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[[भाषाविज्ञान]] में ''''अक्षर'''' या '''शब्दांश''' ([[अंग्रेज़ी]]: syllable सिलाबल) ध्वनियों की संगठित इकाई को कहते हैं। किसी भी शब्द को अंशों में तोड़कर बोला जा सकता है और शब्दांश शब्द के वह अंश होते हैं जिन्हें और ज़्यादा छोटा नहीं बनाया जा सकता वरना शब्द की ध्वनियाँ बदल जाती हैं।
[[चित्र:Hindi-00.png|thumb|400px|हिंदी / देवनागरी के सभी अक्षरो का सूची चित्र]]
 
उदाहरणतः 'अचानक' शब्द के तीन शब्दांश हैं - 'अ', 'चा' और 'नक' । यदि रुक-रुक कर 'अ-चा-नक' बोला जाये तो शब्द के तीनों शब्दांश खंडित रूप से देखे जा सकते हैं लेकिन शब्द का उच्चारण सुनने में सही प्रतीत होता है. अगर 'नक' को आगे तोड़ा जाए तो शब्द की ध्वनियाँ ग़लत हो जातीं हैं - 'अ-चा-न-क'. इस शब्द को 'अ-चान-क' भी नहीं बोला जाता क्योंकि इस से भी उच्चारण ग़लत हो जाता है।
'''अक्षर''' शब्द का अर्थ है - 'जो न घट सके, न नष्ट हो सके'। इसका प्रयोग पहले वाणी या वाक्‌ के लिए एवं शब्दांश के लिए होता था। वर्ण के लिए भी अक्षर का प्रयोग किया जाता रहा। यही कारण है [[लिपि]] संकेतों द्वारा व्यक्त वर्णों के लिए भी आज अक्षर शब्द का प्रयोग सामान्य जन करते हैं। भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन ने अक्षर को अंग्रेजी '[[सिलेबल]]' का अर्थ प्रदान कर दिया है, जिसमें स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं। एक ही आघात या बल में बोली जाने वाली ध्वनि या ध्वनि समुदाय की इकाई को अक्षर कहा जाता है। इकाई की पृथकता का आधार स्वर या स्वररत्‌ (वोक्वॉयड) व्यंजन होता है। व्यंजन ध्वनि किसी उच्चारण में स्वर का पूर्व या पर अंग बनकर ही आती है। अस्तु, अक्षर में स्वर ही मेरुदंड है। अक्षर से स्वर को न तो पृथक्‌ ही किया जा सकता है और न बिना स्वर या स्वररत्‌ व्यंजन के अक्षर का निर्माण ही संभव है। उच्चारण में यदि व्यंजन मोती की तरह है तो स्वर धागे की तरह। यदि स्वर सशक्त सम्राट है तो व्यंजन अशक्त राजा। इसी आधार पर प्राय अक्षर को स्वर का पर्याय मान लिया जाता है, किंतु ऐसा है नहीं, फिर भी अक्षर निर्माण में स्वर का अत्यधिक महत्व होता है। कतिपय भाषाओं में व्यंजन ध्वनियाँ भी अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी भाषा में न, र, ल्‌ जैसी व्यंजन ध्वनियाँ स्वररत्‌ भी उच्चरित होती हैं एवं स्वरध्वनि के समान अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी सिलेबल के लिए हिंदी में अक्षर शब्द का प्रयोग किया जाता है। डॉ. रामविलास शर्मा ने सिलेबल के लिए स्वरिक शब्द का प्रयोग किया जाता है। (भाषा और समाज, पृ. 59)। चूँकि अक्षर शब्द का भाषा और व्याकरण के इतिहास में अनेक अर्थच्छाया के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए सिलेबल के अर्थ में इसके प्रयोग से भ्रमसृजन की आशंका रहती है।
 
कुछ छोटे शब्दों में एक ही शब्दांश होता है, जैसे 'में', 'कान', 'हाथ', 'चल' और 'जा'. कुछ शब्दों में दो शब्दांश होते हैं, जैसे 'चलकर' ('चल-कर'), खाना ('खा-ना'), रुमाल ('रु-माल') और सब्ज़ी ('सब-ज़ी') । कुछ में तीन या उस से भी अधिक शब्दांश होते हैं, जैसे 'महत्वपूर्ण' ('म-हत्व-पूर्ण') और 'अंतर्राष्ट्रीय' ('अंत-अर-राष-ट्रीय')।
शब्द के उच्चारण में जिस ध्वनि पर शिखरता या उच्चता होती है वही अक्षर या सिलेबल होता है, जैसे हाथ में आ ध्वनि पर। इस शब्द में एक अक्षर है। अकल्पित शब्द में तीन अक्षर हैं यथा अ कल्‌ पित्‌; आजादी में तीन यथा आ जा दी; अर्थात्‌ शब्द में जहाँ जहाँ स्वर के उच्चारण की पृथकता पाई जाए वहाँ-वहाँ अक्षर की पृथकता होती है।
 
