"मरुद्गण": अवतरणों में अंतर

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'''मरुद्गण''' (=मरुत् + गण) एक देवगण का नाम । [[वेद|वेदों]] में इन्हें [[रुद्र]] और [[वृश्नि]] का पुत्र लिखा है और इनकी संख्या ६० की तिगुनी मानी गई है; पर [[पुराण|पुराणों]] में इन्हें कश्यप और दिति का पुत्र लिखा गया है जिसे उसके वैमात्रिक भाई [[इंद्र]] ने गर्भ काटकर एक से उनचास टुकड़े कर डाले थे, जो उनचास मरुद् हुए । वेदों में मरुदगण का स्थान अंतरिक्ष लिखा है, उनके घोड़े का नाम 'पृशित' बतलाया है तथा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है । पुराणों में इन्हें [[वायुकोण]] का [[दिक्पाल]] माना गया है
चारों वेदों में मिलकर मरुद्देवता के मंत्र 498 हैं।
 
==परिचय==
मरुत् गणश: रहते हैं अत: इनका वर्णन संघश: ही किया जाता है--
वैदिक देवताओं के ये गण हैं—८ वसु, ११ रुद्र, १२ आदित्य । इनमें इंद्र और प्रजापति मिला देने से ३३ देवता होते हैं ([[शतपथ ब्राह्मण]]) । पीछे से इन गणों के अतिरिक्त ये गण और माने गए—३० तुषित, १० विश्वेदेवा, १२ साघ्य, ६४ आभास्वर, ४९ मरुत्, २२० महाराजिक । इस प्रकार वैदिक देवताओं के गण और परवर्ती देवगणों को कुल संख्या ४१८ होती है । बौद्ध और जैन लोग भी देवताओं के कई गण या वर्ग मानते हैं ।
 
चारों वेदों में मिलकर मरुद्देवता के मंत्र 498 हैं। मरुत् गणश: रहते हैं अत: इनका वर्णन संघश: ही किया जाता है--
 
1. मरुतों के गणों के लिये हव्य अर्पण करो (मारुताय शर्धाय हव्या भरध्वम, ऋ. 8।20।9)!