"अवलोकितेश्वर": अवतरणों में अंतर

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[[भगवान्‌ बुद्ध]] ने बराबर अपने को मानव के रूप में प्रकट किया और लोगों को प्रेरित किया कि वे उन्हीं के मार्ग का अनुसरण करें। किंतु उसपर भी ब्राह्मणधर्म की छाप पड़े बिना नहीं रही। बोधिसत्व अवलोकितेश्वर की कल्पना उसी का परिणाम है। ब्रह्म के समान ही अवलोकितेश्वर के विषय में लिखा है : 'अवलोकितेश्वर की आँखों से सूरज और चाँद, भ्रू से महेश्वर, स्कंधों से देवगण, हृदय से नारायण, दाँतों से सरस्वती, मुख से वायु, पैरों से पृथ्वी तथा उदर से वरुण उत्पन्न हुए।' अवलोकितेश्वरों में महत्वपूर्ण सिंहनाद की उत्तर मध्यकालीन (ल. ११वीं सदी) असाधारण सुंदर प्रस्तरमूर्ति लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित है।<ref name="ref15zipaj">[http://books.google.com/books?id=9ewq361g4B0C Ultimate Healing: The Power of Compassion], Lama Zopa Rinpoche, Ailsa Cameron, Wisdom Publications, 2001, ISBN 9780861711956, ''... The original practice contained the mantras of Sitatapatra (White Umbrella Deity) and Singhanada (Lion's Roar Avalokiteshvara) ...''</ref> अवलोकितेश्वर को अक्सर एक कमल का फूल पकड़े हुए दर्शाया जाता है और कथाओं में उनकी 'कमल-प्रकृति' का अक्सर वर्णन मिलता है जो किसी भी वातावरण में प्राणियों को सौंदर्य, सुगंध और उद्धार की ओर ले जाती है।<ref name="ref17rogib">[http://books.google.com/books?id=5VlulOGhZ3EC The origins of Oṃ maṇipadme hūṃ: a study of the Kāraṇḍavyūha sūtra], Alexander Studholme, SUNY Press, 2002, ISBN 9780791453896, ''... The symbol of the lotus continues to appear throughout the Kararidavyuha Sutra. Avalokitesvara himself is repeatedly described in terms of his 'lotus' qualities ...''</ref>
 
==इन्हें भी देखें==
*[[महायान]]
*[[बौद्ध धर्म]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==