==परिचय==
'''अक्षर''' शब्द का अर्थ है - 'जो न घट सके, न नष्ट हो सके'। इसका प्रयोग पहले 'वाणी' या 'वाक्‌' के लिए एवं शब्दांश के लिए होता था। 'वर्ण' के लिए भी अक्षर का प्रयोग किया जाता रहा। यही कारण है कि [[लिपि]] संकेतों द्वारा व्यक्त वर्णों के लिए भी आज 'अक्षर' शब्द का प्रयोग सामान्य जन करते हैं। [[भाषाविज्ञान|भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन]] ने अक्षर को अंग्रेजी '[[सिलेबल]]' का अर्थ प्रदान कर दिया है, जिसमें स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं।
 
'''अक्षर''' शब्द का अर्थ है - 'जो न घट सके, न नष्ट हो सके'। इसका प्रयोग पहले वाणी या वाक्‌ के लिए एवं शब्दांश के लिए होता था। वर्ण के लिए भी अक्षर का प्रयोग किया जाता रहा। यही कारण है [[लिपि]] संकेतों द्वारा व्यक्त वर्णों के लिए भी आज अक्षर शब्द का प्रयोग सामान्य जन करते हैं। भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन ने अक्षर को अंग्रेजी '[[सिलेबल]]' का अर्थ प्रदान कर दिया है, जिसमें स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं। एक ही आघात या बल में बोली जाने वाली ध्वनि या ध्वनि समुदाय की इकाई को अक्षर कहा जाता है।'' इकाई की पृथकता का आधार [[स्वर]] या स्वररत्‌ (वोक्वॉयड) व्यंजन होता है। व्यंजन ध्वनि किसी उच्चारण में स्वर का पूर्व या पर अंग बनकर ही आती है। अस्तु, अक्षर में स्वर ही मेरुदंड है। अक्षर से स्वर को न तो पृथक्‌ ही किया जा सकता है और न बिना स्वर या स्वररत्‌ व्यंजन के अक्षर का निर्माण ही संभव है। उच्चारण में यदि व्यंजन मोती की तरह है तो स्वर धागे की तरह। यदि स्वर सशक्त सम्राट है तो व्यंजन अशक्त राजा। इसी आधार पर प्रायप्रायः अक्षर को स्वर का पर्याय मान लिया जाता है, किंतु ऐसा है नहीं, फिर भी अक्षर निर्माण में स्वर का अत्यधिक महत्व होता है। कतिपय भाषाओं में व्यंजन ध्वनियाँ भी अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी भाषा में न, र, ल्‌ जैसी व्यंजन ध्वनियाँ स्वररत्‌ भी उच्चरित होती हैं एवं स्वरध्वनि के समान अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी सिलेबल के लिए हिंदी में अक्षर शब्द का प्रयोग किया जाता है। [[रामविलास शर्मा|डॉ. रामविलास शर्मा]] ने सिलेबल के लिए 'स्वरिक' शब्द का प्रयोग किया जाता है। (भाषा और समाज, पृ. 59)। चूँकि अक्षर शब्द का भाषा और व्याकरण के इतिहास में अनेक अर्थच्छाया के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए सिलेबल के अर्थ में इसके प्रयोग से भ्रमसृजन की आशंका रहती है।
 
शब्द के उच्चारण में जिस ध्वनि पर शिखरता या उच्चता होती है वही अक्षर या सिलेबल होता है, जैसे हाथ में आ ध्वनि पर। इस शब्द में एक अक्षर है। 'अकल्पित' शब्द में तीन अक्षर हैं यथा- , कल्‌ , पित्‌ ; आजादी में तीन यथा- आ जा दी; अर्थात्‌ शब्द में जहाँ जहाँ स्वर के उच्चारण की पृथकता पाई जाए वहाँ-वहाँ अक्षर की पृथकता होती है।
 
