"किशोरीदास वाजपेयी": अवतरणों में अंतर

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बाजपेयी जी ने न केवल संस्कृत हिन्दी के [[व्याकरण]] क्षेत्र को विभूषित किया अपितु [[आलोचना]] क्षेत्र को भी बहुत सुन्दर ढंग से संवारा । आपने साहित्य समीक्षा के शास्त्रीय सिद्धातों का प्रतिपादन कर नये मानदण्ड स्थापित किये । साहित्याचार्य [[शालिग्रम शास्त्री]] जी की ''[[साहित्य दर्पण]]'' में छपी "विमला टीका' पर बाजपेयी जी ने माधुरी में एक समीक्षात्मक लेख माला लिख डाली । इस लेख का सभी ने स्वागत किया और वे आलोचना जगत में चमक उठे । इसके बाद "[[माधुरी]]" में प्रकाशित "बिहारी सतसई और उसके टीकाकार" लेख माला के प्रकाशित होते ही वे हिन्दी साहित्य के आलोचकों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए ।
 
बाजपेयी जी न केवल साहित्यिक अपितु सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन में भी आजीवन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे । योग्यता तो थी ही, उनकी निर्भीकता, स्पष्टवादिता और स्वाभिमान उनके जीवन काके अभिअभिन्न अंग रहे । अपनी निर्भीकता के कारण वे "अक्खड कबीर" और स्वाभिमान के कारण "अभिमान मेरु" कहाये जाने लगे । बडे से बडे प्रलोभन उनके जीवन मूल्यों और सिद्धांतों को डिगा न सके । लोक मर्यादाओं का पूर्ण रूपेण पालन करते हुए दुरभिसंधियों पर जम कर प्रहार किया । साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि, "मैं हूँ, कबीर पंथी" साहित्यकार , किसी की चाकरी मंजूर नहीं, अध्यापकी कर लूंगा, नौकरी कर लूंगा पर आत्मसम्मान की कीमत पर नहीं ।''
 
बाजपेयी जी ने स्वाधीनता संग्रम को भी अछूता नहीं छोडा । एक परम योद्धा बन कर जन साधारण में राष्टीय चेतना और देशप्रेम के प्राण फूंके । आपका पहला लेख "वैष्णव सर्वस्व" में छपा, जिससें साहित्य जगत को इनकी लेखन कला का परिचय मिला ।