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[[चित्र:Ram Pol.jpg|right|thumb|300px|राजस्थान के '''कुम्भलगढ़ का किला''' - यह एशिया के सबसे बड़े किलों में से एक है।]]
शत्रु से सुरक्षा के लिए बनाए जानेवाले [[वास्तु]] का नाम '''किला''' या '''दुर्ग''' है। इन्हें 'गढ़' और 'कोट' भी कहते हैं। दुर्ग, पत्थर आदि की चौड़ी दीवालों से घिरा हुआ वह स्थान है जिसके भीतर राजा, सरदार और सेना के सिपाही आदि रहते है। नगरों, सैनिक छावनियों और राजप्रासादों सुरक्षा के लिये किलों के निर्माण की परंपरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है। आधुनिक युग में युद्ध के साधनों और रण-कौशल में वृद्धि तथा परिवर्तन हो जाने के कारण किलों का महत्व समाप्त हो गया है और इनकी कोई आवशकता नहीं रही।
 
== परिचय एवं इतिहास ==
वैदिककालीन साहित्य में पुरों का जिस रूप में उल्लेख है उससे ज्ञात होता है कि उन दिनों दुर्ग से घिरी बस्तियाँ हुआ करती थीं।
 
[[ऋग्वेद]] तक में दुर्ग का उल्लेख है । दस्युओं के ९६ दुर्गों को इंद्र ने ध्वस्त किया था । [[मनु]] ने छह प्रकार के दुर्ग लिखे हैं-
* (१) धनुदुर्ग, जिसके चारों ओर निर्जल प्रदेश हो,
* (२) महीदुर्ग, जिसके चारो ओर टेढ़ी मेढ़ी जमीन हो,
* (३) जलदुर्ग (अब्दुर्ग), जिसके चारों ओर जल हो,
* (४) वृक्ष दुर्ग, जिसके चारो ओर घने बृक्ष हों,
* (५) नरदुर्ग जिसके चारों ओर सेना हो और
* (६) गिरिदुर्ग, जिसके चारों ओर पहाड़ हो या जो पहाड़ पर हो।
 
[[महाभारत]] में [[युधिष्ठिर]] ने जब [[भीम]] से पूछा है कि राजा को कैसे पुर में रहना चाहिए तब भीष्म जी ने ये ही छह प्रकार के दुर्ग गिनाए हैं और कहा है कि पुर ऐसे ही दुर्गों के बीच में होना चाहिए। [[मनुस्मृति]] और महाभारत दोनों में कोष, सेना, अस्त्र, शिल्पी, ब्राह्मण, वाहन, तृण, जलाशय अन्न इत्यादि का दुर्ग के भीतर रहना आवश्यक कहा गाय है । [[अग्निपुराण]], [[कल्किपुराण]] आदि में भी दुर्गों के उपर्युक्त छह भेद बतलाए गए हैं।
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8. '''दैवदुर्ग'''
 
=== मध्यकाल ===
भारत के मध्यकालीन किलों के संबंध में बातें कुछ अधिक विस्तार से ज्ञात होती हैं। सामान्यत: किलों की दीवारें बड़ी चौड़ी तथा ऊँची बनाई जाती थीं जिनमें बीच में ऊँची बुर्जे तथा विशाल फाटक होते थे। इस काल के छोटी-छोटी पहाड़ियों पर बनाए गए किले बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। राजस्थान तथा दक्षिणी भारत के किले प्राय: पहाड़ियों पर ही बनाए गए हैं और कुछ किले मीलों की परिधि में बने हैं, जो किले पहाड़ियों पर बने हैं उनमें दोहरी-तीहरी चहारदीवारियाँ हैं। सबसे ऊँची चहारदीवारी के भीतर मुख्य दुर्ग होता था। प्राय: किलों की परिधि में नगर तथा मुख्य दुर्ग दोनों ही रहते थे। मुख्य दुर्ग के एक ओर ऊँची पहाड़ी या नदी का किनारा होता था। दुर्गनिर्माण कराते समय उन मार्गों की रक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था जिनसे होकर शत्रु किले में आ सकते थे या आक्रमण कर सकते थे। सामान्य रूप से किले के निर्माण के लिये किसी ऊँची पहाड़ी को चुना जाता था जिसकी ढालू चट्टानों पर पहुँचना कठिन होता था। जिस ओर से शत्रु के चढ़ आने की आशंका होती थी उस ओर की चट्टानों को काटकर ऐसा ढलवाँ मार्ग बना दिया जाता था जिससे एक ही दीवार द्वारा उसकी रक्षा हो जाती थी और दूसरी पहाड़ी बिल्कुल सीधी और खड़ी होती थी। कहीं-कहीं इन ढलवाँ मार्गों में चार से लेकर सात तक दृढ़ द्वार बने होते थे। किलों की बाहरी दीवार समतल भूमि पर बनाई जाती थीं, जिसको चौड़ी और गहरी दीवार की रक्षा खाइयों द्वारा सुरक्षित किया जाता था। यदि किला नदी के किनारे स्थित होता तो एक ओर से नदी उसके रक्षा करती थीं, और शेष और खाइयाँ। खाइयाँ उठवाँ पुल द्वारा पार की जाती थी, जैसा आगरे के किले में है। यदि किला पहाड़ी पर होता था तो उसकी बाहरी दीवारों की रक्षा भी इसी प्रकार होती थी, जैसी जिंजी तथा गोलकुंडा में हैं। दौलताबाद के मुख्य किले के प्रवेश द्वार की रक्षा गहरी खाइयों द्वारा की जाती थी जिनमें सदैव पानी भरा रहता था। बीदर में नगर के चारों ओर खाइयों के अतिरिक्त किलों के रक्षार्थ तेहरी जलदार खाइयाँ बनाई गई थीं। कुछ किलों की दीवारों की मोटाई 31 से 35 फीट तक है, विशेषकर उन दीवारों की जो समतल भूमि पर बनाई गई हैं। पहाड़ी किलों में पहाड़ी को ढलवाँ बना दिया जाता था। ये दीवारें अंदर तथा बाहर की ओर पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़ों से बनाई जाती थी और इन दोनों के बीच मार्ग प्राय: मिट्टी से भर दिया जाता था। कुछ किलों में दोहरी दीवारें रखी गई थीं जिनके बीच बहुत कम दूरी है और अंदरवाली दीवार से काफी ऊँची है, जैसा गोलकुंडा तथा तुगलकाबाद और आगरा के किलों में है। दीवार को गरगजों या बुर्जों द्वारा और भी दृढ़ बना दिया जाता था।
 