ध्वनि उत्पादन की दृष्टि से विचार करने पर फुफ्फुस संचलन की इकाई को अक्षर या स्वरिक (सिलेबल) कहते हैं, जिसमें एक ही शीर्षध्वनि होती है। शरीर रचना की दृष्टि से अक्षर या स्वरिक को फुफ्फुस स्पंदन भी कह सकते हैं, जिसका उच्चारण ध्वनि तंत्र में अवरोधन होता है। जब ध्वनि खंड या अल्पतम ध्वनि समूह के उच्चारण के समय अवयव संचलन अक्षर में उच्चतम हो तो वह ध्वनि अक्षरवत्‌ होती है। स्वर ध्वनियाँ बहुधा अक्षरवत्‌ उच्चरित होती है एवं व्यंजन ध्वनियाँ क्वचित्‌। शब्दगत उच्चारण की नितांत पृथक्‌ इकाई को अक्षर कहा जाता है, यथा
 
(1) एक अक्षर के शब्द : आ,
 
(2) दो अक्षर के शब्द : भारतीय, उर्दू,
 
(3) तीन अक्षर के शब्द : बोलिए, जमानत,
 
(4) चार अक्षर के शब्द : अधुनातन, कठिनाई,
 
(5) पाँच अक्षर के शब्द : अव्यावहारिकता, अमानुषिकता। अमानुषिकता
 
किसी शब्द में अक्षरों की संख्या इस बात पर कतई निर्भर नहीं करती कि उसमें कितनी ध्वनियाँ हैं, बल्कि इस बात पर कि शब्द का उच्चारण कितने आघात या झटके में होता है अर्थात्‌ शब्द में कितनी अव्यवहित ध्वनि इकाइयाँ हैं। अक्षर में प्रयुक्त शीर्ष ध्वनि के अतिरिक्त शेष ध्वनियों को 'अक्षरांग' या 'गह्वर ध्वनि' कहा जाता है। उदाहरण के लिए 'चार' में एक अक्षर (सिलेबल) है जिसमें आ शीर्ष ध्वनि तथा च एवं र गह्वर ध्वनियाँ हैं।
 
==शब्दांशों का ढांचा==
==देवनागरी वर्णमाला (अक्षर)==
किसी भी शब्दांश में एक 'शब्दांश केंद्र' होता है, जो हमेशा स्वर वर्ण ही होता है, और उसके इर्द-गिर्द अन्य वर्ण मिलते हैं जो व्यंजन भी हो सकते हैं और स्वर भी. 'कान' शब्दांश का शब्दांश केंद्र 'आ' का स्वर है जिससे पहले 'क' और बाद में 'न' के वर्ण आते हैं।
 
==इन्हें भी देखें==
अक्षर (Letter / Alphabet) वर्णमाला प्रर्णाली में एक तत्व है. लिखित भाषा में प्रत्येक अक्षर आमतौर पर भाषा के रूप में बात की आवाज़ के साथ जुड़ा हुआ है. अक्षर किसी भी बोली, भाषा, व लेखनी का पहला तत्व भी है. इसी से शब्द बनते है जिनसे की वाक्य व जिनसे की कोई लेख बनता है. हिंदी वर्णमाला में अक्षरो को स्वर व व्यंजन प्रणाली में बाटा गया है जिससे की कोई शब्द बनता है. देवनागरी या हिंदी भाषा के सारे अक्षर नीचे देखे.
*[[शब्दांश स्थानांतरण]]
{{देवनागरी *[[वर्णमाला}}]]
*[[लिपि]]
 
[[श्रेणी:भाषाविज्ञान]]
{{देवनागरी वर्णमाला}}
[[श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना]]
 
[[alsaf:BuchstabeLettergreep]]
[[anals:LetraSilbe]]
[[aran:حرفSilaba]]
[[ar:مقطع لفظي]]
[[ast:Lletra]]
[[azay:HərfAru qallu]]
[[baraz:BuachstobHeca]]
[[bat-smgba:RaidieИжек]]
[[bebar:ЛітараSüüm]]
[[be-x-old:ЛітараСклад, мова]]
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[[bn:বর্ণ (ভাষাবিজ্ঞান)]]
[[br:LizherennSilabenn]]
[[bsca:SlovoSíl·laba]]
[[caceb:LletraLitpong]]
[[crhcs:ArifSlabika]]
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[[simple:LetterSyllable]]
[[ml:അക്ഷരം]]
[[mnsk:ҮсэгSlabika]]
[[mrsl:अक्षरZlog]]
[[mssq:HurufRrokja]]
[[mwlsr:LetraСлог]]
[[stq:Silwe]]
[[nah:Machiyōtlahtōliztli]]
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[[th:พยางค์]]
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[[octr:LetraHece]]
[[uk:Склад (мовознавство)]]
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"https://hi.wikipedia.org/wiki/अक्षर" से प्राप्त