"संख्या पद्धतियाँ": अवतरणों में अंतर

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संख्याओं को लिखने एवं उनके नामकरण के सुव्यवस्थित नियमों को '''संख्या पद्धति''' (Number system) कहते हैं। इसके लिये निर्धारित प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है जिनकी संख्या निश्चित एवं सीमित होती है। इन प्रतीकों को विविध प्रकार से व्यस्थित करके भिन्न-भिन्न संख्याएँ निरूपित की जाती हैं।
 
[[दशमलव पद्धति]], [[द्वयाधारी संख्या पद्धति]], [[अष्टाधारी संख्या पद्धति]] तथा [[षोडषाधारी संख्या पद्धि]] आदि कुछ प्रमुख प्रचलित संख्या पद्धतियाँ हैं।
 
==स्थानीय मान पर आधारित संख्या पद्धति==
स्थानीय मान पर आधारित संख्या पद्धति में 2 या अधिक प्रतीक उपयोग में लाये जाते हैं। जितने प्रतीक होते हैं वही उस संख्या पद्धति का आधार (base) कहलाता है। इन प्रतीकों का मान शून्य से लेकर '''b-1''' तक होता है जहाँ '''b''' आधार है।
 
नीचे दो संख्याओं का उदाहरण दिया गया है, जो क्रमशः दशमलव पद्धति तथा बाइनरी पद्धति में है-
:<math>2003_{10}=2\times 10^3+0\times 10^2+0\times 10^1+3\times 10^0</math>
 
:<math>1100_{2}=1\times 2^3+1\times 2^2+0\times 2^1+0\times 2^0=8+4=12_{10}</math>
 
==परिचय==
'''संख्या पद्धतियाँ''' (Numeral system) हरेक भाषा में कुछ न कुछ अंक अवश्य होते हैं। इकाई की संकल्पना से "एक" की और अनेकता की संकल्पना से "दो" की रचना हुए बिना नहीं रहती। अव्यवस्थित संख्यालेखन कदाचित् ही किसी भाषा में होगा। ऑस्ट्रेलिया की भाषाओं, यूइन - कुरी आदि, तथा वहाँ की मध्य दक्षिणी भाषाओं में ऐसी अव्यवस्था है। अंडमन द्वीपों और मलक्का के वासियों ने एक और दो के किले अंक तो बनाए हैं, लेकिन जोड़ते वे एक-एक करके ही हैं। ऐसी ही बात दक्षिण अमरीका की शिकीटो के बारे में है। व्यवस्थित पद्धतियों के संक्षिप्त विवरण ये हैं :
 
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'''शुद्ध दशमक पद्धति''' में पंचक का प्रयोग नहीं होता। इसकी उत्पत्ति यायावर (खानाबदोश) वर्गों में हुई, जिन्हें गाय, घोड़े, ऊँट, भेड़ के झुंडों को गिनने होते थे। तब से फैलते फैलते अब यह पद्धति विश्वव्यापी हो गई हैं। केवल मेक्सिकी और मध्य अमरीका में, अब भी ज्योतिष में प्रयुक्त होने के कारण, विंशति पद्धति सुरक्षित है।
 
==संख्या पद्धति का क्रमिक विकास (evolution)==
 
==इन्हें भी देखें==