"दार्दी भाषाएँ": अवतरणों में अंतर
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==='र' शब्दांश स्थानांतरण===
दार्दी भाषाओं में अक्सर [[शब्दांश स्थानांतरण]] हो जाता है, जिसमे एक ही शब्द के 'र' के वर्ण के इर्द-गिर्द कोई स्वर अपने स्थान में फेर-बदल कर लेता है। यह दार्दी भाषाओं में प्राचीनकाल से होता आ रहा है और [[गांधार]] क्षेत्र में (जहाँ दार्दी भाषाएँ बोलीं जातीं थीं) सम्राट [[अशोक]] के ज़माने की शिलाओं में भी यह देखा जा सकता है, जो २६९ ई॰पु॰ से २३१ ई॰पु॰ में खड़ी की गई थीं। सम्राट अशोक की एक उपाधि 'प्रियदर्शी' थी - लेकिन इन शिलाओं पर अक्सर 'प्रियद्रशी' देखने को मिलता है क्योंकि शब्दांश स्थानांतरण के कारण 'दर्श' का 'द्रश' बन गया। इसी तरह इन शिलाओं पर 'धर्म' के स्थान पर 'ध्रम' मिलता है।<ref name="masica1993" /><ref name="lenz2003">[http://books.google.com/books?id=ALZnXwZYlckC A new version of the Gandhari Dharmapada and a collection of previous-birth stories], Timothy Lenz, Andrew Glass, Dharmamitra Bhikshu, University of Washington Press, 2003, ISBN 0295983086, Accessed 2010-05-11, ''... 'Dardic metathesis,' wherein pre- or postconsonantal 'r' is shifted forward to a preceding syllable ... earliest examples come from the Aśokan inscriptions ... priyadarśi ... as priyadraśi ... dharma as dhrama ... common in modern Dardic languages ...''</ref> आधुनिक काल में संस्कृत के 'दीर्घ' (यानि लम्बा) शब्द की झलक [[कलश भाषाओँ]] के 'द्रीग' शब्द में मिलती है।<ref name="lenz2003" /> [[पालूला भाषा]] में संस्कृत का 'दुर्बल' (यानि कमज़ोर) बदल कर 'द्रुबल' बन जाता है और संस्कृत का 'भुर्ज' (जो एक पहाड़ी क्षेत्र में उगने वाले पेड़ का नाम है) बदल कर 'बर्हुज' बन जाता है।<ref name="lenz2003" /> संस्कृत का 'दरिद्र' कश्मीरी का 'द्रोलिद' बन जाता है और 'कर्म' कश्मीरी में 'क्रम' बन जाता है।<ref name="lenz2003" /> दार्दी भाषाओं की यह प्रवृति पंजाबी और पश्चिमी पहाड़ी भाषाओं में भी कुछ हद तक देखी जा सकती है। जहाँ फ़ारसी में पेड़ को 'दरख़्त' कहते हैं वहाँ पंजाबी में यह '
===वाक्य में क्रिया का स्थान===
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