"राजशेखर": अवतरणों में अंतर

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'''राजशेखर''' (विक्रमाब्द 930- 977 तक) [[काव्यशास्त्र]] के पण्डित थे। वे [[कान्यकुब्ज]] के [[प्रतिहार|प्रतिहारवंशीय]] नरेश [[महेंद्रपाल]] एवं उनके बेटे महिन्द्र पाल के गुरू एवं मंत्री थे। उनके पूर्वज भी प्रख्यात पण्डित एवं साहित्यमनीषी रहे थे। [[काव्यमीमांसा]] उनकी प्रसिद्ध रचना है। समूचे [[संस्कृत साहित्य]] में [[कुन्तक]] और राजशेखर ये दो ऐसे आचार्य हैं जो परंपरागत संस्कृत पंडितों के मानस में उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितने [[रस]]वादी या [[अलंकार]]वादी अथवा ध्वनिवादी हैं। राजशेखर लीक से हट कर अपनी बात कहते हैं और कुन्तक विपरीत धारा में बहने का साहस रखने वाले आचार्य हैं।
 
== जीवनी ==
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* विद्धशालभंजिका
* भुवनकोश , ''जिसका निर्देश राजशेखर ने काव्यमीमांसा (पृ. ८९) ने स्वयं किया है, और''
* हरिविलास, ''जिसका उल्लेख [[हेमचंद्र]] ने अपने [[काव्यानुशासन]] में किया है।''
 
रीतिविषयक 'रीतिनिर्णय' नामक एक ग्रंथ का इनके नाम से और उल्लेख मिलता है, किंतु वह अप्राप्य है।
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: '''श्वभूव वाल्मीकिभव: पुराकवि: तत: प्रपेदे भुवि भर्तृमेष्ठताम्।'''
: '''स्थित: पुनर्यो भवभूति रेखया स वर्तते संप्रति राजशेखर:।।''' ''-बालभारत, १.१३''
 
== बाहरी कड़ियाँ ==