"अनुष्टुप छंद": अवतरणों में अंतर

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'''अनुष्टुप छन्द''' [[संस्कृत]] काव्य में सर्वाधिक प्रयुक्त [[छन्द]] है। [[वैदिक काल]] से ही इसका प्रयोग मिलता है। प्राचीन काल से ही सभी ने इसे बहुत आसानी के साथ प्रयोग किया है।
'''अनुष्टुप छन्द''' में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में आठ अक्षर / वर्ण होते हैं। इस छन्द के प्रत्येक पद / चरण का छठा अक्षर / वर्ण गुरु होता है और पंचमक्षर लघु होता है। प्रथम और तृतीय पाद का सातवाँ अक्षर गुरु होता है तथा दूसरे और चौथे पाद का सप्तमाक्षर लघु होता है। इस प्रकार पादों में सप्तामाक्षर क्रमश: गुरु-लघु होता रहता है - अर्थात् प्रथम पाद में गुरु, द्वित्तिय पाद में लघु, तृतीय पाद में गुरु और चतुर्थ पाद में लघु। [[गीता]] के श्लोक अनुष्टुप छन्द में हैं। आदि कवि [[वाल्मिकी]] द्वारा उच्चारित प्रथम श्लोक भी अनुष्टुप छन्द में है।
 
'''अनुष्टुप छन्द''' में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में आठ अक्षर / वर्ण होते हैं। इस छन्द के प्रत्येक पद / चरण का छठा अक्षर / वर्ण गुरु होता है और पंचमक्षर लघु होता है। प्रथम और तृतीय पाद का सातवाँ अक्षर गुरु होता है तथा दूसरे और चौथे पाद का सप्तमाक्षर लघु होता है। इस प्रकार पादों में सप्तामाक्षर क्रमश: गुरु-लघु होता रहता है - अर्थात् प्रथम पाद में गुरु, द्वित्तिय पाद में लघु, तृतीय पाद में गुरु और चतुर्थ पाद में लघु। [[गीता]] के श्लोक अनुष्टुप छन्द में हैं। आदि कवि [[वाल्मिकी]] द्वारा उच्चारित प्रथम श्लोक भी अनुष्टुप छन्द में है।
 
इसी को श्लोक के रूप में इस प्रकार कहते हैं -
 
:षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्। <br>
:द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥
 
[[श्रेणी:व्याकरण]]