"अश्विनी": अवतरणों में अंतर

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'''अश्विनी नक्षत्र''' [[ज्योतिष शास्त्र]] में वर्णित 27 नक्षत्रों में यह पहला [[नक्षत्र]] है। इसकी आकृति अश्वमुख जैसी है, अत: इसका नाम अश्विनी है। तारागण के गुच्छे को नक्षत्र कहते हैं। इस नक्षत्र में तीन तारागण प्रकाशित होते हैं। अश्विनी नक्षत्र के स्वामी तथा देवता अश्विनीकुमार हैं। ज्योतिष में इसकी गणना शुभ नक्षत्रों में की जाती है ''अश्विनी तु शुभा प्रोक्ता।'
यह एक [[नक्षत्र]] है।
 
इसकी संज्ञा तिर्यङमुख है, अत: इसमें तिर्यङमुखवाले कार्य शुभफलद होते हैं। घोड़ा, हाथी, भैंस, गदहा, बैल, कुत्ता आदि वस्तुओं का क्रय इस नक्षत्र में निहित है। इसके अतिरिक्त नौका का जलावतरण, हल चलाना आदि कार्य भी अश्विनी नक्षत्र में किए जा सकते हैं। अश्विनी नक्षत्र लघु एवं क्षिप्र संज्ञक भी है अत: इसमें दुकान करना, अलंकारधारण, औषधग्रहरण, र्क्रीड़ा, शिल्पज्ञान, शिक्षा तथा यात्रा शुभ है। मोती, सुवर्ण, मणि, मूँगा, गजदंत, शंख, रक्तवस्त्र भी धारण योग्य होते हैं।
 
==परिचय==
ज्योतिषशास्त्र में अश्विनी नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्रों के अन्तर्गत रखा गया है । इस नक्षत्र का स्वामी केतु होता है । इस नक्षत्र में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति बहुत ही उर्जावान होते हैं। ये सदैव सक्रिय रहना पसंद करते हैं इन्हें खाली बैठना अच्छा नहीं लगता, ये हमेशा कुछ न कुछ करते रहना पसंद करते हैं। इस नक्षत्र के जातक उच्च महत्वाकांक्षा से भरे होते हैं, छोटे-मोटे काम से ये संतुष्ट नहीं होते, इन्हें बड़े और महत्वपूर्ण काम करने में मज़ा आता है।