"चंपू": अवतरणों में अंतर

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'''चंपू''', [[संस्कृत]] काव्य का एक विशिष्ट प्रकार है। [[गद्य]] तथा पद्य मिश्रित काव्य को "चंपू" कहते हैं। इस मिश्रण का उचित विभाजन यह प्रतीत होता है कि भावात्मक विषयों का वर्णन पद्य के द्वारा तथा वर्णनात्मक विषयों का विवरण गद्य के द्वारा प्रस्तुत किया जाय। परंतु चंपूरचयिताओं ने इस मनोवैज्ञानिक वैशिष्ट्य पर विशेष ध्यान न देकर दोनों के संमिश्रण में अपनी स्वतंत्र इच्छा तथा वैयक्तिक अभिरुचि को ही महत्व दिया है। चम्पूकाव्य परंपरा का प्रारम्भ हमें [[अथर्व वेद]] से प्राप्त होता है।
 
[[श्रेणी:हिन्दी साहित्य]]
 
==परिचय==
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जैन कवियों के समान चैतन्य मतावलंबी वैष्णव कवियों न अपने सिद्धांतों के पसर के लिय इस ललित काव्यमाध्यम को बड़ी सफलता से अपनाया। भगवान् श्रीकृष्ण की ललाम लीलाओं का प्रसंग ऐसा ही सुंदर अवसर है जब इन कवियों ने अपनी अलोकसामान्य प्रतिभा का प्रसाद अपने चंपू काव्यों के द्वारा भक्त पाठकों के सामने प्रस्तुत किया। कवि कर्णपूर (16वीं शती) का आनंदवृंदावन चंपू, तथा जीव गोस्वामी (17वीं शती) का गोपालचंपू सरस काव्य की दृष्टि से नितांत सफल काव्य हैं। इनमें से प्रथम काव्य कृष्ण की बाललीलाओं का विस्तृत तथा विशद वर्णन करता है, द्वितीय काव्य कृष्ण के समग्र चरित का मार्मिक विवरण है। "वीरमित्रोदय" के प्रख्यात रचयिता मित्र मिश्र (17वीं शती का प्रथमार्ध) का "आनंदकंद चंपू" कृष्णपरक चंपुओं में एक रुचिर श्रृंखला जोड़ता है। दक्षिण भारत में भी चंपूकाव्यों की लोकप्रियता कम न थी। नीलकंठ दीक्षित का "नीलकंठविजय चंपू" समुद्रमंथन के विषय में है (रचनाकाल 1631 ई.)। श्री वैष्णव वेंकटाध्वरी (17वीं शती) के "विश्वगुणादर्श चंपू" की रचना अन्य चंपुओं से इस बात में विशिष्ट है कि इसमें भारत के नाना तीर्थो, धर्मो तथा शास्त्रज्ञों में दोषों तथा गुणों का उद्घाटन बड़ी मार्मिकता से एक साथ किया गया है। यह विशेष लोकप्रिय काव्य है। वाणीश्वर विद्यालंकार का "चित्रचंपू" बंगाल के एक विशिष्ट पंडित कवि की रचना है जिसमें भक्ति द्वारा भगवत्प्राप्ति का संकेत रूपकशैली में एक सरस आख्यान के माध्य से किया गया है (18वीं शती)। इस प्रकार संस्कृत साहित्य में भावों के प्रकटन के निमित्त अनेक शताब्दियों तक लोकप्रिय माध्यम होने पर भी उत्तर भारतीय भाषासाहित्य में चंपू काव्य दृढमूल न हो सका। द्राविड़ी भाषा के साहित्य में सामन्यत:, [[केरल|केरली]] तथा [[आंध्र साहित्य]] में विशेषत:, चंपू काव्य आज भी लोकप्रिय है जिसके प्रण्यन की ओर कविजनों का ध्यान पूर्णत: आकृष्ट है।
 
[[श्रेणी:संस्कृत्संस्कृत साहित्य]]
[[श्रेणी:भारतीय साहित्य]]
 
 
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/चंपू" से प्राप्त