिरफ़्तार किया।
 
इन झड़पों को देखकर जापान और रूस की सरकारों ने बातचीत के बाद 1855 में एक संधि करी जिसके अनुसार इतुरूप और उस से दक्षिण के द्वीप जापान के हो गए और उरुप और उस से उत्तर के द्वीप रूस के हो गए। इस समझौते के अनुसार [[साख़ालिन]] द्वीप पर दोनों देशों के लोगों को रहने का अधिकार दिया गया। फिर 1875 में हुई सेंट पीटर्सबर्ग संधि के अनुसार जापान ने पूरा साख़ालिन द्वीप रूस को दे दिया लेकिन बदले में सारे कुरील द्वीप जापान को दे दिए गए। 1918-1925 में हुई झड़पों में जापानी फ़ौजे (अमेरिकी और यूरोपीय दस्तों के साथ मिलकर) उत्तरी कुरील द्वीपों से कामचातका प्रायद्वीप पर पहुँच गई और उसके दक्षिणी भाग पर क़ब्ज़ा कर लिया। [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के अंतिम दिनों में जब जापान का पलड़ा हल्का पदपड़ रहा था, [[सोवियत संघ]] ने पूरे साख़ालिन और सारे कुरील द्वीपों पर धावा बोलकर अपना नियंत्रण जमा लिया। तब से सारे कुरील द्वीप रूस के क़ब्ज़े में हैं।
 
जापान अभी भी कुरील के चार सब से दक्षिणी द्वीपों को अपना क्षेत्र बताता है। यहये चार कुनाशीर, इतुरूप, शिकोतान और हबोमाए हैं। इनमें से हबोमाए वास्तव में केवल चट्टानों का एक समूह है। रूस जापान की इन मांगों को ग़लत बताता है और इन द्वीपों को अपना हिस्सा बताता है।
 
==इन्हें भी देखें==