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[[ईस्ट इंडिया कंपनी]] ने यूरोपीय और भारतीय किलों के मिश्रित रूप के किले [[मद्रास]] और [[कलकत्ता]] में बनवाए थे।
 
=== अन्य देशों में ===
भारत के बाहर अन्यत्र किले का इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। वहाँ किले का प्राचीनतम और विशाल रूप चीन की दीवार के रूप में देखने में आता है। ईसा से लगभग ढाई सौ वर्ष पूर्व चिन वंश के सम्राट् शिह-हांग-त्सी ने चीन देश की सीमा पर चारों ओर एक अत्यंत विशाल, लंबी, चौड़ी और मजबूत प्राचीर का निर्माण आरंभ कराया था। प्राचीन यूनान और रोम में भी किलों का निर्माण हुआ था और उनका अपना महत्व था किंतु यूरोप में किलों का इतिहास मध्य युग से ही आरंभ होता है। प्राचीनकाल किले नगरों की प्रतिरक्षा के उद्देश्य से बनते थे किंतु मध्यकालीन किले टापुओं, पहाड़ियों, दलदल के मध्य सूखी भूमि एवं अन्य दुर्गम स्थानों पर बनाए जाने लगे। जहाँ कहीं प्राकृतिक प्रतिरक्षा के स्थान प्राप्त नहीं थे, खाई खोद ली जाया करती थी। पूर्व के देशों के किलों ने भी क्रूसेड़ों (धर्मयुद्धों) के सैनिकों को अत्यधिक प्रभावित किया जिसके फलस्वरूप उन्होनें अपने किलों की निर्माणविधि में उचित उन्नति की। बारूद के आविष्कार ने यूरोप में किलों के निर्माण की आवश्यकताओं में और भी परिवर्तन कर दिए।
 
यूरोप की सामंती प्रथा में किलों को विशेष स्थान प्राप्त हुआ। ऐंगलो-सैक्सन युग के किलों में वास्तुकला संबंधी कोई विशेषता नहीं थीं। किंतु 11वीं सदी ईस्वी में नार्मेनयुग के किलों में खास तौर पर वास्तुकला की ओर ध्यान दिया जाने लगा। शार्पशायर के स्टोकसे कैसिल और वारविकशायर के केनिलवर्थ कैसिल उस समय की वास्तुकला के बड़े ही सुंदर उदाहरण हैं। इन किलों की विशेष इनकी खाइयाँ एवं इनके कई कई खंडों के भवन हैं।
 
== संदर्भ ग्रंथ ==
* सर सैयद अहमद खाँ : आसारूस्सनादीद;
* शुक्ल, द्विजेंद्रनाथ : भारतीय वास्तुशास्त्र
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* ए हिस्ट्री ऑव फोर्टिफ़िकेशन, दि स्ट्रागहोल्ड्स ऑव इंडिया।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[किलाबंदी]]
 
पंक्ति 87:
* [[बीकानेर किला]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.topcastles.com Top 100 of Medieval Castles]
* [http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-story-50-50-159817.html आओ किला फतह करें]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/किला" से प्राप्त