"किलाबंदी": अवतरणों में अंतर

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शत्रु का प्रतिरोध और उससे रक्षा करने की व्यवस्था का नाम '''किलाबंदी''' (fortification) है। इसके अन्तर्गत वे सभी सैनिक निर्माण और उपकरण आ जाते हैं जो अपने बचाव के लिए उपयोग किए जाते हैं (न कि आक्रमण के लिए)। वर्तमान समय में किलाबन्दी, [[सैन्य इंजीनियरी]] के अन्तर्गत आती है। यह दो प्रकार की होती है : एक स्थायी और दूसरी अस्थायी। स्थायी किलेबंदी के लिए दृढ़ दुर्गों का निर्माण, जिनमें सुरक्षा के साधन उपलब्ध हो, आवश्यक है। मैदानी किलाबंदी की आवश्यकता ऐसे अवसरों पर पड़ती है जब स्थायी किले को छोड़कर सेनाएँ रणक्षेत्र में आमने सामने खड़ी होती हैं। मैदानी किलाबंदी में बड़े बड़े पेड़ों को गिराकर तथा बड़ी बड़ी चट्टानों एवं अन्य साधनों की सहायता से शत्रु के मार्ग में रूकावट डालने का प्रयत्न किया जाता है।
 
== इतिहास ==
प्राचीन भारतीय किलाबंदी का प्रारंभ वप्र से होता है। वप्र भू की परिकल्पना के लिए पुर के चारों ओर परिखाएँ (1, 2 या 3) खोदी जाती थीं। [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र]] तथा [[समरांगण सूत्रधार]] में चारों ओर तीन-तीन परिखाओं के खनन का निर्देश है। पारिखेयी भूमि की व्यवस्था नगर मापन का प्रथम अंग रहा है। परिखाओं के खनन से निकली हुई मिट्टी के द्वारा ही वप्र भू की रचना की जाती थी।
 
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द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह निष्कर्ष निकला कि स्थायी किलाबंदी धन तथा परिश्रम की दृष्टि से ठीक नहीं है; शत्रु की गति में विलंब अन्य साधनों से भी कराया जा सकता है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि इसका महत्व बिल्कुल ही खत्म हो गया। अणुबम के आक्रमण में सेनाओं को मिट्टी के टीलों या कंकड़ के रक्षक स्थानों में आना ही होगा। नदी के किनारे या पहाड़ी दर्रों के निकट इन स्थायी गढ़ों का उपयोग अब भी लाभदायक है। हाँ, यह अवश्य कहा जा सकता है कि आधुनिक तृतीय आयोमात्मक युद्ध में स्थायी दुर्गो की उपयोगिता नष्ट हो गई है।
 
== इन्हें भी देखिये ==
* [[किला]]
 
== संदर्भ ग्रंथ ==
* द्विजेंद्रनाथ शुक्ल : भारतीय वास्तुशास्त्र;
* रिज़वी : आदि तुर्क कालीन भारत;